सम्पादकीय

खेलो इंडिया की नर्सरी

Rani Sahu
12 Jun 2022 7:05 PM GMT
खेलो इंडिया की नर्सरी
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खेल की उपलब्धियों में हिमाचल का दर्जा जब हरियाणा जैसे खेल राज्य को हराकर ऊपर उठता है

खेल की उपलब्धियों में हिमाचल का दर्जा जब हरियाणा जैसे खेल राज्य को हराकर ऊपर उठता है, तो संभावनाओं के नए अक्स और प्रतिभाओं के नए संकल्प मजबूत होते हैं। खेलो इंडिया यूथ गेम्स की लड़कों की कबड्डी में हिमाचल का जलवा ऐसी आशा लेकर आ रहा है, जो भविष्य में खेल संस्कृति का विस्तार कर सकता है। पंचकूला के संघर्ष में हिमाचल की युवा कबड्डी का परिचय न केवल सम्मान अर्जित करता है, बल्कि आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त करते हुए यह विश्वास दिलाता है कि पहाड़ी मिट्टी और आबोहवा का इस्तेमाल किया जाए, तो राष्ट्रीय पदकों की तालिका में प्रदेश का नाम भी उज्ज्वल होगा। खेेलो इंडिया खेलो की नर्सरी में हिमाचल के लिए अपनी संभावना के जो मानदंड विकसित हो रहे हैं, उससे आगे चलकर हम यह तय कर सकते हैं कि प्रदेश को किन खेलों पर अधिक तवज्जो देना होगा। पंचकूला के परिणाम के लिए बिलासपुर खेल छात्रावास को साधुवाद तथा उन तमाम प्रशिक्षकों को श्रेय देना होगा जिन्होंने इस परिणाम की परिधि तक पहुंचने में अपनी साधना का फलक ऊंचा किया। इससे पहले भी साई के बिलासपुर व धर्मशाला के छात्रावासों के तहत हिमाचली प्रतिभा का निखार कबड्डी व एथलेटिक्स में देखने को मिला है।

राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर की उपलब्धियों में हिमाचल के कई खिलाड़ी हॉकी, वॉलीबाल, एथलेटिक्स व हैंडबाल जैसी प्रतियोगिताओं में चमक चुके हैं, फिर भी हम यह नहीं कह सकते कि प्रदेश में खेलों के प्रति अभिभावकों का समर्थन व बच्चों का प्रदर्शन अपनी क्षमता के मुताबिक हो पा रहा है। इस दौरान कुछ खेल संघों खास तौर पर क्रिकेट एसोसिएशन ने प्रतिभा चयन तथा प्रशिक्षण सुविधाओं में इजाफा करते हुए राष्ट्रीय महिला क्रिकेट तक अपनी मंजिल बनाई है। बेशक प्रदेश के अपने खेल छात्रावास तथा भारतीय खेल प्राधिकरण के प्रयास अब कुछ हद तक प्रतिभाओं को आगे ला रहे हैं, लेकिन देखना यह होगा कि राज्य की अपनी खेल नीति किस तरह प्रभावी ढंग से खिलाडि़यों के भविष्य को सुरक्षित करती है। खिलाडि़यों के लिए रोजगार एक बात है, लेकिन देखना यह होगा कि सरकारी सेवाओं में आकर खिलाड़ी केवल नौकरीपेशा बनकर वेतनभोगी ही न बन जाएं, बल्कि अपनी मशाल को जलाए रखने का जज्बा पैदा करें। हिमाचल में विभिन्न खेल अकादमियों का संचालन तथा खेल पर्यटन को नए आयाम तक पहुंचाने के लिए आयोजनों की वार्षिक तालिका को मजबूत करने की जरूरत है। धर्मशाला, मंडी या सोलन में अगर कुछ वार्षिक आयोजन होते हैं, तो इन्हें राष्ट्रीय फलक तक आगे बढ़ाने के लिए एक सशक्त व्यवस्था चाहिए। इसी तरह ग्रामीण खेलों खास तौर पर मेलों में छिंजों के आयोजन को नई संभावना के तौर पर देखते हुए कुश्ती को नए आयाम तक पहुंचाने की जरूरत है।
बिलासपुर, मंडी, कांगड़ा, हमीरपुर व कुछ अन्य जिलों में कुछ ऐसे मेला ग्राउंड आज भी मौजूद हैं, जहां छिंजों के वार्षिक आयोजन की अधोसंरचना मौजूद है। पड़ोसी हरियाणा, पंजाब, जम्मू-कश्मीर व राजस्थान तक के पहलवान यहां आकर छिंज परंपरा की मिट्टी में अपना कौशल व खेल के प्रति वचनबद्धता दिखाते हुए, धन अर्जित कर सकते हैं तो इसी की छत्रछाया में हिमाचल की अपनी कुश्ती भी तो पनप सकती है। हिमाचल में स्कूल, कालेज व यूनिवर्सिटी स्तर तक खेलों का माहौल तैयार करना होगा तथा टेलेंट को मुकाम तक पहुंचाने की परंपरा स्थापित करनी होगी। हैरानी यह कि पौंग झील में जल क्रीड़ाओं और एथलेटिक्स व साइकिलिंग के अभ्यास के लिए गुरु नानक देव विश्वविद्यालय के छात्र हिमाचल में समर कैंप लगाते हैं, लेकिन प्रदेश के विश्वविद्यालयों के पास इतनी फुर्सत भी नहीं कि ऐसे कार्यक्रम चलाए जा सकें। हिमाचल में खेलों के उत्थान के लिए केंद्रीय खेल एवं सूचना प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर से बड़ी आशा है। अगर वह केंद्रीय विश्वविद्यालय के तहत खेल ढांचे को विकसित करवाते हैं, या हाई आल्टीट्यूट ट्रेनिंग सेंटर की दिशा में केंद्रीय सरकार का तोहफा लाते हैं, तो यह कदम प्रशंसनीय होगा। हिमाचल जिस दिन राष्ट्रीय खेलों के आयोजन को पहल करेगा, उसी दिन से प्रदेश में आधा दर्जन राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर के खेल परिसर विकसित हो जाएंगे।

By: divyahimachal

Rani Sahu

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