सम्पादकीय

अंतिम रास्ता सर्वोदय : सामाजिक क्रांति का एक मात्र नुस्खा है- प्रेम, यही है परिवर्तन की कुंजी

Neha Dani
24 April 2022 1:52 AM GMT
अंतिम रास्ता सर्वोदय : सामाजिक क्रांति का एक मात्र नुस्खा है- प्रेम, यही है परिवर्तन की कुंजी
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प्रशासन को सुधारा जाए और परिवर्तन के रास्ते खोले जाएं, ताकि लोगों को बिगड़ने के बजाय बनाने में मदद मिले।

दस्यु-समर्पण के साथ एक बहुत बड़ा कार्य संपन्न हुआ। 405 दस्युओं ने आत्म-समर्पण किया है। इनमें 84 बुंदेलखंड के और बाकी इसी चंबल क्षेत्र के हैं। इस प्रकार एक परिच्छेद समाप्त हो गया। आगे जो समस्याएं शेष हैं, उनका सामना करना है। वास्तव में जन्म से कोई डाकू नहीं बनता। माधो सिंह, मोहर सिंह आदि सभी इंसान हैं। सामाजिक परिस्थितियों, आर्थिक रचना, गरीबी-अमीरी, परस्पर राग-द्वेष, स्वभाव की भिन्नता, वैमनस्य, पंचायत चुनाव से लेकर राजनीतिक दल-बंदी तक कई कारण हैं, जिनके कारण इतने लोग बागी बन गए थे।

इन कारणों को समाप्त नहीं किया गया, तो 405 की जगह 810 और पैदा हो जाएंगे। इस समस्या को मिटाने के लिए क्या करना चाहिए? समाज की रचना, ऊंच-नीच, भेद-भाव, जातिप्रथा, सामंतवाद, पूंजीवाद आदि के कारण जो शोषण और अन्याय होता है, उसे रोकना होगा। आमूल परिवर्तन की आवश्यकता है। परिवर्तन के लिए क्या करें, यह एक प्रश्न है, और इसके तीन उत्तर हैं।
पहला रास्ता खूनी क्रांति
पहला रूस-चीन के क्रांतिकारी परिवर्तनों का रास्ता है। मैं भी इसी मार्ग को मानता था, पर अब सोलह आने गांधीजी के पद-चिह्नों पर चल रहा हूं। मैं उग्र समाजवादी था, गांधीजी का कठोर आलोचक, पर मेरी पत्नी तब भी गांधीवादी थी। नया समाज बनाने के लिए मैं मार्क्स और लेनिन का अनुयायी था। रूस में हिंसा के परिणाम-स्वरूप खूनी क्रांति हुई। लेकिन लेनिन के नारों का क्या हुआ? किसानों और मजदूरों की पंचायतें बनाने की बात कहां गई?
भारत में आम नागरिकों, छात्रों और सबको आजादी है। इंदिरा जी, सेठी जी और अपने प्राचार्य तक के विरोध में कोई कुछ भी कह सकता है। पर रूस और मास्को में छात्रों, मजदूरों और किसानों पर कठोर प्रतिबंध हैं। ऐसी क्रांति किस काम की, जिसमें 55 वर्षों के बाद भी आजादी न मिले? फ्रांस में भी खूनी क्रांति हुई थी, पर उसमें से पैदा हुआ नेपोलियन। समानता और भाईचारे के नारों पर जो क्रांति 1789 में हुई थी, उसमें भाईचारा तो कहीं दिखा नहीं।
चीन में भी रक्त-क्रांति हुई थी, उसकी दुर्दशा भी सबके सामने है। इसका अर्थ यही हुआ कि हिंसा के बल पर जो क्रांति होगी, वह हिंसा के बल पर ही कायम रह सकती है। वर्ग-दल की सत्ता कायम हो सकती है, पर मानव मात्र को उससे स्वतंत्रता, स्वाभिमान से अपना सिर खुले आसमान में उठाने की आजादी नहीं मिल सकती। तात्पर्य यही है कि खूनी क्रांति का परिणाम निरर्थक है।
दूसरा रास्ता कानून
दूसरा रास्ता कानून का है। इससे समाज का ढांचा बदलेगा, पर मनुष्य नहीं बदलेगा। बंधुत्व नहीं जागेगा। केवल ढांचा ही बदलेगा। मार्क्स ने कानून बनाने को कहा। उन्होंने आर्थिक उद्देश्य बताए। उनका कहना था कि इंसान अपनी शक्ति भर पैदा करे और आवश्यकतानुसार उपभोग करे, पर ऐसा नहीं हो सका। फिर स्टालिन आए। उन्होंने पूंजीवादी कानून बना डाले। काम के बराबर दाम का कानून बनाया। जरूरत के बराबर दाम वाली बात नहीं चल पाई। अब हाल यह है कि श्रम का भेद जितना रूस में है, उतना अमेरिका में भी नहीं है।
दिल और दिमाग नहीं बदले, इसलिए उद्देश्य अधूरा रहा। महात्मा गांधी ने लोकतांत्रिक कानून की आवश्यकता बताई। लोकतंत्र में जनता के वोट के बल पर सरकारें बनीं। उसको 'जो चाहो, सो करो' का अधिकार मिला। सरकार ने रेलों का राष्ट्रीकरण कर दिया। तब मैं देश की सबसे बडी ट्रेड यूनियन 'आल इंडिया रेलवेमेन्स फेडरेशन' का अखिल भारतीय अध्यक्ष था। तब से लेकर अब तक रेलवे में काम करने वाले लोगों की स्थिति में कोई फर्क नहीं आया।
रुपये की कीमत चार आने रह गई है, पर उस हिसाब से मजदूरों की आय नहीं बढी। डा. जॉन मथाई और सर गोपालस्वामी आयंगार रेलमंत्री थे, तब हमने मांग की थी कि रेलवे बोर्ड में मजदूरों को प्रतिनिधि बनाइए, पर आज तक नहीं हुआ। यही हल अश्पृश्यता का है। कानून बना हुआ है, पर छुआछूत खत्म नहीं हुई। कानून के जरिये सामाजिक क्रांति संभव नहीं।
तीसरा रास्ता सर्वोदय
तीसरा और अंतिम रास्ता है, सर्वोदय का, गांधी का। जिस हद तक समाज परिवर्तन हो सके, उतना कराओ। पुलिस और आदलत के बजाय आपसी झगड़े पंचायतों में निपटाओ। गांव-गांव में ऐसी रचना करें। हम जंगल के जानवर नहीं, नगर के नागरिक हैं। समाज में जिम्मेदारी की भावना पैदा करें। प्रेम और प्यार का भाव जगाएं। गांधीजी ने इसे 'पड़ोसी धर्म' नाम दिया है। स्थायी शांति और सामाजिक क्रांति का एकमात्र नुस्खा है-प्रेम। इसके अलावा गांवों में अस्पताल हों, स्कूल हों, सामाजिक-आर्थिक और बीहड़ों का विकास हो। यह सरकार का काम है, उसे करना चाहिए।
'नेवास्कर रिपोर्ट' में भी इस समस्या का असली हल विकास और समाज को बदलना बताया गया है। विनोबा इसे सामाजिक क्रांति कहते हैं। चंबल घाटी में 405 दस्युओं द्वारा आत्म-समर्पण का एक बड़ा काम हुआ है। सरकार को अब चेत जाना चाहिए। बीहड़ों के समतलीकरण, नए उद्योग धंधों की स्थापना, जीविका के नए-नए साधन जुटाना, सरकारी तंत्र में सुधार करना आदि काम जल्दी हाथ में लेना चाहिए। आवश्यकता इस बात की है कि अब यथाशीघ्र प्रशासन को सुधारा जाए और परिवर्तन के रास्ते खोले जाएं, ताकि लोगों को बिगड़ने के बजाय बनाने में मदद मिले।

सोर्स: अमर उजाला

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