सम्पादकीय

मेहनतकश को मिले मान

Subhi
28 Nov 2022 5:50 AM GMT
मेहनतकश को मिले मान
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बल्कि हजारों सालों से विकसित हुई मानव सभ्यता और हर कदम पर नया कुछ ईजाद करने और जीवन को सरल, सुविधाजनक बनाने की कोशिश में लगे हर उस जीवधारी की जिद है कि सबके लिए क्या और कैसे बेहतर हो और उसमें हमारा क्या योगदान रहे।

मोहन वर्मा: बल्कि हजारों सालों से विकसित हुई मानव सभ्यता और हर कदम पर नया कुछ ईजाद करने और जीवन को सरल, सुविधाजनक बनाने की कोशिश में लगे हर उस जीवधारी की जिद है कि सबके लिए क्या और कैसे बेहतर हो और उसमें हमारा क्या योगदान रहे।

प्रकृति की अनुपम कृति मनुष्य ने हजारों सालों की इस विकास यात्रा में ईश्वर प्रदत्त सारे गुणों और अवगुणों के साथ हर पल कुछ नया रचा है। आदिमानव से मानव और मानव से सभ्य मानव बनने की यह यात्रा बेहतर कर गुजरने की जिद का ही परिणाम है, जिसने पत्थर से आग, पेड़ों से सुविधा, पानी से बिजली और जमीन से अन्न के साथ जीवन के लिए जरूरी सारी चीजें जुटाई। अपनी बुद्धि और दिमाग का उपयोग करते हुए न सिर्फ चांद तक जा पहुंचा, बल्कि लगातार इतना कुछ करने को आतुर नजर आता है कि विधाता भी एकबारगी मनुष्य की बुद्धि का लोहा मानता होगा।

विश्व के तमाम देशों के साथ जब हम अपने देश की बात करते हैं तो सैकड़ों सालों की दासता के बाद भी हमारा हर कदम बेहतर के लिए रहा है। इसी बेहतरी की जिद, आत्मसम्मान और अपनी मिट्टी, अपने देश से प्यार का नतीजा ही है जो लाखों लोगों की शहादत के कारण हम गुलामी की जंजीरों से मुक्त होकर न सिर्फ खुली हवा में सांस ले रहे हैं, बल्कि एक दूसरे के कंधे से कंधा मिलाकर विकास की एक नई इबारत भी लिख रहे हैं। आजादी के इन बीते पचहत्तर सालों में देश को देश बनाने वालों ने अथक मेहनत की है और उसी का नतीजा है कि आज विश्व का हर देश हमारे जीवट का लोहा मानता है।

आजादी के समय से आगे बढ़ते हुए हम अल्पविकसित देश से विकासशील देश की इबारत लिख रहे हैं और ये इबारत हर उस व्यक्ति द्वारा लिखी जा रही है जो देश को बेहतर देश बनाकर विश्व के सामने एक मिसाल कायम करना चाहता है। कल तक जो लोग भारत को भिखारियों और मदारियों का देश कहकर मजाक उड़ाते थे, आज हमारी उपलब्धियों पर आश्चर्य के साथ हमारी सराहना करते हैं। हर देशवासी अपने अपने मोर्चे पर रात-दिन देश को बेहतर देश बनाने में जुटा है।

तमाम रूढ़ियों, अंधविश्वासों, सामाजिक असमानता जैसी बुराइयों से तेजी से उपर उठते हुए एक आदर्श समाज की स्थापना में जन-जन की भागीदारी है और देश को बेहतर देश बनाने में कोई इन बुराइयों के खिलाफ लगातार अलख जगाए है तो कोई मनुष्यता का दामन थामे निस्वार्थ भाव से कहीं न कहीं किसी न किसी जरूरतमंद की मदद कर रहा है। अपने-अपने क्षेत्र में पारंगत होकर कोई देश में तो कोई देश की सीमाओं से आगे जाकर विश्व में देश का नाम रोशन कर रहा है।

दुर्गम स्थितियों में भी देश की सीमाओं पर डटे रहकर दुश्मनों की नापाक चालों से देश को बचाए रखकर देश को देश बनाए रखने वाले जाबांज सैनिक हों या आंतरिक दुश्मनों के मंसूबों को नाकामयाब करने वाले सजग प्रहरी, घने जंगलों में सड़कों का जाल बिछाकर, अट्टालिकाओं, बांधों और अकल्पनीय बांधकाम से जीवन को सुगम बनाने वाले मजदूर हों, लोगों को अशिक्षा के अंधकार से बाहर लाकर रोशनी दिखाने वालें अध्यापक हों या हारी-बीमारी में पस्त होते देशवासियों की चिकित्सा में रात-दिन जुटी चिकित्साकर्मियों की टीम हो, देश को स्वच्छ बनाए रखने में अलसुबह झाड़ू बुहारते लोग हों या निस्वार्थ भाव से समाजसेवा में लगे लोग। ये सब हमारे प्रेम और सम्मान के सुपात्र हैं।

वर्तमान समय में जबकि लोग सोशल मीडिया के जाल में जकड़े हैं, संवेदनहीनता बढ़ती जा रही है, स्वार्थपरक सोच के कारण लोग यह मानने लगे हैं कि सब अपनी अपनी रोजी-रोटी से जुड़े हैं, सब आजाद हैं, हमें आजादी की कीमत समझनी होगी। देश के ऊंचे उठने के इस समय में उन लोगों को अपेक्षित सम्मान देना होगा जो उपेक्षित हैं, मगर देश को देश बनाने में रात-दिन जुटे हैं। उनमें भी खासकर उन लोगों के प्रति सम्मान और आदर भावना की जरूरत है जो घर-बार छोड़कर दूरदराज अपने अपने मोर्चों पर डटे हैं।

जो बेहद छोटे-छोटे काम करने वाले हैं, आमतौर पर उन्हें बार-बार अपमान और तिरस्कार भी सहना पड़ता है। बल्कि उनके सिर्फ गरीब होने की वजह से उनके खिलाफ हमारे मन में जो धारणाएं बन जाती हैं, वे कहीं न कहीं हमारे ही मनुष्य स्वरूप को कमतर करती हैं। हम सुरक्षित, शिक्षित, साफ, स्वच्छ और स्वस्थ बनाए रखते हुए देश को देश बनाने में जो अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं, जमीन से जुड़े ऐसे लोगों का सम्मान हमारी प्राथमिकता होना चाहिए, यही मनुष्यता की निशानी है।


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