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आदित्य चोपड़ा| संसद का सत्र चालू है और हम देख रहे हैं कि किस तरह संसद के दोनों सदनों में इकतरफा आख्यान से विधेयक पर विधेयक पारित हो रहे हैं। लोकतन्त्र में यह परिपाठी इसलिए निषेध है क्योंकि संसद की संरचना विपक्षी व सत्ताधारी दलों के सदस्यों से मिल कर बनती है, जिनका चुनाव आम जनता अपने एक वोट के पवित्र अधिकार से करती है। सत्ता पर आसीन सांसदों के साथ विपक्ष के सांसद भी जनता के प्रतिनिधि होते हैं अतः किसी भी दल की सरकार को लोकतन्त्र में जनता की सरकार कहा जाता है। इसका मतलब यही होता है कि सत्ता बेशक किसी एक दल की हो मगर उसमें साझेदारी हर मतदाता की होती है और विपक्ष की सहमति और सन्मति व सहयोग से सरकार का चलना लोकतन्त्र में इसीलिए आवश्यक होता है। इसीलिए लोकतन्त्र को दुतरफा संवाद की 'रसायन शाला' भी कहा जाता है। इस व्यवस्था में इकतरफा आख्यान की किसी भी स्तर पर गुंजाइश नहीं रहती। इसी नजरिये से हमारे पुरखे संसद चलाने के नियम बना कर गये हैं और तय करके गये हैं कि संसद पर पहला अधिकार विपक्ष का होता है। मगर यह तभी संभव है जब लोकतन्त्र में विपक्ष मजबूत होगा और उसमें सैद्धान्तिक व वैचारिक एकता भी होगी। केवल सत्ता पाने के लिए बने गठजोड़ों का हश्र दीर्घकालिक नहीं हो सकता क्योंकि राजनीति में वैचारिक मतभेद अपने रंग में किस मुद्दे पर मुखर हो जाये कुछ कहा नहीं जा सकता।