सम्पादकीय

ललितपुर गैंगरेप : चुनावी मुद्दा होने के बावजूद महिलाओं की सुरक्षा के लिए यूपी को अभी लंबा सफर तय करना है

Rani Sahu
6 May 2022 1:36 PM GMT
ललितपुर गैंगरेप : चुनावी मुद्दा होने के बावजूद महिलाओं की सुरक्षा के लिए यूपी को अभी लंबा सफर तय करना है
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ललितपुर में अनुसूचित जाति की एक लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार और बाद में थाने में उसके साथ बार-बार यौन शोषण के मामले में योगी आदित्यनाथ सरकार (Yogi Adityanath Government) शर्मसार है

एम हसन

ललितपुर में अनुसूचित जाति की एक लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार और बाद में थाने में उसके साथ बार-बार यौन शोषण के मामले में योगी आदित्यनाथ सरकार (Yogi Adityanath Government) शर्मसार है. इस मुद्दे को लेकर राज्य में बहस छिड़ गई है कि महिला सुरक्षा को लेकर बीजेपी के लंबे-चौड़े दावों में कितना दम है. महिला सुरक्षा का विषय पार्टी का एक प्रमुख चुनावी मुद्दा था. बीजेपी (BJP) हमेशा से समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) शासन (2012-17) के दौरान महिलाओं के खिलाफ अपराधों में भारी बढ़ोतरी का आरोप लगाती रही है. हालिया विधान सभा चुनाव के दौरान बीजेपी के चुनावी अभियान का एक महत्वपूर्ण मुद्दा था कि वह राज्य में "बेहतर कानून व्यवस्था सुनिश्चित करेगी जिसमें महिला सुरक्षा उसकी प्राथमिकता होगी.
इस अभियान के बदौलत राज्य में महिला मतदाता का जबरदस्त समर्थन बीजेपी को मिला. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के "सशक्त नारी, सशक्त भारत" की परिकल्पना के साथ बीजेपी ने यह दिखाने की कोशिश की थी कि यूपी में महिलाएं सुरक्षित हैं. नवंबर 2021 में लखनऊ में एक रैली को संबोधित करते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि यूपी महिलाओं के लिए बिल्कुल सुरक्षित है और वे आधी रात को भी जेवर पहनकर खुलेआम घूम सकती हैं.
सत्ताधारी दल फिलहाल बैकफुट पर है
ऐसा लगता है कि उस सुंदर तस्वीर को काफी क्रूर तरीके से झुठला दिया गया है. बीजेपी महिला मोर्चा की नेता माया नरोलिया ने भी प्रयागराज में कहा था कि जब भी हम पार्टी उम्मीदवारों के लिए प्रचार करते हैं और महिला मतदाताओं से जुड़ते हैं तो महिलाएं दावा करती हैं कि वे बीजेपी सरकार के तहत खुद को सुरक्षित महसूस करती हैं. इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं कि सत्ताधारी दल फिलहाल बैकफुट पर है. चंदौली और ललितपुर जैसी घटनाओं ने पार्टी को तगड़ा झटका दिया है. जाहिर है कि इन हादसों के मद्देनज़र सत्तारूढ़ बीजेपी को पर्याप्त और लगातार कार्रवाई करनी होगी.
जाहिर है कि समाजवादी पार्टी इस मुद्दे पर आक्रामक रूख़ अख्तियार करेगी. पार्टी ने अब योगी सरकार पर निशाना साधते हुए सोशल मीडिया पर "आज का अपराधनामा (आज का अपराध बुलेटिन)" जारी करना शुरू कर दिया है. समाजवादी पार्टी ने मेरठ-दिल्ली एक्सप्रेस-वे पर एक डॉक्टर दंपत्ति पर गुंडों द्वारा हमला, जौनपुर में एक किशोरी की कुछ गुंडों द्वारा हत्या और चंदौली में नाबालिग लड़की से बलात्कार और हत्या जैसे मामलों का उल्लेख किया है. उनका पूछना जायज है, आखिर हो क्या रहा है?
महिलाओं के खिलाफ आपराधिक मामलों की संख्या जस की तस
राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार योगी के पहले शासन (2017-22) के दौरान 14,402 बलात्कार की घटनाएं, महिलाओं के अपहरण के 51,132 मामले, बलात्कार के इरादे से महिलाओं पर हमले के 47,014 मामले और एसिड हमले के 136 मामले दर्ज किए गए थे. इसी तरह, अखिलेश यादव शासन (2012-17) के दौरान, एनसीबी ने 16,321 बलात्कार के मामले, अपहरण की 49,557 घटनाएं, बलात्कार के इरादे से हमले के 38,375 मामले और एसिड हमलों के 148 मामले दर्ज किए थे. हालांकि एनसीबी के आंकड़ों से संकेत मिलता है कि अखिलेश यादव और योगी आदित्यनाथ के शासन के दौरान महिलाओं के खिलाफ आपराधिक मामलों की संख्या में ज्यादा बदलाव नहीं आया था. फिर भी लोगों की अवधारणा बनी कि पिछले पांच वर्षों के दौरान स्थिति में सुधार आया है.
इससे स्पष्ट रूप से बीजेपी को चुनाव में बढ़त बनाने में मदद मिली. बहरहाल, पुलिस थाने कभी भी महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं रहे. यह दुखद तो है लेकिन हकीकत है. गौरतलब है कि बीजेपी उपाध्यक्ष बेबी रानी मौर्य, जो अब योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं, ने अक्टूबर 2021 में महिलाओं को बिना किसी को साथ लिए पुलिस के पास न जाने की सलाह दी थी.
उन्होंने कहा,"हालांकि थानों में महिला कांस्टेबल और इंस्पेक्टर होती हैं, फिर भी मैं महिलाओं को शाम पांच बजे के बाद वहां जाने की सलाह नहीं दूंगी." वाकई अब इससे ज्यादा क्या कहा जा सकता है. जब सरकार खुद को दोषी ठहराने जैसी बात करे. लेकिन अब जब इस मुद्दे पर सियासी गरमी काफी बढ़ गई है तो ये देखना होगा कि योगी सरकार कितनी ईमानदारी से महिलाओं की सुरक्षा के मुद्दे को उठाएगी. साथ ही पुलिस थाना जाने के डर को यदि पूरी तरह से समाप्त नहीं कर सकती है तो क्या उसे कम किया जा सकता है?
Rani Sahu

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