सम्पादकीय

जन्नत-मय्यत और जहन्नुम के बीच से गुज़रता 'लाल कश्मीर'

Gulabi
8 Oct 2021 3:10 PM GMT
जन्नत-मय्यत और जहन्नुम के बीच से गुज़रता लाल कश्मीर
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गर फिरदौस बर रुये ज़मीं अस्त/ हमी अस्तो हमी अस्त' कश्मीर के बारे में यह लाइन

संयम श्रीवास्तव।

गर फिरदौस बर रुये ज़मीं अस्त/ हमी अस्तो हमी अस्त' कश्मीर के बारे में यह लाइन आपने कई बार सुनी और पढ़ी होगी. इसका मतलब है धरती पर अगर कहीं स्वर्ग है तो यहीं है, यहीं है, यहीं है. लेकिन अब इस स्वर्ग को 90 के दशक वाली काली नज़र लग रही है. जन्नत-मय्यत और जहन्नुम के बीच से गुजरता लाल कश्मीर (Kashmir) इसलिए क्योंकि धरती के जिस इलाके कश्मीर को कभी जन्नत कहा जाता था आज वहां मय्यत और मातम पसरा हुआ है. आतंकियों के गोली का शिकार हुए लोगों के परिवारवाले बिलख रहे हैं और सवाल कर रहे हैं कि आखिर उनकी गलती क्या थी? जहन्नुम इसलिए क्योंकि इन सिलसिलेवार हत्याओं से अब वहां रह रही गैर कश्मीरी मुस्लिम आबादी और बाहर के लोग इस डर के साए में जी रहे हैं कि कहीं अब उनकी भी हत्या ना हो जाए. बीते एक हफ्ते में कश्मीर में 7 लोगों की हत्या कश्मीर को लाल कश्मीर बनाती है. क्योंकि इनके खून से अब कश्मीर की बर्फीली सफेद वादी चटक लाल होती जा रही है.


हालांकि किसी राज्य में हत्या होना बड़ी बात नहीं है. लेकिन किस तरह से हत्या हो रही है यह बड़ी बात होती है. कश्मीर में अब आतंकवादी लोगों से उनका नाम पूछ कर उन्हें चिन्हित कर के उनकी हत्या कर रहे हैं. 7 अक्टूबर को श्रीनगर के ईदगाह इलाके में सरकारी स्कूल के अंदर तीन आतंकवादी घुस आए. उन्होंने स्कूल के सभी स्टाफ का पहचान पत्र चेक किया और यह पुख्ता किया कि इनमें में से कितने लोग गैर कश्मीरी मुसलमान हैं. चेकिंग के बाद जब आतंकवादियों को पता चला की स्कूल की प्रिंसिपल 44 वर्षीय सुखविंदर कौर कश्मीरी सिख और उनके सहयोगी दीपक चंद कश्मीरी पंडित हैं तो उन्हें अलग कर गोलियों से भून दिया गया.


इससे पहले 5 अक्टूबर को श्रीनगर के मशहूर दवा कारोबारी माखनलाल बिंद्रू और बिहार के एक चाट विक्रेता वीरेंद्र पासवान की भी आतंकियों द्वारा गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. इसके साथ 5 अक्टूबर को ही उत्तरी कश्मीर के बांदीपोरा में मोहम्मद शफी लोन की भी हत्या हो गई, जबकि 2 अक्टूबर को श्रीनगर के चट्टाबाल निवासी माजिद अहमद गोजरी और एसडी कॉलोनी के बटमालू में मोहम्मद शफी डार की भी गोलियों से भून कर हत्या कर दी गई थी.

क्या इन हत्याओं के पीछे तालिबान और पाकिस्तान का हाथ है?
अफगानिस्तान में जब से तालिबान का कब्जा हुआ है तब से ही अनुमान लगाया जा रहा था कि कश्मीर में आतंकी गतिविधियां बढ़ेंगी और ऐसा ही हुआ. पाकिस्तान की शह पर कश्मीर में अल्पसंख्यक हिंदू और सिख समुदाय को तेजी से निशाना बनाया जा रहा है. धारा 370 हटने के बाद से ही ऐसे लोगों पर आतंकी हमले तेज हो गए हैं जिन्होंने 90 के दशक में जब आतंकवादी घटनाएं अपने चरम पर थीं तब भी घाटी को नहीं छोड़ा था. कश्मीरी पंडितों, सिखों और गैर कश्मीरी हिंदुओं को चुन-चुन कर मौत के घाट उतारा जा रहा है. सितंबर से अब तक घाटी में 5 अल्पसंख्यकों की हत्या कर दी गई है. जबकि पूरे साल के आंकड़े को देखें तो यह नंबर 9 तक पहुंच जाता है.

सबसे पहले 1 जनवरी को श्रीनगर में सोनार सतपाल निश्चल को आतंकियों ने गोली से भून डाला. इसके बाद डल गेट इलाके में मशहूर कृष्णा ढाबा के मालिक आकाश मेहरा को 17 फरवरी को गोली मार दी गई. 2 जून को त्राल में कश्मीरी पंडित बीजेपी नेता राकेश पंडित की हत्या कर दी गई. जबकि कुलगाम में सितंबर में बिहार के एक मजदूर को निशाना बनाया गया. इसके साथ 17 सितंबर को आतंकवादियों ने कुलगाम के कश्मीरी पंडित बंटू शर्मा की भी हत्या कर दी थी.

दरअसल पाकिस्तान किसी भी कीमत पर कश्मीर में उन विस्थापित कश्मीरी पंडितों को वापस नहीं आने देना चाहता जो 1990 के दशक में आतंकवादियों के डर से कश्मीर छोड़ कर चले गए थे. भारत सरकार कश्मीरी पंडितों को फिर से कश्मीर में बसाने की तैयारी तेजी से कर रही है. ऐसे में पाकिस्तान और उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई को चिंता है कि अगर कश्मीरी हिंदू दोबारा घाटी में वापस आ गए तो उसके तीन दशक की मेहनत पर पानी फिर जाएगा जो उसने ने कश्मीर को अस्थिर करने के लिए की है.

इन हत्याओं से गुस्से में हैं लोग
जम्मू कश्मीर समेत पूरे देश में इस वक्त लोग कश्मीर में हो रहे गैर कश्मीरी मुसलमानों की हत्याओं से खासा नाराज हैं. लोग इन हत्याओं की तुलना 90 के दशक जैसे हालात से कर रहे हैं. जम्मू कश्मीर पीपल्स फोरम ने जम्मू में इन हत्याओं के खिलाफ बड़ा प्रदर्शन किया. यहां तक कि सोशल मीडिया पर भी लोग इन हत्याओं के विरोध में खुलकर अपने विचार सामने रख रहे हैं. कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने भी बीजेपी सरकार पर हमला बोलते हुए इन हत्याओं को बेहद दुखदाई और हृदय विदारक बताया है. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने ट्वीट कर लिखा, 'आतंकियों द्वारा हमारे कश्मीरी बहनों-भाइयों पर बढ़ते हमले दर्दनाक और निंदनीय हैं. इस मुश्किल घड़ी में हम सब अपने कश्मीरी बहनों-भाइयों के साथ हैं. केंद्र सरकार को तुरंत कदम उठाकर सभी नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए.'

जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी ट्वीट कर कश्मीर के अल्पसंख्यक समुदाय से कहा है कि वह डर के मारे घाटी छोड़ने की ना सोचें. उमर अब्दुल्ला ने लिखा, 'मैं उन तमाम लोगों से दिल से अपील कर रहा हूं जो डर के मारे घाटी छोड़ने के बारे में सोच रहे हैं. कृपया ऐसा ना करें. आपको बाहर करके हम इन आतंकवादी हमलों को अंजाम देने वालों के नापाक मंसूबे को सफल नहीं होने दे सकते. हम लोगों में से ज्यादातर नहीं चाहते कि आप यहां से जाएं.'

जिन्होंने 90 के दशक में नहीं छोड़ा कश्मीर उन्हें अब बनाया जा रहा है निशाना
माखनलाल बिंद्रू, सतपाल निश्चल और आकाश मेहरा वह लोग थे जिन्होंने 90 के दशक में भी कश्मीर को नहीं छोड़ा था, जब आतंकवादियों के डर से लाखों कश्मीरी पंडितों ने घाटी से पलायन कर दिया था. कश्मीर में 1000 ऐसे कश्मीरी पंडित परिवार हैं जिन्होंने 90 के दशक में आतंकवादी घटनाओं के बाद भी कश्मीर न छोड़ने का फैसला लिया था. लेकिन अब इन हत्याओं की वजह से उनके अंदर भी भय का माहौल है. माखनलाल बिंद्रू के चाचा की आतंकवादियों ने 90 के दशक में उनके दुकान के बाहर ही उनकी हत्या कर दी थी. लेकिन इसके बाद भी उन्होंने यहीं रहने का फैसला किया था. यहां तक कि 7 अक्टूबर को श्रीनगर के ईदगाह इलाके में सरकारी स्कूल के अंदर जो दो हत्याएं हुईं उनमें से एक दीपक चंद हाल ही में अपने परिवार के साथ कश्मीर वापस आए थे. दरअसल दीपक चंद का परिवार उन कश्मीरी पंडितों में शामिल था जिन्होंने दशकों पहले जम्मू कश्मीर को आतंकवादियों के डर से छोड़ दिया था.

घाटी में हो रहे हमलों पर गृह मंत्रालय की नजर
कश्मीर में हो रहे सिलसिलेवार हत्याओं के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने गुरुवार को एक उच्च स्तरीय समीक्षा बैठक की. इस बैठक में आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन और संभावित खतरों को लेकर विस्तृत चर्चा हुई. इसके साथ ही पाकिस्तान की ओर से हो रही लगातार घुसपैठ की कोशिश और अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद से घाटी में बने हालात पर भी एजेंसियों ने अपने इनपुट साझा किए. गृह मंत्री अमित शाह के साथ इस बैठक में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, गृह सचिव अजय भल्ला और इंटेलिजेंस ब्यूरो के प्रमुख अरविंद कुमार के साथ-साथ सुरक्षा एजेंसियों के बड़े अधिकारी भी शामिल हुए. डीजी सीआरपीएफ कुलदीप सिंह, डीजी बीएसएफ पंकज सिंह जैसे लोग भी इस मीटिंग में मौजूद थे. 45 मिनट चली इस बैठक में कश्मीर के वर्तमान हाल और वहां हो रही लक्षित हत्याओं को लेकर विस्तृत चर्चा हुई.


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