सम्पादकीय

सुरक्षा सरोकारों के अभाव

Rani Sahu
5 Jun 2023 6:58 PM GMT
सुरक्षा सरोकारों के अभाव
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By: divyahimachal
बालासोर रेल हादसे से सुरक्षा का मुद्दा उभरा है, जिसका सरोकार लापरवाही से ही है। इसके मद्देनजर भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) और रेलवे की संसदीय स्थायी समिति की रपटें गौरतलब हैं। दिसंबर, 2016 और मार्च, 2023 में दोनों संस्थाओं ने रेलवे में सुरक्षा के साथ खिलवाड़ को बार-बार उठाया है। कैग और संसदीय स्थायी समिति की तीन रपटों के निष्कर्ष हैं कि रेलवे में सुरक्षा मानकों के अभाव रहे हैं। यह आंतरिक प्रोटोकॉल के भी खिलाफ है। रेलवे में सुरक्षा के अग्रिम और केंद्रीय सरोकारों की कमी हमेशा रही है। रेलवे सरीखे विराट मंत्रालय में ऐसी लापरवाही और विसंगतियों का नतीजा बालासोर रेल हादसा हो सकता है? क्या रेलवे यात्रियों को ‘लाश’ बनाने को ही बना है? यह सवाल भी है और जिज्ञासा भी है। 2017-18 में रेल सुरक्षा की चुनौतियों के मद्देनजर ‘राष्ट्रीय रेल संरक्षा कोष’ की स्थापना के साथ महत्वपूर्ण शुरुआत की गई थी।
सुरक्षा संबंधी कामों को व्यवस्थित, चरणबद्ध और एक निश्चित प्रणाली के तौर पर अंजाम दिया जाना था। अधिकतर फंडिंग आम बजट के जरिए तय की गई थी, ताकि संसाधनों का प्रवाह निरंतर और स्थिर बना रहे। मार्च, 2023 में रेलवे संसदीय स्थायी समिति ने अपनी रपट में खुलासा किया कि पैसा प्राथमिक समस्या कभी नहीं रहा, लेकिन एक बार भी सालाना कोष पूरी तरह खर्च नहीं किया गया। नतीजतन बीते 6 साल के दौरान 1127 रेल हादसे हुए और 370 बार टे्रन की बोगियां पटरी से उतरीं। मोदी सरकार संसद के भीतर और बाहर दावा करती रही है कि रेल सुरक्षा पर 1 लाख करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे। सरकार ने कितनी राशि आवंटित की और रेलवे ने कितना खर्च किया, अब देश को यह स्पष्टीकरण तो देना ही पड़ेगा।
यदि विपक्षी कांग्रेस और पूर्व रेल मंत्री ममता बनर्जी सुरक्षा के सरोकारों को उठा रहे हैं और बालासोर रेल त्रासदी के असल आंकड़ों पर सवाल कर रहे हैं, तो बुनियादी तौर पर वे गलत नहीं हैं। ममता तथा एक और पूर्व रेल मंत्री नीतीश कुमार के कार्यकालों के दौरान कितनी रेल दुर्घटनाएं हुईं और कितने लोगों की जिंदगियां समाप्त हो गईं, यह तुलना करने से कोई लाभ नहीं है। अब रेल मंत्री भाजपा के हैं और देश के प्रधानमंत्री भी भाजपा के हैं, लिहाजा जिम्मेदारी उनकी ही है। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने प्राथमिक जांच के कुछ निष्कर्षों को साझा किया है कि इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग से छेड़छाड़ की गई है अथवा उसमें बदलाव किया गया है, नतीजतन टे्रन मेनलाइन छोड़ कर लूप लाइन में चली गई और मौजूदा रेल हादसा हुआ। सिग्नल को लेकर भी छेड़छाड़ की गई है, लिहाजा सीबीआई जांच का मंत्रालय और बोर्ड का निर्णय सटीक है, लेकिन जांच पूरी होने के बाद रेल मंत्री यह खुलासा करने का भी कष्ट करें कि सुरक्षा व्यवस्था से ऐसी छेड़छाड़ किस तरह संभव है, क्या उसकी उच्चस्तरीय जिम्मेदारी किसी भी वरिष्ठ अधिकारी की नहीं है? ऐसा करने वाली चिह्नित ‘काली भेड़ें’ कौन हैं।
Rani Sahu

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