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- कोहली का मुगालता -...
व्यक्ति विशेष बड़ा, या संस्थान? इसका जवाब शायद 10वीं कक्षा का कोई छात्र भी दे देगा. वास्तव में उन बुद्धिजीवियों की उम्र और अनुभव बहुत ही ज़्यादा है, जो चैनलों के डिबेट में कुतर्क गढ़ते हुए / रट्टा लगाते हुए टेस्ट कप्तान विराट कोहली को एकदम पाक-साफ ठहराने का एजेंडा चला रहे हैं. कोहली जब कैमरे के सामने बोलते हैं, तो लगता है, मानो कोई संपादक ख़बरों का संपादन कर रहा हो, कोई राइटर लेख लिख रहा हो. उनके भीतर बहुत शानदार मोटीवेटर और लेक्चरर भी है. वह अपने वाक-कौशल से उन बुद्धिजीवियों (?) पर भारी पड़ते दिखाई देते हैं, जो सूत्रों (?) के हवाले से ख़बरें ब्रेक करने में देर नहीं लगाते. वक्त गुज़रने के साथ कोहली का टेम्परामेंट कूल हुआ है. अब मैदान पर उनके मुंह से वे शब्द भी नहीं निकलते, जिनकी लिपसिंक से ही 12-14 साल का बच्चा भी सब समझ जाता था और जिसकी आलोचना कभी नसीरुद्दीन शाह ने की थी. अब वह पत्रकारों के सवालों से आपा खोते भी नहीं दिखते, जैसा दक्षिण अफ्रीका के पिछले दौरे में हुआ था
मनीष शर्मा NDTV