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जनता से रिश्ता वेबडेस्क | कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के कारण देश गहन संकट में है, लेकिन राजनीतिक वर्ग के रुख-रवैये से यह बिल्कुल नहीं लगता कि वह इस मुसीबत का मिलकर सामना करने को तैयार है। कोरोना के कहर से बचने के लिए उठाए जा रहे कदमों के बीच केंद्र और राज्यों के बीच तकरार और टकराव का सिलसिला किस तरह खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है, इसका नया उदाहरण है झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का यह ट्वीट कि प्रधानमंत्री से फोन पर बात की तो उन्होंने काम की बात करने या सुनने के बजाय केवल अपने मन की बात की। पता नहीं उन्होंने ऐसा क्यों कहा? कारण जो भी हो, ऐसे कथन की आवश्यकता नहीं थी, क्योंकि यह वक्त कोरोना संक्रमण से उपजी महामारी से लड़ने का है, न कि प्रधानमंत्री से। शायद यही कारण रहा कि भाजपा नेताओं के साथ-साथ दूसरे दलों के नेताओं ने भी उन्हें नसीहत दी। दुर्भाग्य से संकट की गंभीरता की अनदेखी करने का यह इकलौता प्रसंग नहीं। क्या इसकी अनदेखी की जा सकती है कि इन दिनों राहुल गांधी केवल यह बताने में लगे हुए हैं कि प्रधानमंत्री निष्क्रिय और नाकाम हैं। शायद ही कोई दिन ऐसा जाता हो, जब वह केंद्र सरकार की निंदा न करते हों। जब वह ऐसा नहीं कर रहे होते तो प्रधानमंत्री पर कटाक्ष कर रहे होते हैं। मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा करने की ललक में वह यह भी भूल जाते हैं कि उन्होंने चार दिन पहले क्या कहा था?