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- लक्ष्मण रेखा
Written by जनसत्ता; उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश जेपी पारदीवाला ने कहा है कि देश में डिजिटल तथा सोशल मीडिया का राजनीतिक दुरुपयोग हो रहा है। सोशल मीडिया के विनियमन की आवश्यकता है। किसी को भी लक्ष्मण रेखा पार नहीं करनी चाहिए। मगर अफसोस की बात यह है कि कोई भी इसकी परवाह नहीं करता। आखिर देश चलाने के लिए संविधान है।
अगर कोई समस्या है तो न्यायालय का दरवाजा खटखटा कर न्याय मांगा जा सकता है। किसी को भी किसी समुदाय विशेष के खिलाफ अमर्यादित तथा भड़काऊ भाषण करने की आवश्यकता नहीं। हमें ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए, जिससे देश में भाईचारा, धर्मनिरपेक्षता, शांति तथा संविधान का अतिक्रमण होता हो।
अभी उदयपुर में हुई बर्बर हत्या के घाव सूखे नहीं थे कि महाराष्ट्र के अमरावती में दवा व्यवसायी की हत्या का रूह को कंपा देने वाला मामला सामने आ गया। अगर देश में ऐसे ही चलता रहा, तो यह सिलसिला थमने वाला नहीं है। इतनी झकझोर देने वाली घटनाओं के बाद भी सोशल मीडिया पर आग उगलने वाली पोस्टें कम नहीं हो रही हैं। यह कटु सत्य है कि जिस तरह गंदगी को गंदगी से साफ नहीं किया जा सकता, उसी प्रकार आग को आग से नहीं बुझाया जा सकता, उसके लिए पानी की जरूरत होती है। यह समय नफरत और जहरीले सोच को रोकने का है।
इसके लिए चाहे हिंदू हो या मुसलमान, उनके सर्वेसर्वा और प्रगतिशील सोच वालों को आगे आकर सकारात्मक सामूहिक प्रयास करना होगे। अन्यथा जो सिलसिला चल रहा है वह थमने वाला नहीं है। क्योंकि आग में पानी डालने वाले कम, घी डालने वाले ज्यादा हैं, जो चुप नहीं बैठ रहे हैं। यही हिंदुस्तान की नियति बनता जा रहा है, जो किसी भी दृष्टि से राष्ट्रहित में नहीं है।
इंसान ने अपनी सुविधा बढ़ाने के लिए बहुत-सी नई चीजों का निर्माण तो कर लिया है, लेकिन इनमें से बहुत-सी ऐसी वस्तुएं भी हैं, जो हमारे लिए ही नहीं, बल्कि बाकी प्राणी जाति के साथ पर्यावरण के लिए भी घातक हैं। इन वस्तुओं में से एक है, एकल उपयोग वाला यानी सिंगल यूज प्लास्टिक।
केंद्र सरकार ने इसके हानिकारक प्रभावों को देखते हुए पहली जुलाई से सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगा दिया है। अब यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि केंद्र सरकार के इस प्रतिबंध को राज्य सरकारें अपने यहां कितनी गंभीरता से लागू करती हैं, क्योंकि हमारे देश में हर मुद्दे पर संकीर्ण राजनीति होती आई है। इसमें आमजन कितना भागीदारी करता है, यह भी देखना होगा।
सिंगल यूज प्लास्टिक हर तरह से नुकसानदेह है। सीवर में पालीथिन जाने से वह जाम हो जाता है, धरती में दबने से धरती के नीचे बारिश के पानी को जाने से रोकता है, क्योंकि जब कूड़े-कर्कट के साथ यह धरती की सतह पर दब जाता है तो यह पानी को जमीन के अंदर नही जाने देता। इसे जलाने से वायु प्रदूषण, पशुओं द्वारा खाए जाने पर पशुओं की जान के लिए खतरा, इसमें खाने-पीने की चीजें डालने से हमारी सेहत का दुश्मन। कृषि की पैदावार पर इसका बुरा प्रबाव पड़ता है, उत्पादन क्षमता को कम करता है, और भी न जाने कितने इस प्लास्टिक के दुष्प्रभाव हैं।
कुछ लोगों पर आधुनिकता और फैशन का भूत इस कदर चढ़ा है कि वे बाजार से सामान लाने के लिए कपड़े के थैले का प्रयोग करना अपनी शान के खिलाफ समझते हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार देश में सबसे ज्यादा प्लास्टिक कचरा बोतलों का भी होता है, देश के नागरिक और विदेशी लोग भी जब किसी पर्यटन स्थल में आते जाते हैं, तो ये भी पानी की प्लास्टिक की बोतलों को इधर-उधर फेंक कर प्लास्टिक कचरे को बढ़ाते हैं। पर्यटन स्थलों में प्लास्टिक बोतलों के ढेर देखे जा सकते हैं। सरकार को इसके लिए भी सख्त कदम उठाने चाहिए, ताकि पर्यटक पर्यटन स्थलों की सुंदरता को ग्रहण न लगा पाएं और पर्यावरण को नुकसान पहुंचा पाएं।