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- आतंक की जमीन
Written by जनसत्ता: अफगानिस्तान को लेकर भारत लंबे समय से जिस खतरे की ओर संकेत करता आया है, वह अब हकीकत में दिखने भी लगा है। पिछले साल अगस्त में तालिबान के सत्ता पर काबिज होने के बाद भारत ने आशंका जताई थी कि यह मुल्क आतंकी संगठनों का नया गढ़ बन सकता है। भारत की यह आशंका बेबुनियाद नहीं थी। सबसे बड़ा कारण तो यही कि तालिबान को सत्ता तक पहुंचाने में पाकिस्तान ने जिस तरह की भूमिका अदा की और उसकी हर तरह से मदद की, उससे तभी साफ हो चला था कि अफगानिस्तान को आतंकी संगठनों का नया ठिकाना बनने से कोई नहीं रोक पाएगा।
सिर्फ भारत ही नहीं, अमेरिका सहित दुनिया के तमाम देश और खासतौर से अफगानिस्तान से सटे मुल्क भी यहां अलकायदा, जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा जैसे संगठनों की जड़ें मजबूत होने से चिंतित हैं। अब संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट ने इस बात का खुलासा किया है कि अफगानिस्तान में तालिबान सत्ता जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा को मजबूत कर रही है। रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि ये दोनों संगठन अफगानिस्तान की जमीन पर अपने लड़ाकों को प्रशिक्षण दे रहे हैं।
अगर अफगानिस्तान में जैश और लश्कर जैसे आतंकी संगठनों को जमीन मिल गई है तो ऐसा निश्चित ही तालिबान नेताओं की रजामंदी से ही हुआ होगा। इसमें किसी को कोई संदेह होना भी नहीं चाहिए। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट ने भारत की आशंकाओं को सही साबित कर दिया है। यह गंभीर चिंता की बात इसलिए है कि जैश और लश्कर लंबे समय से भारत के खिलाफ आतंकी गतिविधियों को अंजाम देते रहे हैं। भारत में जितने बड़े आतंकी हमले हुए हैं, उनमें यही दोनों संगठन प्रमुख रूप से शामिल रहे हैं।
अभी भी कश्मीर घाटी में आतंकवाद फैलाने में यही दोनों गुट ज्यादा सक्रिय हैं। तालिबान के सत्ता में आने के बाद से ही भारत कहता भी रहा है कि अफगानिस्तान की जमीन पर तैयार होने वाले लड़ाकों का इस्तेमाल कश्मीर में किया जा सकता है। भारत ने तालिबान की सरकार को मान्यता इसीलिए नहीं दी थी कि वह पहले यह वादा करे कि अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल आतंकवादी तैयार करने में नहीं किया जाएगा। लेकिन अब तक अफगानिस्तान की ओर से ऐसा कोई संकेत कहां मिला है! बल्कि अब तो यही सामने आ गया है कि जैश और लश्कर के लड़ाके उसी की जमीन पर तैयार हो रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट बताती है कि अफगानिस्तान के नंगरहार प्रांत में आठ आतंकी शिविर चल रहे हैं और इनमें से तीन शिविर तो पूरी तरह तालिबान की निगरानी में हैं। सिर्फ यही एक जिला नहीं है, दूसरे कई जिलों में भी ऐसे शिविर चलने की पुख्ता खबरें हैं। सवाल है कि अफगानिस्तान की जमीन पर जैश और लश्कर आखिर ये लड़ाके तैयार क्यों और किसके लिए कर रहे हैं? तालिबान की निगरानी में आतंकी संगठनों की ऐसी सक्रियता और लड़ाके तैयार करने की कवायद भारत के खिलाफ बड़े आतंकी गठजोड़ की ओर इशारा करती है।
जबकि भारत अभी भी अफगानिस्तान को संकट से उबारने पर जोर दे रहा है और इसके लिए कोशिशों में जुटा है। भारत के नेतृत्व में शुरू हुए अफगान सुरक्षा संवाद में भी जोर इसी बात पर रहा है कि इस मुल्क को तबाही से बचाना सबकी प्राथमिकता होनी चाहिए। हाल में दुशांबे में भी भारत ने अफगानिस्तान को आतंकवाद से बचाने पर ही जोर दिया। लेकिन तालिबान सरकार जब आतंक की नीति पर ही चलने को आमदा है तो कैसे उसकी मदद संभव है?