सम्पादकीय

नौकरशाही को चुस्त बनाते मेहरबान!

Gulabi
30 Sep 2021 6:18 AM GMT
नौकरशाही को चुस्त बनाते मेहरबान!
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नौकरशाही

जब हम उन दफ्तरों में जाते हैं जो अपने आपको हमारी व्यवस्था, सुविधा, सुरक्षा और भविष्य के ज़ामिन कहते हैं तो यहां एक खास किस्म की ऊंघती हुई गंध हमारा पीछा करने लगती है। हम बड़ी उम्मीद के साथ इन दफ्तरों में आए हैं। ये हमारे जन्म, मरण का प्रमाणपत्र देने वाले दफ्तर हो सकते हैं, जी हां जिंदा आदमी का भी मरण प्रमाणपत्र बन जाता है। बस आपकी जेब की गर्मी उनकी टेंट का ठिकाना ढूंढने के लिए तैयार रहे। आप जब इन दफ्तरों में घुसते हैं तो 'सेवा का अधिकार' निश्चित समय में प्रदान करने का बोर्ड पढ़ कर घुसते हैं, इसलिए अभी आपको सब ओर हरा ही हरा सूझता है। इससे पहले इन दफ्तरों के बारे में आपकी राय थी कि ये अंधी फाइलों और बहरे कर्मचारियों के शहर हैं। इधर इन अंधों के शहरों में चश्मे बांटने वाले बहुत से भाषण आपने सुन लिए तो लगा था कि सरकार ने सभी पुराने, दकियानूसी और दम तोड़ते कानून निरस्त कर दिए हैं। रोज़ अखबार में छपता है, इसलिए ऊंघते हुए नौकरशाही माहौल में चपलता आ गई होगी।


आप 'सेवा के अधिकार' से सशस्त्र होकर एक जि़म्मेदार नागरिक की तरह उन दफ्तरों में आए हैं इस उम्मीद से कि यहां नियम-कायदों ने चश्मों में बंट कर अंधों को दृष्टि दे दी है। आजकल यहां एकल खिड़की योजना शुरू हो गई है। पहले तो एक मेज़ से दूसरी मेज़ तक आपकी फाइल जाए, उसके लिए उसके नीचे आपको चांदी के पहिए लगाने पड़ते थे। अब सुविधा केन्द्र में एक ही खिड़की पर बैठा कर्मचारी आपके सब काम निपटा देगा, चाहे राशन कार्ड जारी करवाना हो या अपने आधार कार्ड की तस्वीर बदलवानी हो, जहां गलती से आपकी जगह आपकी पड़ोसिन ताई जी की तस्वीर लग गई है, और गज़ब खुदा का कुर्सी धारियों ने आपका लिंग भी परिवर्तन करवा दिया है। आप खिड़की के नज़दीक जा कर्मचारी का ध्यान खींचने का प्रयास करते रहे। चौखट खटखटायी तो वहां बैठे एक उदास अधेड़ ने आपको खाली आंखों से देखा। उनमें कोई भाव नहीं तेरा। हम विश्वस्त हुए कि यह तंद्रा से जगा दिए जाने की हिकारत नहीं थी, आंखों में उतरा मोतियाबिंद था, जो हमें अकेले देख कर और भी पक गया था।
हम खिड़की के पास आना चाहते थे, तो रास्ते में एक पांव चुभलाते हुए इस खिड़की के दलाल मिले। उन्होंने आंख दबा कर पूछा, 'क्यों भई काम करवाना है या कि अर्जी पर एतराज़ लगवा कर दस चक्कर लगाने हैं?' हमने उसे नकार दिया क्योंकि हमारा विश्वास था कि अंधा युग परिवर्तन का चश्मा लगाकर कम नज़र हो गया है। नियम का चाबुक चल गया है, भला अब दलाल की ज़रूरत क्या? वह तो काम के लिए आए गंजों को नाखून की तरह चुभता है। हम उसको नकार युग बदलने के दर्द के साथ खिड़की के पास गए। कर्मचारी ने हमें देखा तो बिना काम पूछे कह दिया, 'बहुत कठिन है। अभी दर्जनों लोगों के काम की कतार लगी है। परसों आइए, तब आपका काम सुनेंगे। कर देंगे, क्योंकि आजकल कोई काम रुकता तो नहीं?' हमें लगा खिड़की के पीछे योजना आयोग की जगह नीति आयोग आकर बैठ गया। अभी इस बात पर विचार कर रहा है कि वह हमारी पंचवर्षीय योजना बनाने के अंदाज़ में सुने या सात वर्षीय योजना? हम देश के योजनाबद्ध आर्थिक विकास का हश्र देख चुके थे। लगभग अड़सठ वर्ष बीतने को आए, कतार में खड़ा आखिरी आदमी वहीं खड़ा है जहां आज से अड़सठ वर्ष पहले खड़ा था। हमें लगा हम सावन के अंधे होने की बजाय यह हरा नहीं देख पाए। अवसन्न हो मुड़ कर देखना, उस खिड़की का दलाल हमें देखकर खींसे निपोर कर हंस रहा था।

सुरेश सेठ


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