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कभी सोवियत संघ का हिस्सा रहा कजाकिस्तान इन दिनों जबरदस्त हिंसा से गुजर रहा है
कभी सोवियत संघ का हिस्सा रहा कजाकिस्तान इन दिनों जबरदस्त हिंसा से गुजर रहा है. इसकी शुरुआत पेट्रोलियम पदार्थों की कीमत बढ़ने के विरोध के रूप में हुई और जल्दी ही इसने गृहयुद्ध का रूप ले लिया. इस हिंसा में 150 से ज्यादा लोग मारे गए, हजारों घायल हुए और हजारों गिरफ्तार किए गए हैं. भ्रष्टाचार, गरीबी, बेरोजगारी जैसी समस्याओं के कारण राष्ट्रपति कासिम जोमार्ट टोकायेव की सरकार के खिलाफ लोगों में काफी गुस्सा है.
विद्रोह दबाने के लिए पूर्व राजधानी अलमाटी समेत कई शहरों में इंटरनेट और टेलीकम्युनिकेशन सेवाएं कई दिनों के लिए बंद कर दी गईं. अलमाटी में पांच दिनों बाद इंटरनेट सेवा तो बहाल कर दी गई, लेकिन कई शहरों में एहतियातन अभी अंकुश जारी है. इस अशांति ने एक नई उभरती इंडस्ट्री को बड़ा झटका दिया है और वह है क्रिप्टो करेंसी माइनिंग इंडस्ट्री.
18% बिटकॉइन की माइनिंग कजाकिस्तान में ही
पिछले साल बिटकॉइन जैसी क्रिप्टो करेंसी की माइनिंग अमेरिका के बाद सबसे ज्यादा कजाकिस्तान में ही हो रही थी. पूरी दुनिया में जितनी क्रिप्टो करेंसी की माइनिंग होती है, उसका 18 से 20 फीसदी कजाकिस्तान में ही किया जा रहा था. लेकिन इंटरनेट सेवा बंद होने से वहां क्रिप्टो माइनिंग लगभग ठप पड़ गई. इस साल 10 दिनों में बिटकॉइन की वैल्यू जो 47 हजार डॉलर से घटकर 40 हजार डॉलर पर आई है, उसकी एक वजह कजाकिस्तान भी है. वैसे चार महीने में बिटकॉइन की वैल्यू 68 हजार डॉलर से 40 फीसदी घटी है.
चीन में रोक के बाद कजाकिस्तान में माइनिंग
कजाकिस्तान करीब एक साल से ही क्रिप्टो करेंसी माइनिंग का हब बना है. खासकर जब चीन में इस पर अंकुश लगाया गया. बिटकॉइन सबसे ज्यादा चलन वाली क्रिप्टो करेंसी है. वर्षों तक चीन ही में ही इसकी सबसे ज्यादा माइनिंग होती थी. कैंब्रिज यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च के अनुसार 2019 में 75% बिटकॉइन की माइनिंग चीन में हुई थी. पिछले साल भी अप्रैल में दो-तिहाई बिटकॉइन की माइनिंग चीन में ही हुई थी. लेकिन उसके बाद चीन सरकार ने माइनिंग के साथ-साथ क्रिप्टो करेंसी के ट्रेड पर भी प्रतिबंध लगा दिया.
दरअसल क्रिप्टो करेंसी की माइनिंग में बहुत ज्यादा बिजली खर्च होती है, इससे कार्बन उत्सर्जन बढ़ता है. चीन ने कार्बन उत्सर्जन घटाने के लिए क्रिप्टो माइनिंग पर प्रतिबंध लगाया है. उसके बाद ही माइनिंग इंडस्ट्री ने कजाकिस्तान और कनाडा जैसे देशों में नया ठिकाना बनाया.
माइनिंग में शक्तिशाली कंप्यूटरों का इस्तेमाल
माइनिंग को मोटे तौर पर इस तरह समझा जा सकता है. क्रिप्टो करेंसी ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी पर आधारित हैं. कंप्यूटरों के जरिए एक तरह की मैथमेटिक्स की पहेली को सुलझाना होता है. सुलझाने वाले को एक 'ब्लॉक' मिलता है. एक ब्लॉक का मतलब है 6.25 बिटकॉइन. इसी को माइनिंग कहते हैं.
बिटकॉइन के शुरुआती दिनों में घरों में इस्तेमाल होने वाले सामान्य कंप्यूटर से माइनिंग की जा सकती थी. लेकिन अब ऐसा नहीं है. अब इसके लिए शक्तिशाली हाइटेक कंप्यूटरों के नेटवर्क का इस्तेमाल किया जाता है. ये कंप्यूटर लगातार चलते रहते हैं और काफी बिजली खपत करते हैं. कंप्यूटर लगातार चलने से उनका हार्डवेयर ज्यादा गर्म ना हो जाए, इसके लिए कूलिंग की भी जरूरत पड़ती है. इसलिए अब बड़े डाटा सेंटर में माइनिंग की जाने लगी है.
स्वीडन से ज्यादा बिजली खर्च होती है बिटकॉइन में
जितनी ज्यादा बिटकॉइन या क्रिप्टो करेंसी बाजार में आती है, नए कॉइन की माइनिंग उतनी अधिक मुश्किल होती जाती है. तब नए कॉइन की माइनिंग में और ज्यादा बिजली खर्च होती है. अनुमान है कि बिटकॉइन की माइनिंग का 60% खर्च बिजली का ही होता है. हार्वर्ड बिजनेस रिव्यू ने मई 2021 में एक रिपोर्ट में बताया कि बिटकॉइन तैयार करने में हर साल 110 टेरा यूनिट बिजली खर्च होती है. यह दुनिया के कुल बिजली उत्पादन का 0.55% है.
दूसरे शब्दों में कहें तो मलेशिया और स्वीडन जैसे छोटे देशों में लोग हर साल जितनी बिजली खर्च करते हैं, उतनी बिजली सिर्फ बिटकॉइन बनाने में खर्च हो जाती है. बीते पांच वर्षों में क्रिप्टो करेंसी बनाने में बिजली का खर्च 10 गुना बढ़ा है. माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स ने न्यूयॉर्क टाइम्स के साथ एक इंटरव्यू में कहा था कि बिटकॉइन के हर काम में जितनी बिजली खर्च होती है, उतनी किसी और काम में नहीं होती.
इसलिए कजाकस्तान में बढ़ी क्रिप्टो माइनिंग
क्रिप्टो करेंसी की माइनिंग दुनिया में कहीं भी हो सकती है, लेकिन बिजली खपत अधिक होने के कारण माइनिंग इंडस्ट्री वहीं ठिकाना बनाती है जहां बिजली सस्ती हो. चीन के कुछ प्रांतों में बरसात के दिनों में पनबिजली सरप्लस हो जाती है. इसलिए भी चीन में क्रिप्टो माइनिंग बढ़ी. कजाकस्तान में दुनिया का तीन फीसदी तेल भंडार है.
इसके अलावा कोयला और गैस का भी विशाल भंडार है. इसलिए वहां बिजली सस्ती थी और माइनिंग इंडस्ट्री ने वहां डेरा जमाया था. लेकिन मांग ज्यादा बढ़ने के कारण हाल में बिजली कटौती होने लगी. विशेषज्ञों का अनुमान है कि नए घटनाक्रम के बाद यह इंडस्ट्री किसी सुरक्षित जगह का रुख कर सकती है.
क्रिप्टो माइनिंग में एक और समस्या ई-वेस्ट की है. क्रिप्टो करेंसी की माइनिंग में लगे लोग लगातार नए और तेज कंप्यूटर चाहते हैं, क्योंकि तभी उन्हें 'ब्लॉक' मिल पाएगा. एक अनुमान के मुताबिक हर डेढ़ से दो साल में माइनिंग हार्डवेयर की क्षमता की जरूरत दोगुनी हो जाती है. ऐसे में पुराने कंप्यूटर बेकार हो जाते हैं. इसलिए बिटकॉइन से जितना ई-वेस्ट निकलता है, वह कई देशों में निकलने वाले ई-वेस्ट से ज्यादा है.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
सुनील सिंह
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