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राजनीति की रोटियां
पंजाब की सियासी आंच में न सिर्फ सूबे की कांग्रेसी राजनीति में बल्कि देश के भीतर से लेकर बाहर तक सियासी रोटियां सेंकी जा रही हैं। अगर सूत्रों की मानें तो पंजाब के सियासी घटनाक्रम के तार न सिर्फ पंजाब और दिल्ली से बल्कि देश के बाहर अमेरिका और कनाडा तक से जुड़े हुए हैं। वहीं पंजाब के मुद्दे को लेकर कांग्रेस के भीतर का घमासान भी तेज हो गया है और एक बार पार्टी नेतृत्व के समर्थन और विरोध की खेमेबंदी तेज हो गई। उधर भाजपा से नजदीकियां बढ़ाकर अमरिंदर अपने सियासी और निजी हित दोनों साधने में जुटे हैं।
दरअसल कैप्टन अमरिदंर सिंह और भाजपा के बीच यह खिचड़ी तब पकनी शुरू हुई जब कई महीनों पहले किसान आंदोलन की तेजी के दौर में अचानक एक दिन कैप्टन दिल्ली आकर गृह मंत्री अमित शाह से मिलकर गए थे। बताया जाता है कि कैप्टन और गृह मंत्री के बीच पुल का काम अमरिदंर के एक बेहद भरोसेमंद पंजाब कैडर के अधिकारी और केंद्र सरकार के एक बेहद ताकतवर शख्स ने किया। पंजाब कैडर के उक्त अधिकारी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के भी विश्वासपात्र माने जाते हैं। पद से हटने के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह के दिल्ली आने गृह मंत्री अमित शाह और एनएसए अजीत डोभाल से उनकी मुलाकात में भी इस अधिकारी की भूमिका है। मुमकिन है कि जल्दी ही उक्त अधिकारी को भी केंद्र में नियुक्ति मिल सकती है।
सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस नेतृत्व को कैप्टन अमरिंदर सिंह और भाजपा के बीच पकने वाली इस खिचड़ी की भनक मिल गई थी और उसके बाद से ही वक्त रहते उनसे निजात पाने की योजना पर काम शुरू हुआ और इसमें अहम किरदार रहे नवजोत सिंह सिद्धू। अब पंजाब में सत्ता परिवर्तन के बाद सिद्धू के नए पैंतरे को कांग्रेस अपना आंतरिक संकट मानकर जूझ रही है, वहीं भाजपा और केंद्र सरकार पंजाब घटनाक्रम का फायदा उठाकर दस महीने से भी ज्यादा पुराने हो चुके किसान आंदोलन को एक नया मोड़ देने की रणनीति पर काम कर रही है। कैप्टन की शाह और डोभाल से मुलाकात में इस पर चर्चा हुई। इसके साथ ही इन मुलाकातों में कैप्टन ने राष्ट्रीय और आंतरिक सुरक्षा से जुड़े मुद्दों को लेकर भी कुछ अहम जानकारियां दोनों को दीं। सूत्रों का कहना है कि इन मुलाकातों में अमरिंदर ने राजनीति से इतर कुछ अन्य मुद्दों पर भी बात की है।
कांग्रेस का प्रथम परिवार बेहद नाराज
उधर, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से अचानक इस्तीफा देने वाले कांग्रेस नेतृत्व के लाड़ले नवजोत सिंह सिद्धू से पार्टी का प्रथम परिवार यानी सोनिया गांधी राहुल गांधी और प्रियंका गांधी बेहद नाराज हैं और इसीलिए सिद्धू की मान मनौव्वल की बजाय उनके मसले को केंद्रीय नेतृत्व ने राज्य इकाई को सौंपकर सिद्धू को जता दिया है कि उनकी हैसियत अब प्रदेश स्तर की है और उनके मामले में दस जनपथ या 12 तुगलक लेन में कोई पंचायत नहीं होगी। उधर मुख्यमंत्री पद से बेदखल हुए और खुद को अपमानित महसूस कर रहे पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने गृह मंत्री अमित शाह से मिलकर एक नई सियासी खिचड़ी पकाने के संकेत देकर न सिर्फ कांग्रेस बल्कि अकाली दल और आम आदमी पार्टी की भी बेचैनी बढ़ा दी है। इस सबके बीच कांग्रेस नेतृत्व में लगातार सुधार की मांग करने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने पंजाब के घटनाक्रम के बहाने एक बार फिर पार्टी की रीति नीति पर सवाल खड़ा करते हुए बदलाव की जरूरत पर बल दिया।
बात-बात पर अपनी जिद के लिए मशहूर नवजोत सिंह सिद्धू को उम्मीद थी कि इस्तीफा बम के बाद उन्हें सोनिया, राहुल या प्रियंका में से किसी एक का फोन जरूर आएगा। उन्हें सबसे ज्यादा उम्मीद प्रियंका गांधी के फोन की थी, लेकिन न तो किसी ने फोन किया और न ही पंजाब के प्रभारी हरीश रावत ने सिद्धू से कोई संपर्क साधा। सूत्रों का यहां तक कहना है कि सिद्धू की इस बचकानी हरकत से सबसे ज्यादा खफा प्रियंका गांधी ही हैं क्योंकि उन्होंने ही सबसे ज्यादा सिफारिश सिद्धू की हर स्तर पर की है। उधर, राहुल गांधी और उनके सलाहकार सिद्धू के इस फैसले से इसलिए खफा हैं कि इस मुद्दे पर उठने वाले सवालों के निशाने पर सबसे ज्यादा राहुल गांधी के राजनीतिक अनुभव को बनाया जा रहा है।
सिद्धू भी आए दबाव में
कांग्रेस अध्यक्ष के एक करीबी सूत्र का कहना है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी जल्द ही सिद्धू का इस्तीफा स्वीकार करके जल्दी ही किसी नए अध्यक्ष की नियुक्ति कर सकती हैं, लेकिन पार्टी सिद्धू को शहीद नहीं बनने देना चाहती है। इसीलिए इस मामले को प्रदेश नेताओं को सौंपकर नेतृत्व ने यह संकेत दिया है कि सिद्धू को जो भी शिकायत है, उसे वह मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के साथ मिल बैठकर सुलझाएं। इसके बाद अगर जरूरत हुई तब केंद्रीय नेतृत्व अपना फैसला लेगा। रणनीति यह है कि एक तो सिद्धू यह समझ लें कि उनकी हर बात नहीं मानी जाएगी और उनका कद पंजाब कांग्रेस के नेताओं के समकक्ष ही है उनसे बड़ा नहीं। इसीलिए मुख्यमंत्री चन्नी ने अपने संवाददाता सम्मेलन में साफ किया सिद्धू से बात करके मामले को सुलझाया जाएगा और विधायक परगट सिंह को इसकी जिम्मेदारी दी गई है कि वह सिद्धू से बात करके मसले को सुलझाएं। यानी सिद्धू के मामले को परगट सिंह डील करेंगे।
सिद्धू ने यह फैसला अचानक इसलिए लिया कि जिस तरह नए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी अपनी मर्जी से फैसले ले रहे हैं उससे उन्हें पंजाब की राजनीति में अपने लिए अब कुछ खास नजर नहीं आ रहा है। साथ ही, सिद्धू को यह भी लगने लगा है कि कहीं न कहीं पंजाब की राजनीति से कैप्टन अमरिंदर सिंह का दबदबा खत्म करने के लिए कांग्रेस ने उनका इस्तेमाल कर लिया है।
यह जानकारी देते हुए कांग्रेस सूत्रों ने बताया कि बिना हाईकमान से बात किए अचानक इस्तीफा देकर उसे सार्वजनिक करने की सिद्धू की इस बचकानी हरकत ने सोनिया गांधी के साथ-साथ राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को भी बेहद असहज कर दिया है। क्योंकि सिद्धू ने पूरे परिवार को यह भरोसा दिया था कि कैप्टन अमरिंदर सिंह को बदलने के बाद वह पंजाब में कांग्रेस की सत्ता वापसी के लिए जी जान लगा देंगे। पार्टी नेतृत्व ने वह सब किया जो सिद्धू ने चाहा लेकिन सिद्धू ने अपनी हरकत से कांग्रेस नेतृत्व के फैसले पर ही सवाल खड़ा कर दिया, इसे लेकर सोनिया राहुल और प्रियंका तीनों को झटका लगा है। इसका पहला संकेत तब मिला जब राहुल गांधी के भरोसेमंद पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने ट्वीट करके सिद्धू पर पार्टी और नेतृत्व के साथ विश्वासघात करने का आरोप लगाया। इसके बाद पंजाब के कुछ और नेताओं ने सिद्धू पर निशाना साधा। प्रियंका गांधी के सलाहकार आचार्य प्रमोद कृष्णम ने दो-तीन तीखे ट्वीट करके सिद्धू पर हमला किया। इसके बाद सिद्धू दबाव में आए और वह मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी से मिलकर बात करने को तैयार हुए।
चौकन्नी हैं भारतीय खुफिया एजेंसियां
पंजाब के इस घटनाक्रम पर अमेरिका, कनाडा, आस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और अन्य पश्चिमी देशों में बसे सिख समुदाय की भी खासी दिलचस्पी है। इनमें कुछ ऐसे तत्व भी शामिल हैं जिनका संबंध भारत विरोधी खालिस्तानी आंदोलन से है और भारतीय खुफिया एजेंसियों की उन पर पूरी नजर है। यह जानकारी देने वाले सूत्रों ने बताया कि कैप्टन और सिद्धू दोनों की ही इन देशों में खासी फैन फॉलोइंग है और उनकी तरफ से अपने-अपने नेता की हर तरह से मदद करने का भरोसा भी दिया गया है। वहीं तीनों केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन करने वाले पंजाब के किसान संगठनों में कैप्टन अमरिदंर सिंह की अच्छी पैठ है। कुछ जाने-माने किसान नेताओं से उनके निजी रिश्ते हैं। कैप्टन इस रणनीति पर काम कर रहे हैं कि अगर वह केंद्र सरकार और किसान संगठनों के बीच मध्यस्थ बनकर कृषि कानूनों और एमएसपी की अनिवार्यता पर कोई सर्वमान्य फैसला करवा लें और इसके बाद पंजाब में किसान संगठनों की मदद से नया क्षेत्रीय दल बनाकर चुनाव लड़ें तो उनका जो कुछ भी हो, कम से कम कांग्रेस का सत्ता वापसी का सपना चकनाचूर हो जाएगा।
वहीं भाजपा यह आकलन कर रही है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह अलग दल बनाएं या उन्हें भाजपा में शामिल करके उनके नेतृत्व में पार्टी पंजाब में चुनाव लड़े। लेकिन इसमें भी एक पेंच है। क्योंकि किसान आंदोलन अब ऐसे दौर में पहुंच चुका है कि उसकी कमान भी अब पूरी तरह पंजाब के किसान नेताओं के हाथ में नहीं है और तीनों कृषि कानूनों की पूर्ण वापसी और एमएसपी की कानूनी अनिवार्यता का मुद्दा इस तरह घर-घर पहुंच चुका है कि इससे कम पर आंदोलन खत्म करवाना आसान नहीं होगा। इसलिए पंजाब की राजनीति क्या गुल खिलाएगी और देश की सियासत पर उसका क्या असर पड़ेगा यह कहना फिलहाल बेहद मुश्किल है।
अमर उजाला
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