सम्पादकीय

भरोसे का ज्ञान

Subhi
21 July 2022 5:37 AM GMT
भरोसे का ज्ञान
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एक टीवी चैनल पर चलने वाले ‘कौन बनेगा करोड़पति’ कार्यक्रम के एक विज्ञापन में अमिताभ बच्चन एक महिला से पूछते हैं- ‘इनमें से किस चीज में जीपीएस तकनीक लगी हुई है।’

अमित चमड़िया; एक टीवी चैनल पर चलने वाले 'कौन बनेगा करोड़पति' कार्यक्रम के एक विज्ञापन में अमिताभ बच्चन एक महिला से पूछते हैं- 'इनमें से किस चीज में जीपीएस तकनीक लगी हुई है।' महिला जवाब देती है- 'दो हजार के नोट में'। जबाब सुन कर अमिताभ बच्चन कहते हैं कि आपका उत्तर गलत है। वह महिला कहती है कि यह मैंने टीवी पर दिखाई गई एक खबर में सुना है, तब अमिताभ कहते हैं कि ज्ञान जहां से भी मिले बटोर लीजिए, लेकिन पहले जरा टटोल लीजिए।

इस विज्ञापन को देख कर फिल्म 'एक डाक्टर की मौत' के कुछ दृश्यों की याद आई। इस फिल्म में अभिनेता पंकज कपूर एक डाक्टर की भूमिका में होते हैं जो कुछ नया करना चाहते हैं। कुष्ठरोग पर अपने शोध के दौरान उनकी मुलाकात अपने शिष्य इरफान खान होती हैं। इरफान ने इस फिल्म में विज्ञान पत्रकार की भूमिका निभाई है। इरफान खान को विज्ञान पत्रकार के रूप में देखकर पंकज कपूर उनसे सवाल करते हैं कि तुम खगोल विज्ञान में काफी अच्छे रहे हो और तुमने तो इस विज्ञान में पीएचडी भी की है। इस लिहाज से तुम्हें तो वैज्ञानिक होना चाहिए था। इस पर इरफान खान कहते हैं कि अगर मैं वैज्ञानिक हो जाता तो विज्ञान की जानकारी लोगों तक कौन पहुंचाता और आपके शोध की बात आम लोगों तक कैसे पहुंचती!

दरअसल, कोई भी जानकारी सही और तथ्यपरक है या नहीं, यह बताने वाले की योग्यता पर निर्भर करता है। यह बिल्कुल सही है कि सूचना बांटने वाले को विषय से संबंधित चीजों का ज्ञान होना चाहिए। 'एक डाक्टर की मौत' फिल्म में इरफान खान के जवाब को वर्तमान संदर्भों में समझने की जरूरत है। पिछले कुछ सालों से जलवायु परिवर्तन को लेकर दुनिया भर में हर जगह चर्चा हो रही है।

लेकिन इस पर जानकारी जनता के बीच पहुंचाने कि जिम्मेदारी जिन पर पर है, उनमें से ज्यादातर लोग किसी 'गैरजरूरी' काम में व्यस्त हैं। विज्ञान से संबंधित सूचना आम लोगों को कैसे रोचक ढंग से दी जाए, यह बात वही पत्रकार समझ सकता है, जिसे विज्ञान की जानकारी भी हो और वह इसकी जनउपयोगिता और उसके महत्त्व को समझता हो। किसी भी वैज्ञानिक शोध की सार्थकता तभी है, जब उससे जुड़ी जानकारी जन-जन तक पहुंचे। भारतीय मीडिया के लिए विज्ञान महत्त्वपूर्ण विषय नहीं है।

शहर में एक परिवार के एक बच्चे ने हाल ही में बारहवीं की परीक्षा दी। उसके पिताजी के मोबाइल पर ढेरों संदेश इस बात को लेकर आने लगे कि आप अपने बेटे को इंजीनियर बनाना चाहते हैं या डाक्टर! अगर विज्ञान पढ़ने वाले सारे अच्छे विधार्थी इंजीनियर या डाक्टर बन जाएंगे तो आगे विज्ञान पढ़ाने और विज्ञान से जुडी जानकारी देने वाले अच्छे लोग कहां से मिलेंगे। शायद इसीलिए टीवी पर प्रस्तुत 'कौन बनेगा करोड़पति' कार्यक्रम विज्ञापन में अमिताभ बच्चन मिलने वाली सूचना को टटोलने के बात कर रहे हैं। उनकी तरह शायद बहुतों को इस बात आभास हो गया है कि मुख्यधारा के प्रचार-माध्यमों और टीवी चैनलों में वैसे लोगों की भरमार है, जिन्हें अपने संबंधित विषय की सही-सही जानकारी नहीं है।

इतिहास विषय को लेकर हमारे देश में काफी भ्रांतियां हैं । इतिहास सामाजिक विज्ञान विषय का अंग है, लेकिन हमारे यहां ज्यादातर शैक्षणिक संस्थानों में इतिहास विषय को केवल नौकरी पाने के लिए पढ़ा और पढ़ाया जाता हैं। इसलिए देश की बड़ी आबादी मुगलकालीन इतिहास को इस्लाम धर्म के चश्मे से देखती है। जिस दिन हम इतिहास को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से पढ़ने लगेंगे, उस दिन के बाद से इतिहास को लेकर सारे झगड़े खत्म हो जाएंगे।

हिंदी प्रदेशों में आज भी अगर पढ़ने-लिखने में कोई तेज विद्यार्थी दसवीं कक्षा की पढ़ाई पूरी करने के बाद सामाजिक विज्ञान के विषय पढ़ना चाहता है, तो लोग आश्चर्य करते हैं। हिंदी प्रदेशों के स्कूलों में इतिहास को रटने वाला और ऊब पैदा करने वाले विषय के रूप में देखा और समझा जाता है। लोगों का मानना है कि तेज विधार्थी को विज्ञान विषय की पढ़ाई करनी चाहिए। इसमें कोई संदेह नहीं है कि सूचना देने वाले की समझ पर सूचना की गंभीरता पता चलता है और यह उसी पर निर्भर है कि वह सूचना को किस तरह पेश करेगा। सूचना की सत्यता और उसके प्रस्तुतीकरण पर समाज के लोग अपने विचार गढ़ते हैं। समाचार माध्यमों की ओर से दी गई सूचनाओं से बहुत सारे लोगों के सोचने-समझने का सिरा तय होता है।

दरअसल, सूचना का प्रभाव गहरा पड़ता है। खासकर तब जब सूचनाएं किसी मीडिया संस्थान द्वारा दी जा रही हों। वर्तमान समय में सोशल मीडिया का विस्तार होने से कोई भी व्यक्ति समाज में अपने को सूचना का प्रसार करने वाला व्यक्ति मानने लगता है, जबकि लोग भूल जाते हैं कि समाज में सही जानकारी पहुंचाना चुनौतियों से भरा काम हैं। इसीलिए किसी विज्ञापन या अन्य माध्यमों से मिली सूचना को पहले टटोलने या उसके अच्छे-बुरे होने की परख कर लेने के बात कही जाती है।


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