- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- भूस्खलन की त्रासदी और...
पहाड़, नदियां, मैदान, बर्फ , चौगान, मंदिर, फल-फूल, झरने सब कुछ है इस पावन धरती पर जिसका नाम है हिमाचल प्रदेश। पनबिजली परियोजनाओं से बिजली तैयार करके कई प्रदेशों को प्रकाश प्रदान करने का जिम्मा भी इसी धरती के जल पर है। हिमाचल अनेक भौगोलिक विषमताओं व चुनौतियों से घिरा हुआ प्रदेश है। इन चुनौतियों से लडक़र यहां के लोगों का जीवन व्यतीत होता है, मगर मानो अब इन्हें इन परिस्थितियों में जीने की आदत सी हो गई है। लेकिन वर्तमान समय में इन लोगों के लिए सबसे बड़ा संकट भी इन्हीं के ये पहाड़ टूट कर बिफर रहे हंै। इनके खतरे से यहां के लोगों के हाथ-पांव फूलने से लग गए हैं। आखिर हो भी क्यों नहीं, जब एक आधा पत्थर गिरे तो उससे बचा भी जाए, लेकिन जब जिस सडक़ पर चले है वो सडक़ या ऊपर से सारा पहाड़ ही टूट कर नीचे आकर अपने आगोश में सब कुछ ले जाने को आतुर हो तो कौन क्या करेगा? यह चिंतनीय विषय है। सवाल ये पैदा होता है कि हिमाचल प्रदेश या उत्तराखंड में इतनी ज्यादा भूस्खलन, फ्लैश फ्लड और पहाड़ों के दरकने और गिरने की घटनाएं क्यों हो रही हैं? इसके पीछे क्या वजह है? क्या इंसानी गतिविधियों की वजह से ऐसा हो रहा है या कोई प्राकृतिक कारण है, इसका समय रहते अध्ययन आवश्यक है अन्यथा परिणाम त्रासदी के रूप में सामने आ सकते हैं। क्योंकि आंकड़ों की सहायता समझने के लिए ली जाए तो साल 2014 से 2020 तक देशभर में भूस्खलन और पहाड़ों के गिरने की करीब 3656 बड़ी घटनाएं हुई हैं जिनमें कई लोगो की मृत्यु भी हो चुकी है। हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे पहाड़ी इलाकों में अक्सर हमें फ्लैश फ्लड, भूस्खलन और पहाड़ों के गिरने की खबर मिलती है।