सम्पादकीय

आतंक की जमीन

Subhi
27 May 2022 4:24 AM GMT
आतंक की जमीन
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कश्मीर में आतंकी अब लक्ष्य बना कर हिंसा करने लगे हैं। पहले उनका मकसद लोगों में दहशत फैलाना और सरकार को चुनौती देना होता था, मगर अब वे सीधे-सीधे तालिबानी रास्ते पर उतरते दिख रहे हैं।

Written by जनसत्ता: कश्मीर में आतंकी अब लक्ष्य बना कर हिंसा करने लगे हैं। पहले उनका मकसद लोगों में दहशत फैलाना और सरकार को चुनौती देना होता था, मगर अब वे सीधे-सीधे तालिबानी रास्ते पर उतरते दिख रहे हैं। बडगाम जिले में एक टीवी अभिनेत्री की हत्या इसका ताजा प्रमाण है। अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि एक कलाकार से उन्हें क्या दिक्कत हो सकती थी, सिवाय इस बात के कि उससे उन्हें अपने तथाकथित मजहब को चोट पहुंचती होगी। बताया जा रहा है कि वह अभिनेत्री गाती भी थी और इंटरनेट के सामाजिक मंचों पर वीडियो डाला करती थी।

हालांकि यह कोई नई घटना नहीं है। इसके पहले भी कई लड़कियों को गाने-बजाने से रोका गया, न मानने पर उनके साथ हिंसक व्यवहार किया गया। ताजा घटना में लश्कर-ए-तैयबा का हाथ बताया जा रहा है। ये लोग नहीं चाहते कि उनके समाज की महिलाएं और लड़कियां गाने-बजाने-अभिनय आदि के क्षेत्र में जाएं। इसकी मनाही वे जब-तब करते रहते हैं। जो साहस दिखा कर उनके फरमान के खिलाफ जाने की कोशिश करती हैं, उन्हें इसी तरह रास्ते से हटा दिया जाता है। इसी मानसिकता के चलते, जब शुरुआती दौर में आतंकवाद उभार पर था, कश्मीर में सिनेमाघर तक बंद करा दिए गए थे।

इस तरह लक्षित हत्याएं करके वे घाटी को मजहबी राज्य बनाने का संदेश देना चाहते हैं। मगर कश्मीर को इस रूप में ढालना संभव नहीं होगा। अलगाववाद के नाम पर बेशक वहां के लोगों को वे कुछ हद तक अपने साथ जोड़ने में सफल हो सके थे, पर सांस्कृतिक रूप से रूढ़ बनाने की कोशिशें उन्हें वहां की अवाम से दूर कर सकती हैं। अब कश्मीरी महिलाएं घर की चारदिवारी में कैद रहने को तैयार नहीं। वे मदरसों के बजाय आधुनिक स्कूलों में पढ़-लिख कर अपने ढंग से कुछ करना चाहती हैं। संगीत-अभिनय आदि के क्षेत्र में भी अपना हुनर दिखाना चाहती हैं।

उन्हें पुराने समाजों की तरह कैद करके रखना संभव नहीं है। अफगानिस्तान में तालिबान का शासन आने के बाद घाटी का मिजाज जरूर कुछ बदला है। वहां सक्रिय आतंकी संगठनों को उससे प्रेरणा मिली है। मगर वे कश्मीर घाटी में वही नुस्खे नहीं आजमा सकते, जो अफगानिस्तान में आजमाए जाते रहे हैं। कश्मीर की बड़ी आबादी आज पढ़ी-लिखी और खुल कर सोचने-समझने वाली है। उसे मजहब और संस्कृति के संकीर्ण दायरों में बांध कर नहीं रखा जा सकता।

कुछ दिनों से घाटी में कश्मीरी पंडितों को निशाना बनाया जा रहा है। इससे पहले प्रवासी मजदूरों को लक्ष्य बना कर मारा गया। तब लग रहा था कि आतंकी सुरक्षा चौकसी की वजह से सिमट रहे हैं और हताशा में ऐसे लोगों को निशाना बना रहे हैं। मगर पिछले कुछ दिनों से जिस तरह चुन-चुन कर लोगों को मार रहे हैं, उससे यही जाहिर है कि वे एक बार फिर बेलगाम हो गए हैं।

हालांकि इन घटनाओं के पीछे भी उनकी खीझ और हताशा साफ जाहिर होती है। घाटी में उन्हें पनाह देने और वित्तीय मदद पहुंचाने वालों पर नकेल कसी जा चुकी है। बहुत सारे लोग जल्दी चुनाव करा कर जम्हूरी गतिविधियां शुरू करने के पक्ष में हैं। सीमा पार से होने वाली घुसपैठ पर काफी हद तक अंकुश लग चुका है। आए दिन आतंकियों को मार गिराया जाता है। बारामूला में तीन आतंकियों का मारा जाना बिल्कुल ताजा घटना है। ऐसे में आतंकी स्थानीय लोगों में दहशत फैला कर अपनी मौजूदगी जाहिर करने की कोशिश में हैं।


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