सम्पादकीय

हिंसा की जमीन

Subhi
12 Nov 2022 5:10 AM GMT
हिंसा की जमीन
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कुछ दिनों पहले एक स्थानीय नेता को गोली मार दी गई थी। उससे पहले गायक सिद्धू मूसेवाला को दिनदहाड़े मार दिया गया था। हर मामले में वहां की सरकार दावा करती है कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा और राज्य में कानून-व्यवस्था को चाक-चौबंद बना दिया जाएगा।

Written by जनसत्ता; कुछ दिनों पहले एक स्थानीय नेता को गोली मार दी गई थी। उससे पहले गायक सिद्धू मूसेवाला को दिनदहाड़े मार दिया गया था। हर मामले में वहां की सरकार दावा करती है कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा और राज्य में कानून-व्यवस्था को चाक-चौबंद बना दिया जाएगा।

मगर इस दिशा में कोई संतोषजनक कदम उठाए जाते नहीं दिखते। ताजा घटना में जिस व्यक्ति को गोली मारी गई, उस पर बेअदबी के आरोप थे और उसे मारने की धमकियां लगातार मिल रही थीं, इसलिए उसे सुरक्षाकर्मी उपलब्ध कराए गए थे। जिस वक्त उसे छह लोगों ने गोली मारी, उस वक्त भी सुरक्षाकर्मी वहां मौजूद थे।

इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि हमालावर किस कदर सुरक्षा-व्यवस्था से बेखौफ थे। इससे पहले शिवसेना टकसाली के सुधीर सूरी को जब गोली मारी गई, तो उससे पहले खुलेआम धमकियां दी जाती रही थीं, मगर पुलिस ने उसकी सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं किए, जिसका नतीजा उसकी मौत के रूप में सामने आया।

सरकारों की साख राज्य की कानून-व्यवस्था के बल पर बनती है। मगर पंजाब की नई आम आदमी पार्टी सरकार इस मामले में पूरी तरह विफल नजर आ रही है। आखिर क्या वजह है कि उसके आते ही अपराधी एकदम से बेखौफ गए और दिन-दहाड़े हत्या करने में भी संकोच नहीं कर रहे। सरकार दावा करती है कि वह दोषियों को पकड़ने में सफल रही है, मगर केवल इस दावे से उसके अच्छे प्रशासन का पता नहीं चलता।

अच्छी कानून-व्यवस्था तो उसे कहते हैं, जिसमें अपराधी अपराध करने से पहले बार-बार सोचें। फिर क्या वजह है कि वर्षों पहले जो अलगाववाद वहां दब गया था, वह एकदम से कैसे उभरने लगा! पंजाब लंबे वक्त तक अलगाववाद की आग में जल चुका है, वहां अमन कायम करने में काफी मशक्कत करनी पड़ी है। क्या सरकार की लापरवाही की वजह से वही वातावरण फिर से बनता नहीं दिख रहा। कैसे वहां की खुफिया एजेंसी उन लोगों की टोह लेने में विफल साबित हो रही है, जो राज्य में फिर से अशांति का वातावरण बनाना चाहते हैं।

ऐसी घटनाओं को लेकर फिर से सवाल उठने लगे हैं कि क्या वास्तव में आम आदमी पार्टी खालिस्तान समर्थकों के प्रति नरम रुख रखती है। जिस वक्त पंजाब में विधानसभा के चुनाव हो रहे थे, उस वक्त अरविंद केजरीवाल पर सार्वजनिक मंच से आरोप लगाया गया था कि वे खालिस्तान समर्थकों के प्रति उदार रुख अपनाते हैं। पूछा जा सकता है कि क्या वजह है कि वहां आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद भी खालिस्तान समर्थक दहशतगर्द एकदम से सक्रिय हो उठे।

भगवंत मान सरकार को समझना चाहिए कि अगर इस मामले में थोड़ा भी लचीला या ढीला-ढाला रुख रखती है, तो उसके नतीजे पूरा पंजाब ही नहीं, देश को भुगतने पड़ सकते हैं। ताजा घटना में फेसबुक पर लिख कर कनाडा में रह रहे गोल्डी बरार ने जिम्मेदारी ली है। क्या पंजाब की सुरक्षा एजंसियों के लिए यह पता लगाना इतना कठिन है कि पंजाब में बरार से जुड़े लोग कहां सक्रिय हैं।


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