सम्पादकीय

कृष्ण जन्माष्टमी विशेष: जगति की नाव के खिवैया, पॉजिटिव एप्रोच वाले कन्हैया

Rani Sahu
30 Aug 2021 7:31 AM GMT
कृष्ण जन्माष्टमी विशेष: जगति की नाव के खिवैया, पॉजिटिव एप्रोच वाले कन्हैया
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आज जन्माष्टमी है। आज ही के दिन हिंदू धर्म के पूर्णावतार श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। श्रीकॄष्ण हर मुश्किल का हल हैं

स्वाति शैवाल। आज जन्माष्टमी है। आज ही के दिन हिंदू धर्म के पूर्णावतार श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। श्रीकॄष्ण हर मुश्किल का हल हैं। श्रीकॄष्ण हैं तो जीवन में सम्बल है। श्रीकॄष्ण से गति चांद, तारों और धरती की। श्रीकॄष्ण से ऊर्जा सम्पूर्ण ब्रम्हांड और जगति की।

हमारे पुराण और धार्मिक साहित्य असल में मनुष्य जीवन को सबसे अधिक प्रेरणा देने का काम कर सकते हैं। मुश्किल यह है कि हममें से अधिकांश लोग न तो उन पुराणों को ठीक से पढ़ते हैं, न ही उनमें निहित संदेशों को समझ पाते हैं।
ज्यादातर लोग कर्मकांड में ही उलझे रह जाते हैं और सीखने का अवसर खो देते हैं। यही वजह है कि इस मामले में हम सभी की अलग अलग समझ और अलग अलग तौर तरीके हैं। श्रीकृष्ण श्री विष्णु जी के अवतार हैं। यहीं से शुरू हो जाती हैं श्रीकृष्ण से प्रेरणा लेने की शुरुआत।
क्या आपने कभी गौर किया कि अधिकांश मामलों में जब भी किसी पर कोई विपत्ति आई श्रीकृष्ण तब तारणहार बनकर सामने आए। चाहे वनवास के समय द्रौपदी के पास बचे अन्न के एक दाने की समस्या हो, इंद्रदेव के रुष्ट होने पर अपनी कनिष्ठिका पर गोवर्धन पर्वत साध पूरे गांव को बारिश से बचाने की बात हो या दुशासन के समक्ष पांडवों का दूत बनकर जाने की बात हो ऐसी कई कथाएं आपको सन्दर्भों में मिलेंगीं जहां श्रीकॄष्ण ने समस्त जगत को तारा।
मैत्री के हितैषी
कान्हा के बालपन की कथाओं से लेकर उनकी युवावस्था तक कई ऐसी कथाएं मिलेंगी जिनमें उनकी निष्पक्ष मित्रता का वर्णन है। चाहे बालसखा सुदामा हों, उद्धव हों, गोप-ग्वाले हों या अर्जुन। श्रीकॄष्ण ने हमेशा आडम्बर से परे, सच्ची मित्रता करने और उसे जीवन पर्यंत निभाने का संदेश दिया। इतना ही नहीं वे द्रौपदी के सखा रूप में उनकी लाज बचाने के लिए आये।
इससे यह संदेश स्पष्ट होता है कि सच्ची दोस्ती में जात-पातं, अमीर-गरीब, लड़का-लड़की का भाव नहीं, बल्कि मात्र मित्र के हित का भाव प्रमुख होता है। यदि मित्र संकट में है तो उसकी सहायता करना ही सच्ची मित्र है और यदि मित्र सही रास्ते का चयन नहीं कर पा रहा, जैसे कि अर्जुन तो उसे सही मार्ग दिखाना भी सच्ची मित्रता है।
मुश्किल घड़ी में साथी धैर्य, साहस और बुद्धि
कालिया नाग से गेंद वापस लाना हो, कंस का वध करना हो, पूतना को धूल चटाना हो, महाभारत के युद्ध में अर्जुन का सारथी बनना हो, कोई भी भूमिका हो श्रीकॄष्ण ने हमेशा बुद्धि, विनम्रता और साहस से काम लिया है। उनका यह रूप इस बात की सीख देता है कि विपत्ति आने पर हमें धैर्य के साथ सारे रास्ते खंगालना चाहिए, फिर बुद्धिमानी से रणनीति बनानी चाहिए और फिर साहस से उसका सामना करना चाहिये। चाहे फिर मुश्किल कितनी भी बड़ी या भयावह क्यों न हो वह आपके सामने परास्त होकर ही रहेगी।
गीत-संगीत, नृत्य से लेकर गीता के ज्ञान तक श्रीकृष्ण ने कला और साहित्य को सर्वश्रेष्ठ रूप में मनुष्य के सामने प्रस्तुत किया है।
सिद्धान्तों की बात और साहित्य कला के प्रणेता
महाभारत के युद्ध के पूर्व अर्जुन और दुर्योधन दोनों ही श्रीकॄष्ण के पास मदद मांगने गए थे। श्रीकॄष्ण ने सिद्धान्ततः दोनों की ही मदद की लेकिन चूंकि अर्जुन उनके पैरों के पास बैठे थे और उनपर पहले नजर पड़ी इसलिए उन्होने पहले मदद मांगने का अधिकार अर्जुन को दिया। इसी तरह उन्होंने यह प्रण लिया था कि युद्ध में वे स्वयं शस्त्र नहीं उठाएंगे, इस सिद्धांत का भी उन्होंने पालन किया। उन्होंने पूरी ईमानदारी से अपनी भूमिका निभाई बिना किसी पक्षपात के।
गीत-संगीत, नृत्य से लेकर गीता के ज्ञान तक श्रीकृष्ण ने कला और साहित्य को सर्वश्रेष्ठ रूप में मनुष्य के सामने प्रस्तुत किया है। रास रचाते कन्हैया हों या बांसुरी बजाकर समस्त प्राणी मात्र को रिझाते कान्हा या फिर युद्धक्षेत्र में अर्जुन को गीता ज्ञान देते श्रीकॄष्ण हों, रचनात्मक रूप में श्रीकॄष्ण हर एक के लिए प्रेरणा हैं।
दरअसल, केवल उक्त गुण ही नहीं श्रीकॄष्ण के सम्पूर्ण जीवन सन्दर्भों के वर्णन में आपको ऐसे कई उदाहरण मिलेंगे जो सफल और सुखद जीवन जीने में साथ दे सकते हैं। सार्थकता तब है जब आप इन्हें समझकर जीवन में उतारें। वरना केवल पूजा करने के लिए धर्मग्रन्थ तो हर घर में रखे रहते हैं।
अब चाहे आप ईश्वर में मानते हों या न मानते हों। यदि आप श्रीकॄष्ण को एक काल्पनिक चरित्र भी मानते हों तो भी वह किसी सुपरहीरो से कम नहीं। जो दूसरों की रक्षा और हित के लिए सदैव सबसे आगे होते हैं। तो इसी भावना के साथ श्रीकॄष्ण से प्रेरणा लीजिये। आखिर तो बात सद्प्रेरणा लेने की है।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें [email protected] पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।



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