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Written by जनसत्ता: राजभाषा समिति की बैठक में केंद्रीय गृहमंत्री ने कहा कि अब से भारत की संपर्क भाषा अंग्रेजी नहीं, हिंदी होनी चाहिए, तो हमें लगा कि यह तो जन-जन की पुकार है। गृहमंत्री ने कहा कि हमें अहिंदी भाषियों पर हिंदी थोपनी नहीं चाहिए। देश में समय-समय पर हिंदी देश की राजकीय भाषा बने, इस पर जोर दिया जाता है, पर उस पर अमल कभी नहीं होता।
आश्चर्य है कि हिंदीभाषी प्रदेशों में भी हिंदी के बजाय अंग्रेजी को ही अधिक महत्त्व दिया जाता है। जबकि हिंदीभाषी क्षेत्रों को तो अपनी मातृभाषा को अधिक से अधिक समृद्ध करने का प्रयास करना चाहिए।
दुनिया के पचास से अधिक देशों में अंग्रेजों का राज रहा, वहां उनकी मातृभाषा को अपनाना उन देशों की मजबूरी रही। पर, आज हमारे देश में जो लोग अंग्रेजी को कायम रखना चाहते हैं, उनका तर्क है कि अंग्रेजी आज विश्वभाषा है। पर अगर अंग्रेजी विश्व भाषा है तो फिर संयुक्त राष्ट्र में आधिकारिक भाषाओं की संख्या छह क्यों है? सच्चाई यह है कि अंग्रेजी आज चार-पांच देशों की ही भाषा मात्र रह गई है। अमेरिका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, कनाडा।
आज व्यापक रूप से देखा जाए तो दुनिया में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा हिंदी ही है। कारण, भारत के अलावा आज विश्व के अधिकांश देशों में एक और भारत बस गया है। इसलिए हमें हिंदुस्तान में अंग्रेजी की जगह हिंदी को ही सर्वाधिक महत्त्व देना चाहिए, तभी सबके लिए बेहतर होगा। हिंदी को अहिंदी भाषियों पर थोपना भी गलत है।
इसलिए अगर गृहमंत्री हिंदी के अलावा अन्य भारतीय भाषाओं का भी आदर-सम्मान करने की सलाह दे देते तो बेहतर होता। हिंदीभाषी अन्य भाषाएं भी सीखें और हिंदी भाषा वाले अन्य भाषाओं को भी सम्मान दें। पर आज हिंदी को हमें अंग्रेजी हटा कर मुख्य भाषा का दर्जा देना है, यही हमारे राष्ट्रीय के हित में है।