सम्पादकीय

किस्सा कोताह: वाजपेयी जी ने जब भरी सभा में पूछ लिया- आपने दिल्ली के मुख्यमंत्री को नहीं बुलाया है?

Gulabi
24 March 2021 2:03 PM GMT
किस्सा कोताह: वाजपेयी जी ने जब भरी सभा में पूछ लिया- आपने दिल्ली के मुख्यमंत्री को नहीं बुलाया है?
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साल 2000 की गर्मियां, तारीख याद नहीं आ रही। गूगल महाराज भी इस बारे में सहयोग नहीं कर रहे

साल 2000 की गर्मियां, तारीख याद नहीं आ रही। गूगल महाराज भी इस बारे में सहयोग नहीं कर रहे। बिजली का ग्रिड संभालने वाले पावर ग्रिड कॉरपोरेशन के उत्तर क्षेत्र के मुख्यालय में नई शुरुआत होने जा रही थी। इस शुरुआत के मद्देनज़र जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय को दिल्ली के अरबिंदो मार्ग से जोड़ने वाले शहीद जीत सिंह मार्ग पर यातायात रोक दिया गया था।


प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ग्रिड के कंप्यूटरीकृत कंट्रोल तकनीक का उद्घाटन करने आ रहे थे। कुतुब इंस्टीट्यूशनल एरिया स्थित पावर ग्रिड के उतर भारत के मुख्यालय को इसके लिए जमकर सजाया गया था। करीब साढ़े नौ बजे सुबह का वक्त होगा, पत्रकारों का हुजूम इस घटना को कवर करने के लिए आ चुका था। प्रधानमंत्री की अगवानी के लिए तत्कालीन ऊर्जा मंत्री सुरेश प्रभु आ चुके थे और पावर ग्रिड के सीएमडी के साथ तैयार खड़े थे। इतने में हूटर बजना शुरू हुआ। संकेत स्पष्ट था कि प्रधानमंत्री आ चुके हैं।

ग्रिड को संभालने वाले कंप्यूटर आधारित तकनीक का कंट्रोल रूम में प्रधानमंत्री जब घुसे तो लपक कर ऊर्जा मंत्री ने उनका स्वागत किया। फिर सुरेश प्रभु ने अफसरों से परिचय कराना शुरू किया। जाहिर है कि पावर ग्रिड के सीएमडी का नंबर पहला था। इतने में प्रधानमंत्री ने सीएमडी से पूछ लिया, 'आपने दिल्ली के मुख्यमंत्री को नहीं बुलाया है?'
पीएम का सवाल सुुुन सब हकलाने लगे
प्रधानमंत्री का सवाल सुन सीएमडी हकलाने लगे, 'स्सर...स्सर...हमने उन्हें भी बुलाया है।' 'फिर वे क्यों नहीं आईं ?' उन दिनों शीला दीक्षित दिल्ली की मुख्यमंत्री थीं। जाहिर है कि वाजपेयी उनके ही बारे में पूछ रहे थे। पत्रकारों के लिए प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में दिल्ली के मुख्यमंत्री की अनुपस्थिति बड़ी खबर होने जा रही थी। सबकी निगाहें प्रधानमंत्री और कान उनके शब्दों पर केंद्रित हो गए।
इतने में कमरे में हांफती-सी परेशान शीला दीक्षित आती दिखीं। प्रधानमंत्री को देख उन्होंने पहले प्रणाम किया। वाजपेयी ने किंचित व्यंग्य के मूड में उनका स्वागत किया, 'आइए....आइए..शीला जी..प्रधानमंत्री पहले पहुंच जाता है और दिल्ली का मुख्यमंत्री देर से आता है..'
कुछ देर के अपने चिरपरिचित विराम के बाद वाजपेयी ने मुस्कुराते हुए कहा,'प्रधानमंत्री, दिल्ली के मुख्यमंत्री का स्वागत कर रहा है।' शीला संभ्रांत महिला थीं। वाजपेयी की अदा से वे शर्मिंदा नज़र आ रही थीं। 'ट्रैफिक जाम में फंस गई थीं..' शीला दीक्षित ने देर से आने के लिए जैसे सफाई दी। 'आप भी जाम में फंस जाती हैं?' वाजपेयी ने चुटकी ली। 'थोड़ी देर गई, जब आ रही थी, तब आपके कैरेवान के लिए ट्रैफिक रोक दिया गया था..उसी में हमारी गाड़ी भी थी।' शीला की झेंप तब तक नहीं मिट पाई थी।
वैसे भी प्रोटोकाल का तकाजा है कि सर्वोच्च व्यक्ति के आने के पहले संबंधित कार्यक्रम में सभी लोगों को पहुंच जाना चाहिए। जाहिर है कि शीला उस दिन लेट हो गई थीं। बहरहाल कंप्यूटराइज ग्रिड कंट्रोल रूम के उद्घाटन की प्रक्रिया शुरू हुई और प्रधानमंत्री को बटन के पास पावर ग्रिड के सीएमडी ले गए। लेकिन वाजपेयी ने शीला को भी आगे बुला लिया। उद्घाटन करते वक्त उनके साथ सुरेश प्रभु और शीला दीक्षित भी थे।
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार संशोधन अधिनियम 2021 केे मायने
लोकसभा ने दिल्ली से संबंधित राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार संशोधन अधिनियम 2021 को मंजूरी दे दी है। जिसके तहत शासन कार्य में दिल्ली के उपराज्यपाल की सर्वोच्चता की व्याख्या है। इस कानून को लेकर दिल्ली की केजरीवाल सरकार आंदोलित है। ऐसे माहौल में वाजपेयी और शीला दीक्षित से जुड़ा यह वाकया शिद्दत से याद आता है
आज कहा जा रहा है कि दिल्ली और केंद्र में चूंकि अलग-अलग दलों की सरकारें हैं, इसीलिए दिल्ली सरकार के कामकाज में केंद्र सरकार अड़ंगा लगा रही है। लेकिन याद कीजिए शीला सरकार को। उसके पहले कार्यकाल में पूरे समय तक कांग्रेस की विरोधी भारतीय जनता पार्टी की अगुआई वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार थी। लेकिन शायद ही कोई मौका आया हो, जब शीला और केंद्र सरकार के बीच ठनी हो।
शीला दीक्षित का कार्यकाल
शीला दीक्षित के नजदीकी रहे एक सज्जन का अनुभव शीला सरकार की कार्यशैली को समझने का बढ़िया उदाहरण है। वे बताते हैं कि एक बार किसी मामले से जुड़े केंद्र सरकार के किसी नियम से दिल्ली के तत्कालीन मंत्री राजकुमार चौहान क्षुब्ध हो उठे थे। चौहान जब शीला दीक्षित के पास पहुंचे, तब वे सज्जन शीला दीक्षित के ही पास बैठे थे। पहुंचते ही राजकुमार चौहान ने केंद्र सरकार के नियम के खिलाफ अपनी आपत्ति जताई और शीला दीक्षित से इस मामले को कड़े तेवर के साथ उठाने का सुझाव दिया।
शीला दीक्षित के नजदीकी सज्जन के मुताबिक, तब श्रीमती दीक्षित ने राजकुमार चौहान को समझाया था, 'केंद्र सरकार से लड़ने के लिए जनता ने हमें मौका थोड़े दिया है। वैसे हमें नहीं भूलना चाहिए कि हम केंद्र शासित राज्य में हैं और हमारी सीमाएं हैं।'कुछ देर ठहरकर शीला ने आगे कहा था, 'हमें इसी में से दिल्ली के विकास की राह निकालनी होगी। विरोध से कुछ हासिल नहीं होगा और हम केंद्र सरकार से पार भी नहीं पा सकेंगे।' चाहे कांग्रेस की अगुआई वाली केंद्र सरकार हो या फिर भाजपा की, शीला सरकार से अलग रूख रहा है केजरीवाल सरकार का। केजरीवाल सरकार ने विवादों से बचने की बजाय उलझने में ही अपनी सफलता देखती रही है।
लेकिन अतीत गवाह है। शीला सरकार ने केंद्र शासित सरकार की सीमाओं के बावजूद दिल्ली को जितना बदला, शायद ही कोई और सरकार वैसा कर सकती थी। शीला ने दिखाया कि अगर कर गुजरने का माद्दा हो, जनता की जिंदगी में बदलाव लाने की स्पष्ट सोच हो तो मौजूदा कानूनों के ही तहत बहुत कुछ बदला जा सकता है।
शीला केंद्र में मंत्री रह चुकी थीं। प्रधानमंत्री कार्यालय की प्रभारी भी रह चुकी थीं। खानदानी राजनीतिक परिवार की बहू थीं। बड़े अधिकारी की पत्नी थीं। ससुर केंद्रीय मंत्री और राज्यपाल रह चुके थे। वे चाहतीं तो वाजपेयी से उलझ सकती थीं। लेकिन उन्होंने दूसरी राह चुनी, दिल्ली को बदलने की राह। अधिकारों की जंग के बीच शीला से जुड़े ये किस्से ये बताने के लिए काफी हैं कि बदलाव की राह विनम्रता के माध्यम से भी आ सकती है, हंगामे से नहीं।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए जनता से रिश्ता उत्तरदायी नहीं है।


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