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- उड़ान का अंतिम सफर
एक और सितारा टूट गया और विलुप्त हो गया। शायद यही नियति है! वक्त किसी को नहीं छोड़ता। बड़ा बेरहम लगता है, लेकिन न्यायविद भी है। कुदरत अपने बही-खाते खोलकर इंसाफ करती है। हम उसे ही मौत, अंतिम सफर मान लेते हैं। कोई अकेला रह जाता है, कोई असहाय हो जाता है, कोई बूढ़ा है, तो कोई युवा है। अंतिम सफर किसका है? पार्थिव शरीर का अथवा अमर आत्मा का…! सुशांत सिंह राजपूत आत्महंता साबित हुए। उनसे पहले दिव्या भारती, जिय़ा खान और प्रत्यूषा बनर्जी सरीखे चेहरों ने अंतिम सफर खुद ही चुना, जबकि जि़ंदगी के खुशदिल, हसीन और भरपूर लम्हे शुरू ही हुए थे। जि़ंदगी के मायने सूर्योदय की तरह चमकने लगे थे, उससे पहले ही मौत आ गई या मौत को आमंत्रित किया गया! यह कैसा न्याय है? शायद नियति ही यही थी! यह सोच संतोष देती है। सभी में यौवन का उल्लास, उत्तेजना और गति थी, फिर वे किससे भयभीत हुए? अब यह सवाल अनसुलझा ही रहने दें, क्योंकि जवाब देने वाले अंतिम सफर के बाद न जाने कहां होंगे? एक और त्रासदी अचानक और अप्रत्याशित रूप सेे सामने प्रकट हुई है-छोटे परदे के महानायक सिद्धार्थ शुक्ला की असमय मौत…! कारण कुछ भी रहा हो, पोस्टमॉर्टम और अन्य रपटों से खुलासा हो चुका है। हमारा यह मानना है कि वक्त पूरा हो चुका था। विधाता ने खूबसूरत और संघर्षमय 40 साल का वक्त ही तय किया था! ये दार्शनिक जिज्ञासाएं भी हो सकती हैं। सिद्धार्थ ने अभी तो 'उड़ानÓ भरनी शुरू की थी। वह बेहद सहज, धैर्यवान, शांत और स्नेहिल इनसान थे। ऐसी ढेरों टिप्पणियां की गई हैं, तो उन्हें एकदम खारिज कैसे किया जा सकता है? यकीनन 'बालिका वधू सीरियल से जो पहचान मिली थी, 'बिग बॉसÓ-13 के विजेता के तौर पर उसे विस्तार मिला था।
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