सम्पादकीय

लक्ष्य सेन दुनिया के नंबर 1 खिलाड़ी बन सकते हैं लेकिन वो अभी शिखर से दूर हैं: प्रकाश पादुकोण

Gulabi Jagat
4 April 2022 4:49 AM GMT
लक्ष्य सेन दुनिया के नंबर 1 खिलाड़ी बन सकते हैं लेकिन वो अभी शिखर से दूर हैं: प्रकाश पादुकोण
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इस दौरे ने लक्ष्य को मनोवैज्ञानिक और मानसिक रूप से तैयार किया
– प्रकाश पादुकोण
लक्ष्य सेन (Lakshya Sen) का सफर 2010 में शुरू हुआ था. इसी साल उत्तराखंड में अपने गृहनगर अल्मोड़ा को छोड़कर वे बैंगलोर स्थित प्रकाश पादुकोण बैडमिंटन अकादमी (Prakash Padukone Badminton Academy) में शामिल हुए. दरअसल, उनके पिता धीरेंद्र कुमार सेन लक्ष्य के बड़े भाई चिराग सेन को अकादमी में दाखिला दिलाने के लिए बैंगलोर आए थे. धीरेन्द्र सेन खुद भी SAI बैडमिंटन के अच्छे कोच हैं. बहरहाल, लक्ष्य भी अपने बड़े भाई के साथ बैंगलोर गए थे. और वो भी अकादमी में शामिल होने के लिए बहुत उत्सुक थे. वो शायद दो-तीन साल से बैडमिंटन (Badminton) खेल रहे थे.
यह विमल कुमार थे जिन्होंने उन्हें सबसे पहले देखा था क्योंकि मैं शहर में नहीं था. जब मैं लौटा तो पहली बार लक्ष्य को नौ साल की उम्र में देखा. पहली बार विमल और मैंने उन्हें 2010 में अकादमी में खेलते देखा था और तभी हम जान गए थे कि लक्ष्य में चैपियन बनने की कुव्वत है. उनके खेल में कुछ खास था. उनके पास एक मजबूत फंडामेंटल और शैली थी और उनके तकनीकी में किसी तरह की कमी नहीं थी. वह उस छोटी सी उम्र में भी बिना किसी गलती के लंबे समय तक शटल को खेल में रखने में कामयाब रहते थे. दूसरी चीज जो हमने देखी, वह थी पुराने खिलाड़ियों के खिलाफ खेलते समय उनके स्ट्रोक का चयन. उन्हें बैडमिंटन कोर्ट की गहरी समझ थी क्योंकि वह सही समय पर सही स्ट्रोक का इस्तेमाल करते थे. वह अपने प्रतिद्वंद्वी को अपने बेस से हटने के लिए मजबूर कर देते थे, कोर्ट के बीच से हटा कर एक खुली जगह बना सकते थे और फिर स्ट्रोक को अंजाम देते थे जो आसान नहीं है. लक्ष्य में यह काबिलियत प्रचुर मात्रा में थी.
दीक्षा की शुरुआत
अप्रैल, 2010 में लक्ष्य अकादमी में शामिल हो गए थे. अब जब हमने एक प्रतिभा को देख लिया था तो हमने कुछ अलग करने का फैसला किया. सौभाग्य से इस बार हमारे पास फंड भी था. लगभग उसी समय हमने ओलिंपिक गोल्ड क्वेस्ट शुरू किया था जहां मैं गीत सेठी के साथ एक संस्थापक सदस्य था. हमने छात्रवृत्ति कार्यक्रम भी शुरू किया था. लक्ष्य को मदद दिलाने के लिए मैंने ओजीक्यू बोर्ड और सीईओ वीरेन [रसकिन्हा] से बात की. बोर्ड की अगली बैठक में इसे तुरंत मंजूरी दे दी गई. हमने 2010-11 में लक्ष्य को मदद देना शुरू किया था जब वे महज 10 साल के थे.
पीपीबीए में हमने जो पहला काम किया वो ये था कि हमने लक्ष्य को अप्रैल, 2011 में तीन सप्ताह के ट्रेनिंग कैम्प के लिए इंडोनेशिया के जकार्ता में कैंड्रा विजया इंटरनेशनल बैडमिंटन सेंटर में भेजा. अपने अनुभव से हमें ये एहसास हुआ था कि टूर्नामेंट खेलना एक अलग बात है लेकिन अगर हम उन्हें किसी ऐसे स्थान पर प्रशिक्षित करें जहां तीन-चार सप्ताह से अधिक समय के लिए अपने से बेहतर खिलाड़ियों के साथ खेलने का उन्हें मौका मिले तो वो निस्संदेह ही टूर्नामेंट खेलने से कहीं ज्यादा अच्छा प्रभाव डालता है.
फिर साल 2011 के नवंबर महीने में हमने उन्हें इंडोनेशिया के सुराबाया में ईस्ट जावा इंटरनेशनल टूर्नामेंट के लिए अंडर-15 वर्ग में खेलने के लिए भेजा. उस समय उनकी उम्र केवल 10 साल थी. इस टूर्नामेंट में भेजने के पीछे ये विचार था कि वो बेहतर खिलाड़ियों के साथ खेले और उसे एक्सपोजर मिले औऱ ये जरूरी नहीं कि वह टूर्नामेंट जीत ही ले. शुरू से ही हम उसे थोड़े बेहतर खिलाड़ियों के साथ खेलने का अवसर दिलाना चाहते थे. उसके तुरंत बाद दिसंबर 2011 में हमने उसे अंडर-11 वर्ग के लिए ली-निंग सिंगापुर यूथ इंटरनेशनल सीरीज़ टूर्नामेंट में भेजा. लक्ष्य ने 10 साल की उम्र में ये टूर्नामेंट जीता था. यह पहला टूर्नामेंट था जिसे लक्ष्य ने जीता था.
उसके बाद से हमने टूर्नामेंट और प्रशिक्षण शिविरों के बीच सही संतुलन रखने की कोशिश की थी. एक साल बाद लक्ष्य को ओजीक्यू स्कॉलरशिप मिल गई. तब से पीपीबीए या ओजीक्यू ने उन्हें एशिया और यूरोप में बहुत सारे टूर्नामेंट खेलने के लिए प्रायोजित किया. भले ही यूरोप का स्टैंडर्ड एशिया जितना ऊंचा नहीं है फिर भी हम उन्हें उच्च आयु वर्ग में खिलाते रहे. जब वो 13 साल के थे तो हम उसे अंडर-15 और अंडर-17 खेलने के लिए कहते. पिछले 10 सालों में भारत के लिए खेले गए टूर्नामेंटों के अलावा हमने अपने दम पर 20 टूर्नामेंट खेलने के लिए लक्ष्य को भेजा होगा.
जब वो 15-16 साल के हुए तब तक तो वो लगभग 30-35 टूर्नामेंट खेल चुके थे. मुझे लगता है कि इससे उनके करियर में काफी बदलाव आया है क्योंकि इससे उन्हें काफी आत्मविश्वास मिला है. पहले भी हमारे पास कुछ विशेष प्रतिभाएं थीं लेकिन हमारे पास उतना फंड नहीं था कि हम उन्हें अंतरराष्ट्रीय एक्सपोजर दिला सकें. अब हालात काफी बेहतर हैं क्योंकि बहुत सारी सरकारी योजनाएं हैं और कई फाउंडेशन मदद देने को तैयार हैं इसलिए फंड की उपलब्धता है. साल 2010-11 में खेल अभी बढ़ना शुरू ही हुआ था और फंड भी आने लगा था.
16 साल की उम्र में पर्सनल ट्रेनर और फिजियो
2015-16 के आसपास, हमने महसूस किया कि लक्ष्य का प्रदर्शन अच्छा है. हमने अकादमी में अच्छे प्रदर्शन के आधार पर चार खिलाड़ियों की पहचान की — किरण जॉर्ज, मीराबा लुवांग मैसनम, पीएम राहुल और लक्ष्य. उन्हें एक प्रशिक्षक और फिजियो दिया गया और उनके प्रशिक्षण के लिए अलग सत्र आवंटित किए गए. सही समय पर ये कदम उठाना काफी महत्वपूर्ण है. मदद सही समय पर आना चाहिए. मैं यह नहीं कह रहा हूं कि जिन लोगों का भी हमने चयन किया है वो सभी समान स्तर पर पहुंचेंगे . असफलताएं होंगी, निराशाएं होंगी लेकिन उनमें से अधिकांश अच्छा करेंगे.
जब लक्ष्य 16-17 साल के थे, तब हमने ओजीक्यू से बात की और उन्हें एक पर्सनल ट्रेनर और फिजियो दिया. लक्ष्य टूर्नामेंट या प्रशिक्षण शिविर जहां भी गए उनके साथ एक ट्रेनर और फिजियो साथ होता था. शायद, भारत में पहली बार किसी 16 साल के लड़के की पहचान की गई और उसे इस तरह की सुविधा दी गई.
जब आप पीवी सिंधु या साइना नेहवाल या किदांबी श्रीकांत के स्तर पर पहुंच जाते हैं तो आप एक पर्सनल ट्रेनर और फिजियो की मांग कर सकते हैं. लक्ष्य ने बहुत कुछ हासिल नहीं किया था लेकिन केवल उसकी क्षमता के आधार पर हमने उसे यह सुविधा प्रदान की. मुझे याद है कि कुछ लोगों ने मेरे इस कदम की आलोचना करते हुए कहा था कि "हम कुछ ज़्यादा ही कर रहे थे" लेकिन हमें इस तरह का प्रयोग करना था. मैं यह नहीं कह रहा हूं कि हमने जो भी फैसला लिया वो सही था, लेकिन हमें इस तरह का प्रयोग करना होगा, दूसरे लोगों ने जो किया है उससे आपको सीखना होगा, दूसरे खेलों में हो सकता है, दूसरे देशों में हो सकता है और क्या यह भारतीय परिस्थितियों में उपयुक्त है.
इससे भी हमें मदद मिली क्योंकि ट्रेनर और फिजियो दोनों ही उसके प्रशिक्षण पर ध्यान देते थे खास तौर से जब वे उसे शारीरिक रूप से मजबूत बनाने के लिए वेट ट्रेनिंग दे रहे होते थे. इससे ट्रेनर और फिजियो को भी अंतरराष्ट्रीय एक्सपोजर मिला और उन्हें आगे बढ़ने में मदद मिली. वे डेनमार्क, पेरिस और थाईलैंड गए और इन सभी यात्राओं ने उन्होंने बहुत कुछ सीखा.
हालिया परिवर्तन
मुझे व्यक्तिगत रूप से लगता है कि लक्ष्य का हालिया विकास और फॉर्म ( लक्ष्य ने 2021 के पहले तीन महीनों में विश्व नंबर 1 और विश्व चैंपियन सहित शीर्ष -10 खिलाड़ियों को हराया) दो कारणों से है. एक तब था जब उन्हें थॉमस कप टीम से [अगस्त 2021 में] हटा दिया गया था. भले ही लक्ष्य कहते हैं कि वह निराश नहीं हुए लेकिन मुझे लगता है कि इससे वो वास्तव में दुखी थे. भले ही सेलेक्शन ट्रायल में उनका एक खेल खराब हो गया था लेकिन वो अच्छी फॉर्म में थे.
इससे पहले उन्होंने एशियाई चैंपियनशिप में जोनाथन क्रिस्टी (तब विश्व नंबर 7) जैसे खिलाड़ियों को हराया था. विश्व रैंकिंग के लिहाज से वो 30 की दहाई में थे और इसको लेकर वो काफी दुखी भी रहते थे. लेकिन उन्होंने न तो इसे कभी स्वीकारा और न ही इसके बारे में ज्यादा बात की. मैं अपने स्वयं के अनुभव से कल्पना कर सकता हूं कि जब ऐसी कोई घटना घटती है तो आप वास्तव में प्राधिकरण को दिखाना चाहते हैं कि उन्होंने जो निर्णय लिया वह सही नहीं था. हो सकता है कि वह एक पहलू रहा होगा. दूसरा यह था कि सितंबर 2021 में दुबई में वर्ल्ड नंबर 1 विक्टर एक्सेलसन के साथ दो सप्ताह का प्रशिक्षण आयोजित किया गया था. इस प्रशिक्षण को इंफोसिस फाउंडेशन ने प्रायोजित किया था.
ये दो फैक्टर लक्ष्य के लिए टर्निंग पॉइंट थे. दोनों ने उन्हें अलग-अलग चीजें सिखाईं – एक था थॉमस कप टीम में शामिल न होना और अपने को साबित करने के लिए उन्हें कड़ी मेहनत करनी पड़ी. जब उन्होंने एक्सेलसन के साथ जाकर प्रशिक्षण लिया तो वो पहली बार विश्व नंबर 1 और ओलिंपिक चैंपियन के साथ प्रशिक्षण ले रहे थे. जब आप ऐसे खिलाड़ियों के साथ लगातार दो-तीन हफ्ते ट्रेनिंग लेते हैं तो इससे फर्क तो पड़ता ही है.
आप उनका रवैया, प्रतिबद्धता और पेशेवर दृष्टिकोण देखते हैं. इसलिए, मुझे लगता है कि यह सब देखने के बाद, लक्ष्य को तुरंत ही ये एहसास हुआ कि टॉप-10 या टॉप-5 में होने के लिए उसे अपना रवैया पूरी तरह से बदलना होगा. यह सिर्फ वही नहीं है जो उसने कोर्ट पर सीखा, बल्कि मुझे लगता है कि उसने कोर्ट के बाहर भी जो सीखा उसने भी एक बड़ी भूमिका निभाई है.
इस दौरे ने लक्ष्य को मनोवैज्ञानिक और मानसिक रूप से तैयार किया. उन्होंने एक ओलिंपिक स्वर्ण पदक विजेता एक्सेलसन को करीब से देखा था- वो कैसे तैयारी करते हैं, किस समय उठते हैं, नाश्ते में क्या खाते हैं, कैसे आराम करते हैं और कैसे रिकवर करते हैं. मुझे नहीं लगता कि तीन सप्ताह तक वहां रहने और एक्सेलसन और लोह कीन यू जैसे खिलाड़ियों के साथ प्रशिक्षण लेने से बेहतर कुछ और हो सकता है. लोह कीन यू भी वहां प्रशिक्षण ले रहे थे.
मुझे भी कुछ ऐसा ही अनुभव हुआ था. जब मैं 1977 में प्रशिक्षण के लिए इंडोनेशिया गया था, तो यह मेरे करियर का एक महत्वपूर्ण टर्निंग प्वाइंट था. सात साल तक राष्ट्रीय चैंपियन रहने के बावजूद मैंने कुछ खास नहीं किया था. लेकिन मेरे लिए बहुत चीजें बदल गईं जब मुझे इंडोनेशिया में राष्ट्रीय टीम के साथ आठ सप्ताह के प्रशिक्षण शिविर में रहने का मौका मिला. इसने मुझे बहुत आत्मविश्वास दिया. शुरुआत में पहले हफ्ते में मैं उनसे बहुत बुरी तरह हारता था लेकिन आठवें हफ्ते के अंत में मैंने उन्हें हराना शुरू कर दिया था. मैंने उन्हें बहुत करीब से देखा था और इससे मुझे इस बात की जानकारी मिली कि दुनिया में नंबर 1 खिलाड़ी बनने के लिए क्या करना चाहिए. मुझे यकीन है कि लक्ष्य भी कुछ ऐसा ही अनुभव कर रहे होंगे.
दक्षिण कोरियाई कोच को शामिल करना
हमें करीब एक साल पहले एहसास हुआ कि हमें एक विदेशी कोच की जरूरत है. हमने महसूस किया कि एक विदेशी कोच हमारे प्रशिक्षण कार्यक्रम की गुणवत्ता को बढ़ाएगा. पहले पैसों की कमी के कारण हम विदेशी कोच नहीं रख पाते थे. सौभाग्य से, इंफोसिस फाउंडेशन की मदद हमें सही समय पर मिली. फाउंडेशन 2019 से हमारा मुख्य प्रायोजक है और 2024 पेरिस ओलिंपिक तक पांच साल की अवधि के लिए हमारी मदद करते रहेंगे. उनके वित्तीय समर्थन ने हमें एक अच्छे विदेशी कोच की तलाश करने में मदद की.
लगभग 12-14 पूर्व अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों ने कोच पद के लिए आवेदन किया था. हमने अंत में यू योंग-सुंग को शॉर्टलिस्ट किया, जो उस समय चीन की महिला युगल टीम को कोचिंग दे रहे थे.
वो थोड़े महंगे जरूर थे क्योंकि उन्होंने जोड़ी स्पर्धा में दो बार ओलिंपिक रजत पदक जीता था. तीन-चार लोगों की हमारी कमेटी ने जूम पर उनका इंटरव्यू लिया. यू के अनुभव, समर्पण और दूरदृष्टि ने हमें वास्तव में प्रभावित किया. हमें किसी ऐसे व्यक्ति की तलाश थी जो बहुत अनुशासित हो और अकादमी के खिलाड़ियों को उच्चतम स्तर पर पदक जीतने में मदद करने के लिए समर्पित हो. हम उनकी प्रतिबद्धता के स्तर से खुश हैं. एक दिन में तीन सत्र होते हैं और हर सत्र के लिए वे वहां होते हैं , चाहे वह मैदान पर हो, जिम हो या कोर्ट.
कार्य प्रगति पर है
किसी ने मुझसे पूछा 'क्या लक्ष्य अपने शिखर पर है?' वह अपने शिखऱ के आस पास भी नहीं है. कोर्ट में और शारीरिक तौर पर बहुत सारे ऐसे इलाके हैं जहां सुधार की आवश्यकता है. ताकत और धीरज दो ऐसे क्षेत्र हैं जहां उन्हें काम करने की जरूरत है और यही बात दक्षिण कोरियाई कोच यू भी कह रहे हैं. बेशक, यह एक लंबी अवधि की प्रक्रिया है क्योंकि इसमें कुछ सुधार दिखाने में कम से कम एक साल का समय लगेगा. लक्ष्य को प्रशिक्षण के लिए लगातार एक या दो महीने का समय नहीं मिलेगा क्योंकि बीच – बीच में हमेशा टूर्नामेंट होते रहते हैं.
सामान्य तौर पर, भारतीय खिलाड़ी लगभग 25-26 वर्ष की आयु में शिखर पर होते हैं . बेशक, सिंधु और साइना इसके अपवाद हैं. लेकिन अगर खिलाड़ियों को सही तरह का प्रशिक्षण, एक्सपोजर और वित्तीय सहायता दी जाती है तो वे 22 के आसपास शिखर पर जा सकते हैं. सभी को इस तरह की मदद नहीं मिल सकती है और जिन्हें इस तरह का समर्थन नहीं मिलेगा उन्हें चोटी तक जाने में समय लगेगा ही. संभवतः उन्हें परिपक्व होने में तीन-चार वर्ष अधिक लग सकते हैं.
चालाकी का खेल
जहाँ तक कोर्ट के कौशल की बात है तो लक्ष्य में अभी सुधार की काफी गुंजाइश है. उसे और अधिक विविधता और स्ट्रोक में भी सुधार लाने की जरूरत है. मुझे लगता है कि उन्हें चालाकी से स्ट्रोक खेलने पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए. भ्रामक कौशल एक ऐसी चीज है जो भारतीय खिलाड़ियों में स्वाभाविक रूप से आती है. आजकल, कई अन्य खिलाड़ी जैसे ताइवान के ताई त्ज़ु-यिंग और थाईलैंड के इंतानोन रत्चानोक ने धोखे का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है.
लाजिमी है कि इसमें काफी अभ्यास की जरूरत होती है . लेकिन क्या होता है कि जब आप अपनी गति पर अधिक काम करते हैं और तेजी से खेलने की कोशिश करते हैं तो धोखा थोड़ा पीछे रह जाता है. तेजी से खेलना और साथ ही भ्रामक होना बेहद मुश्किल है. इसके लिए बहुत अभ्यास की जरूरत है. यदि आप गति और चालाकी दोनों को मिला दें , तो आप विश्व विजेता बन सकते हैं. यह एक ऐसी चीज है जिस पर लक्ष्य काम कर सकता है औऱ ये बेसलाइन और नेट दोनों से हो सकता है.
लक्ष्य को अपने खेल में थोड़ी अधिक विविधता और कुछ और स्ट्रोक जोड़ने की जरूरत है. केंटो मोमोटा या एक्सेलसन जैसे स्थापित खिलाड़ी उसके खेल को समझते हैं. यही वजह है कि एक्सेलसन ने ऑल इंग्लैंड फाइनल में लक्ष्य को बेसलाइन पर ही रोक रखा था. इसलिए, उसे यह अनुमान लगाने और खेल में अधिक विविधता लाने की जरूरत है.
लक्ष्य अभी छोटा है औऱ सीख रहा है. यह महत्वपूर्ण है कि वह हर कोने से चार-छह स्ट्रोक खेलने में सक्षम हो. अपने नेट गेम के लिए , उसके पास फोरहैंड और बैकहैंड दोनों से तीन-चार अलग-अलग विविधताएँ होनी चाहिए और इसी तरह बेसलाइन पर उसके पास पाँच-छह विकल्प होने चाहिए. उन्हें डाउन-द-लाइन और क्रॉस दोनों ही जगहों से स्ट्रेट ड्रॉप, क्रॉस ड्रॉप, स्ट्रेट क्लियर, क्रॉस क्लियर और स्मैश पर काम करने की आवश्यकता है. उसके पास ज्यादा से ज्यादा स्ट्रोक होने चाहिए और बिना गलती किए आत्मविश्वास के साथ स्ट्रोक लगाने में सक्षम होना चाहिए.
जब आपके पास अधिक विकल्प हों तो आप दांव लगा सकते हैं और आपके प्रतिद्वंद्वी सिर्फ अनुमान ही लगाते रह सकते हैं. जब आपके पास बहुत सारी विविधताएं होती हैं तो विरोधियों को यह नहीं पता होता है कि आप लाइन पर सीधे स्ट्रोक मार रहे हैं या क्रॉस कर रहे हैं. संक्षेप में, उसे अपने स्ट्रोक में धोखे और थोड़ी अधिक विविधता जोड़ने की जरूरत है.
ओलिंपिक का सपना
मुझे लगता है कि हमें ओलिंपिक पर ज्यादा ध्यान नहीं देना चाहिए . बेशक, हर कोई ओलिंपिक स्वर्ण पदक जीतने के लिए खेल रहा होता है. यह किसी भी खेल में सर्वोच्च सम्मान है, यह सबसे प्रतिष्ठित है और चार साल में एक बार आता है. मैं चाहूंगा कि लक्ष्य ओलिंपिक को किसी अन्य बड़े टूर्नामेंट की तरह ही मानें और इसे खास न बनाएं .मैं नहीं चाहता कि वह खुद पर कोई अतिरिक्त दबाव डाले. तभी अच्छा करने के बेहतर मौके मिलते हैं. कहना जितना आसान होता है उतना करना नहीं. मैंने [पीवी] सिंधु से भी इसका जिक्र किया था.
लक्ष्य को किसी भी अन्य टूर्नामेंट जैसे ऑल इंग्लैंड या इंडोनेशिया ओपन या विश्व चैंपियनशिप की तरह ही ओलिंपिक के बारे में सोचने की जरूरत है. ओलिंपिक में आप सभी एक जैसे खिलाड़ी से मिलते हैं. ओलिंपिक में आपको मानसिक रूप से मजबूत होना होता है. यहां सिर्फ आपका खेल ही मायने नहीं रखता है. यहां सब दबाव झेलने के बारे में है. जो दबाव को बेहतर तरीके से संभालता है वो जीत जाता है. तो, यह पूरी तरह से यही है कि आप दबाव को कैसे संभालते हैं. ओलंपिक महत्वपूर्ण है और खिलाड़ी को इसके बारे में जानना चाहिए लेकिन इस हद तक नहीं चले जाएं कि अगर आप ओलंपिक नहीं जीत पाए तो बाकी सब कुछ बेकार है.
भविष्य की योजना
मैं चाहता हूं कि लक्ष्य वर्ल्ड नंबर 1 बने. यह निश्चित रूप से मुमकिन है, एक बड़ी संभावना है. लेकिन रैंकिंग से ज्यादा मैं चाहूंगा कि वो वर्ल्ड चैंपियनशिप, ऑल इंग्लैंड, ईयर-एंड वर्ल्ड टूर फाइनल्स, इंडोनेशियन ओपन और ओलिंपिक जैसे बड़े टूर्नामेंट जीतें. जब आप ऐसा करते हैं तो स्वतः आपकी रैंकिंग बढ़ जाती है . गौरतलब है कि बीडब्ल्यूएफ वर्ल्ड टूर सुपर-1000 टूर्नामेंट में अधिक अंक होते हैं.
अगर मैं उनकी जगह होता तो मैं उन बड़े टूर्नामेंट को जीतने पर ध्यान देता. यही हम लक्ष्य को हमेशा बताते रहते हैं. उनके लिए ये जरूरी है कि वो चोटिल न हों. ऐसा उन्होंने खुद एक इंटरव्यू में कहा था. उसे बड़े टूर्नामेंटों पर ध्यान केंद्रित करने, रिकवर होने और फिर अगले बड़े टूर्नामेंट को जीतने की जरूरत है.
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