सम्पादकीय

लता मंगेशकर: शब्द, सुर, और लय के महायोग की प्राण -प्रतिष्ठा करने वाला स्वर

Neha Dani
7 Feb 2022 1:53 AM GMT
लता मंगेशकर: शब्द, सुर, और लय के महायोग की प्राण -प्रतिष्ठा करने वाला स्वर
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वह हैं लता, स्वर लता, स्वर कोकिला, सुर साम्राज्ञी..... लता दीदी!!

शब्द के ब्रह्म स्वरूप को प्रतिष्ठित करने वाला स्वर इस लोक में अपना कार्य पूरा कर महाप्रयाण कर गया। इस लोक की उनकी यात्रा का वर्णन करने के लिए शब्द अपूर्ण हैं और तमाम श्रद्धांजलि अधूरी। हममें से बहुत सारे अपने पूरे जीवन में भी उन भावों को नहीं जी पाएंगे, जितनी भावनाओं को उन्होंने स्वर दिए हैं।

शब्द ब्रह्म है। क्यों है? उसका ब्रह्म स्वरूप कितना अलौकिक हो सकता है! मनोभावों को शब्द का स्पंदन किस तरह छू सकता है, प्रभावित कर सकता है? स्वर में ढलकर शब्द कैसे नाद रचता है। कैसे शब्द, स्वर, लय और ताल मिलकर नादब्रह्म की रचना करते हैं। मनुष्य शरीर में उपस्थित रसायन कैसे संगीत को लेकर चमत्कारिक प्रतिक्रिया दे सकते हैं। संगीत ईश्वर की आराधना का श्रेष्ठ माध्यम क्यों है? शायद यही सब बताने, समझाने के लिए लताजी इस धरा पर अवतरित हुई थीं।
उनके कंठ से कला के सभी रूप नित नए आकार लेते थे। शब्द नर्तन करते और सुर चित्र रचते। लोरी से लेकर देशभक्ति तक, प्रेम से विरह तक, उल्लास से उदासी तक, अकेलेपन से उत्सव तक हर भाव को अभिव्यक्त करते उनके गीत यह नाद कर रहे थे कि स्वर कोकिला अपने मिशन में पूरी तरह कामयाब हुईं। उनकी आवाज़ फिज़ाओं में थी और वह खुद भी सशरीर उपस्थित थीं, हम भारतीयों के लिए गर्व करने और इतराने के लिए यह एक कारण ही बहुत बड़ा था। अब उनका शरीर नहीं रहेगा, पर आवाज़ ताकायनात रहेगी। हां, मेरी पिछली और अगली कुछ पीढ़ी के लोग इस बात पर हमेशा गर्व कर सकते हैं कि आवाज़ की यह देवी हमारे समयकाल में हुईं। और कुछ अति सौभाग्यशाली तो इस बात पर लगभग घमंड ही कर सकते हैं कि उन्होंने लताजी को प्रत्यक्ष देखा-सुना है।
मेरे लिए गर्व का एक बड़ा विषय यह भी है कि मैं भी इंदौर से ही हूं। उन्हें लाइव सुन पाया। उनसे मिल पाया। गुलदस्ता दे पाया। इंदौर की सरजमीं पर उनका स्वागत कर पाया। उनकी इसी यात्रा से जुड़ी एक गहरी टीस भी है, पर उस पर बात फिर कभी।
बहरहाल, स्वर की यह देवी मानों वसंत के अभिषेक की ही प्रतीक्षा कर रही थीं। स्वर, शब्द, विद्या और ज्ञान की देवी के उत्सव को मना लेने के बाद लताजी ने अपने शरीर को विराम दे दिया।
लताजी को बहुत से तरीकों से याद किया जा रहा है, किया जाता रहेगा। कहा जा रहा है कि उन्हें कितने पुरस्कार मिले। मैं कहूंगा कि उन्हें कोई पुरस्कार नहीं मिला, पुरस्कारों को वह मिलीं। शब्द, स्वर, लय, ताल, साज का वह मिलन, जिसे कोई परिभाषित नहीं कर सकता, बस अपने तरीके से महसूस कर सकता है।
मुझे जो सबसे अच्छी बात लगती है, वह यह कि लताजी को सुनने के लिए आपको संगीत का ज्ञाता होने की जरूरत नहीं है। उनको सुनते रहेंगे तो संगीत अपने आप आ जाएगा। संगीत के विशारद से लेकर सामान्य श्रोता तक हर किसी को अपने स्तर पर छूने और आनंदित करने की क्षमता जिसमें थी, है और रहेगी, वह हैं लता, स्वर लता, स्वर कोकिला, सुर साम्राज्ञी..... लता दीदी!!

सोर्स: अमर उजाला

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