सम्पादकीय

किसान गुत्थीः कुछ सुझाव

Gulabi
30 Dec 2020 10:46 AM GMT
किसान गुत्थीः कुछ सुझाव
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सरकार और किसान नेताओं के बीच अब जो बातचीत होने वाली है,

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। सरकार और किसान नेताओं के बीच अब जो बातचीत होने वाली है, मुझे लगता है कि यह आखिरी बातचीत होगी। या तो सारा मामला हल हो जाएगा या फिर यह दोनों तरफ से तूल पकड़ेगा। धरना देने वाले पंजाब और हरियाणा के किसान काफी दमदार, मालदार और समझदार हैं और सरकार भी अपनी ओर से किसानों का गुस्सा मोल नहीं ले सकती है। 60-70 करोड़ लोगों को कुपित करने वाली सरकार को दो-चार अडानी-अंबानी नहीं बचा सकते। सरकार उनसे नोट तो ले सकती है लेकिन वे इसे वोट कहां से ला कर देंगे? इसीलिए 30 दिसंबर की इस वार्ता को सफल होना ही चाहिए। इस संबंध में मेरे कुछ सुझाव हैं। दोनों पक्ष उन पर विचार कर सकते हैं।


पहला, खेती मूलतः राज्यों का विषय है। संविधान की धारा 246 में यह स्पष्ट कहा गया है। ऐसी स्थिति में केंद्र सरकार राज्यों को (पंजाब, हरियाणा आदि) छूट क्यों नहीं दे देती ? जिन राज्यों को ये तीनों कानून लागू करना हो, वे करें, जिन्हें न करना हो, वे न करें। वे खुद तय करें कि उनका फायदा किसमें हैं? दूसरा, देश के 94 प्रतिशत किसान एमएसपी की दया पर निर्भर नहीं हैं। केंद्र सरकार चाहे तो सिर्फ 23 चीज़ों के ही क्यों, केरल सरकार की तरह दर्जनों अनाजों, फलों और सब्जियों के भी न्यूनतम मूल्य घोषित कर सकती है। उन्हें वह खरीदे ही यह जरुरी नहीं है। इसीलिए इन कृषि-कानूनों की जरुरत ही क्या है ?

तीसरा, किसान अपना माल खुले बाजार में खुद बेचते हैं। उन्हें इन सरकारी कानूनों से कोई फायदा या नुकसान नहीं है। ये किसान अपनी खेती और जमीन अभी भी ठेके पर देने के लिए मुक्त हैं। ये कानून बनाकर सरकार फिजूल का सिरदर्द क्यों मोल ले रही हैं ? चौथा, उपज के भंडारण की सीमा हटाना ठीक नहीं मालूम पड़ता है। इससे बड़े पूंजीपतियों को लूटपाट की खुली छूट देने का शक पैदा होता है। भंडारण की सीमा लगाने का अधिकार सरकार को अपने हाथ में रखना चाहिए। पांचवाँ, यदि कृषि-कानूनों को सरकार अपनी इज्जत का सवाल बनाए बैठी है तो इन छह प्रतिशत मालदार किसानों की टक्कर में वह 94 प्रतिशत छोटे किसानों के समानांतर धरने देश में जगह-जगह क्यों नहीं आयोजित कर सकती है ? जरा करके दिखाए !


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