सम्पादकीय

SCO से सहयोग की संभावनाएं कम, भारत को बढ़ानी होगी अन्‍य संगठनों में दिलचस्पी

Tara Tandi
18 Sep 2021 4:01 AM GMT
SCO से सहयोग की संभावनाएं कम, भारत को बढ़ानी होगी अन्‍य संगठनों में दिलचस्पी
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ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे में शंघाई सहयोग संगठन की सालाना बैठक को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यह उचित ही कहा

जनता से रिश्ता वेबडेस्क|तिलकराज| ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे में शंघाई सहयोग संगठन की सालाना बैठक को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यह उचित ही कहा कि इस क्षेत्र की सबसे बड़ी चुनौतियां शांति, सुरक्षा एवं भरोसे की कमी से संबंधित हैं और इन समस्याओं का मूल कारण बढ़ता हुआ कट्टरपंथ है। हालांकि, उनके इस संबोधन को पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान भी सुन रहे थे, लेकिन इसकी कोई उम्मीद नहीं कि वह भारतीय प्रधानमंत्री की ओर से व्यक्त की गई चिंताओं से सहमत होंगे। वैसे भी वह अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे को गुलामी की जंजीरों का टूटना बता रहे हैं और दुनिया भर से यह कह रहे हैं कि उसे तालिबान की अंतरिम सरकार का साथ देना चाहिए।

भले ही चीन ने पाकिस्तान की तरह तालिबान की पैरवी न की हो, लेकिन यह जग जाहिर है कि वह अफगानिस्तान में उसके कब्जे को अपनी जीत के तौर पर देख रहा है। इसकी भरी-पूरी आशंका है कि वह पाकिस्तान के साथ मिलकर अफगानिस्तान में भारत की भूमिका कम करने के लिए हरसंभव कोशिश करेगा।

चीन भले ही शंघाई सहयोग संगठन के जरिये मेल-मिलाप की बातें करता हो, लेकिन भारत के प्रति उसका रवैया कुल मिलाकर शत्रुतापूर्ण ही है। वह लद्दाख में अपने अतिक्रमणकारी रवैये का परित्याग करने से बाज नहीं आ रहा है। भारत की ओर से बार-बार यह कहे जाने के बाद भी वह सीमा पर यथास्थिति कायम करने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहा कि ऐसा किए बगैर दोनों देशों के संबंध पहले जैसे नहीं होने वाले। इन हालात में भारत को इस पर विचार करना ही होगा कि शंघाई सहयोग संगठन जैसे मंच उसके हितों की पूर्ति में कितना सहायक हैं?

चूंकि इसमें संदेह है कि चीन आपसी सहयोग के मंचों का इस्तेमाल क्षेत्र के देशों के बीच मैत्री भाव बढ़ाने और एशिया में भारत की वाजिब भूमिका को स्वीकार करने में करेगा इसलिए भारतीय नेतृत्व को यह देखना होगा कि कैसे क्वाड जैसे संगठन अपनी सक्रियता बढ़ाएं?

भारत को आस्ट्रेलिया, अमेरिका और ब्रिटेन के सहयोग से आकार लेने वाले गठबंधन आकस के प्रति भी न केवल दिलचस्पी बढ़ानी होगी, बल्कि उससे सहयोग भी कायम करना होगा। इसलिए और भी, क्योंकि इस नए बने गठबंधन का एक उद्देश्य हिंद प्रशांत क्षेत्र की शांति एवं सुरक्षा सुनिश्चित करना है। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि इस क्षेत्र की शांति एवं सुरक्षा को सबसे बड़ा खतरा चीन से ही है। क्वाड का मकसद भी चीन के अतिक्रमणकारी रुख का जवाब देना है। अब ऐसे ही एक और संगठन का आकार लेना भारत के हित में है, लेकिन बात तब बनेगी जब ये संगठन चीन को काबू में करने के लिए वास्तव में आगे बढ़ेंगे।

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