- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- अड़ियल रवैये वाला किसान...
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। आंदोलनकारी किसानों ने केंद्र सरकार का प्रस्ताव आखिरकार ठुकरा कर आंदोलन को और तेज करने का फैसला किया है। इसके बाद बातचीत के दरवाजे बंद हो गए हैं। अब एक बात साफ हो गई है कि यह आंदोलन कुछ दलों के हाथों की कठपुतली बन गया है, क्योंकि लक्ष्य किसानों की भलाई नहीं, बल्कि राजनीतिक स्वार्थ है। अब सरकार के सामने दो विकल्प हैं। एक, आत्मसमर्पण कर दे। दूसरा, अब राजनीतिक हो चुकी इस लड़ाई का राजनीतिक जवाब दे। यह सीएए-दो का पड़ाव है। किसी भी सत्तारूढ़ दल और उसके मुखिया को जनभावना के सामने झुकने में संकोच नहीं करना चाहिए। आखिरकार इसी जनभावना के चलते उसे सत्ता हासिल हुई है। साथ ही नेता को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि जनभावना के नाम पर एक तबके की खातिर सार्वजनिक हितों पर आघात भी न हो। एक किस्सा याद आ रहा है। महात्मा गांधी ने 'चौरी चौरा कांड' के बाद असहयोग आंदोलन रोक दिया। इससे तमाम लोगों में रोष था और उन्होंने सरदार पटेल से कहा कि गांधी जी ने आंदोलन रोककर अच्छा नहीं किया। सरदार पटेल ने कहा कि क्या तुमको नहीं लगता कि नेता को देश और समाज के व्यापक हित में जनभावना के विरुद्ध जाकर फैसला लेने का अधिकार है। गांधी जी का फैसला देश और समाज के व्यापक हित में है। भले ही वह जनभावना के विरुद्ध हो।