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सब जानते हैं कि भारत, खासकर उत्तर भारत के प्राकृतिक वजूद के लिए हिमालय का होना कितना जरूरी है
सब जानते हैं कि भारत, खासकर उत्तर भारत के प्राकृतिक वजूद के लिए हिमालय का होना कितना जरूरी है, लेकिन तिल-तिल मरते हिमालय को बचाने की पहल कोई नहीं करता। कभी, कोई वैज्ञानिक या स्थानीय समाज इसको लेकर आवाज उठाते भी हैं तो उसे तरह-तरह के धतकरमों से ठंडा कर दिया जाता है। हिमालय में 'चार धाम यात्रा और सामरिक जरूरत के लिए बनाई जा रही बारामासी सड़क इसी तरह का एक नमूना है। बनते हुए और बनने के बाद यह सड़क क्या गुल खिलाएगी, इस लेख में यही बताने की कोशिश करेंगे। दुर्गम स्थानों को पार करने के लिए निश्चित ही पहाड़ों में सुदृढ़ व सुगम सड़कों के निर्माण की आवश्यकता है, लेकिन वह पहाड़ों की ऐसी बर्बादी न करे कि जिस तरह से 'चार धाम में निर्माणाधीन (बारामासी) ऑलवेदर सड़क के चौड़ीकरण से सामने आई है।
सड़क बनाने में यहां अंधाधुंध पेड़ों का कटान, मिट्टी, पानी, पत्थर की बर्बादी और छोटी-छोटी बस्तियों को उजाडऩे में कोई देर नहीं लगी है, लेकिन इस पर सरकार का ध्यान उतना नहीं गया जितना कि उच्च अदालतों ने संज्ञान लिया है। सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2019 में 'चार धाम सड़क चौड़ीकरण कार्य से समाज और पर्यावरण पर पड़ रहे प्रभाव के अध्ययन के लिए पर्यावरणविद डा. रवि चोपड़ा जी की अध्यक्षता में एक हाई पावर कमेटी गठित की। इसने अक्तूबर 2019 तक अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंप दी थी। इस पर अदालत में बहुत गंभीर बहस हुई, जिसके बाद 2012 व 2018 के सर्कुलर को ध्यान में रखते हुए सड़क की अधिकतम चौड़ाई 7 मीटर करने का आदेश दिया गया। इस दौरान सड़क चौड़ीकरण बहुत तेजी से हो रहा था, जिसमें कहीं भी पूर्व प्रस्तावित 10.24 मीटर चौड़ी सड़क को 7 मीटर तक नहीं किया गया। यह सिलसिला थमा नहीं और नवंबर 2020 में रक्षा मंत्रालय ने सेना की जरूरतों का हवाला देते हुए चौड़ी सड़क की मांग उठाई। दिसंबर 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में फिर संशोधन कर दिया, जिसमें सड़क को 10 मीटर तक चौड़ा रखने का आदेश था।
अदालतों में बहसों के दौरान 12 हजार करोड़ की लागत की इस परियोजना का काम 70 प्रतिशत तक पूरा भी हो गया। सुप्रीम कोर्ट ने कह दिया कि 'क्या पर्यावरण संरक्षण सेना की जरूरतों से ऊपर होगा या हमें यह कहना चाहिए कि रक्षा चिंताओं का ध्यान पर्यावरणीय क्षति न हो। इस उलझन के कारण हाई पावर कमेटी के अध्यक्ष ने सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल को पत्र भेजकर इस्तीफा दे दिया। डा. रवि चोपड़ा का कहना है कि कमेटी का अधिकार क्षेत्र केवल 'नॉन-डिफेंस स्ट्रेचेज तक सीमित रखने से उनका पद पर बने रहना उचित नहीं है। यह वाजिब इसलिए है कि जब हाई पावर कमेटी का निर्माण किया गया था, तब समाज और पर्यावरण पर पड़ रहे प्रभाव के बारे में उन्हें अध्ययन करना था। रक्षा मंत्रालय के कारण अदालत अब उस दिशा में कदम नहीं बढ़ा पाएगी, जिस विषय पर कमेटी ने लंबा समय लगाकर सैकड़ों पृष्ठों के अनेकों दस्तावेजों के द्वारा हिमालय के इस संवेदनशील भूभाग की स्थिति को उजागर किया था। हिमालय की नाजुक परिस्थितियों की चर्चा न तो पार्लियामेंट में हो रही है और न ही उच्च अदालत में। पर्यावरण की पूरी अनदेखी के साथ सुरक्षा का हवाला देकर जंगल, पानी और मिट्टी की अधिकतम बर्बादी की कीमत पर विकास की रेखा खींची जा रही है। केन्द्रीय सड़क एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी पहाड़ों में जिस 'हरित निर्माण तकनीक के अनुसार सड़कों के चौड़ीकरण की बात कर रहे हैं, उसके विपरीत 'ऑलवेदर रोड के सभी निर्माण कार्य किए जा रहे हैं।
अब तक लाखों टन मलबा सीधे गंगा और उसकी सहायक नदियों में बेधड़क डाला गया है। कहीं-कहीं पर दिखाने को 'डंपिंग जोन बने भी हैं तो उनकी क्षमता पूरे मलबे को समेटने की नहीं है। सच्चाई यह है कि भूस्खलन को रोकने के लिए पहाड़ों में किस तरह का निर्माण हो, इसकी वैज्ञानिक तकनीक होने के बावजूद उपयोग में नहीं लाई जा रही है। इसी कारण सन् 2021 की वर्षा में रिकॉर्ड 145 स्थानों पर 'चार धाम सड़क मार्ग बाधित रहा, जबकि पहले कभी इतने स्थानों पर भूस्खलन नहीं हुआ था। इसके चलते लगभग 80 स्थानों पर डेंजर जोन बन गए हैं, जिनसे लगातार पहाड़ गिरने से कई स्थानों पर सड़क के अलाइनमेंट भी बदल सकते हैं। यह स्थिति बड़ी जेसीबी मशीनों व विस्फोटों के कारण पैदा हो रही है। यहां स्थित अस्सी गंगा (2012), केदारनाथ (2013), ऋषि गंगा (2021) की आपदाओं के कारण सड़क और दो दर्जन से अधिक जल विद्युत परियोजनाओं की बर्बादी और मारे गए हजारों लोगों से कोई सबक अब तक नहीं लिया गया है। अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद शेष बचे उत्तरकाशी से गंगोत्री के बीच लगभग 100 किमी में सड़क चौड़ीकरण होना है। यहां पर लाखों देवदार के छोटे-बड़े पेड़ों को काटने की तैयारी चल रही है। इस संबंध में नितिन गडकरी जी ने कहा है कि वे पेड़ों को दूसरी जगह रिप्लांट करेंगे, यह तो भविष्य ही बताएगा। भागीरथी के उद्गम से उत्तरकाशी तक के क्षेत्र को वैज्ञानिकों ने अति संवेदनशील बताया है क्योंकि इस क्षेत्र में बाढ़, भूस्खलन, भूकम्प पिछले कई वर्षों से लगातार प्रभावित कर रहे हैं। लेकिन सामरिक दृष्टि से भी इस क्षेत्र का महत्व है।
बॉर्डर लाइन तक की सुविधाओं में भी चौड़ी सड़क का निर्माण जरूरी बताया गया है, जो एक चुनौती है। सितंबर 2019 में उत्तरकाशी पहुंचे तत्कालीन थल सेना प्रमुख स्व. जनरल विपिन रावत ने भी गंगोत्री के पर्यावरण के प्रति चिंता जाहिर की थी। उनका संकेत था कि पहाड़ों में मजबूत सड़क की आवश्यकता है, लेकिन बड़े स्तर पर पर्यावरण विनाश न हो। उन्होंने गंगोत्री हाईवे की मौजूदा स्थिति को उपयुक्त माना था। वर्ष 1962-65 में गंगोत्री मोटर मार्ग का निर्माण हुआ था। तब यहां स्थित सुखी, जसपुर, झाला आदि कई गांवों ने अपनी जमीन नि:शुल्क सरकार को दी थी। आज इसी स्थान को नजरअंदाज करके सड़क दूसरी दिशा में मोड़ी जा रही है। वह भी ऐसे स्थान से जहां देवदार समेत कई बहुमूल्य प्रजाति के घने जंगल हैं और जंगली जानवरों के सघन आवास मौजूद हैं। यहां कटान के लिए हजारों देवदार के पेड़ों पर निशान लगा दिए गए हैं। विरोध में 18 जुलाई 2018 को सुखी टॉप (8 हजार फीट) में एकत्रित होकर गांव वालों ने हरे देवदार के पेड़ों को बचाने हेतु रक्षासूत्र बांधे हैं। पेड़ों की रक्षा का संकल्प लेते हुए स्थानीय लोगों ने सुखी गांव से ही मौजूदा सड़क को यथावत रखने की अपील की है। इससे आगे जसपुर गांव से बगोरी, हर्षिल, मुखवा से जांगला तक ऑलवेदर रोड की मांग की है। यहां पर बहुत ही न्यूनतम पेड़ हैं और अधिकांश जगह पर मोटर सड़क बन भी गई है। यदि सड़क और राजमार्ग मंत्रालय इसकी स्वीकृति दे दे तो सुखी बैंड से हर्षिल होते हुए जांगला तक हजारों देवदार के पेड़ों को बचाया जा सकता है। इसके अलावा गंगोत्री जाने वाले यात्रियों को भागीरथी के दोनों ओर से जाने-आने की सुविधा भी मिलेगी। -(सप्रेस)
सुरेश भाई
स्वतंत्र लेखक
Rani Sahu
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