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- कनाडा में खालिस्तान
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By: divyahimachal
खालिस्तान समर्थक उग्रवादियों की पैरोकारी करते हुए कनाडा के प्रधानमंत्री ट्रूडो ने भारत पर जो बेहद गंभीर आरोप चस्पा किया है, उससे न केवल राजनयिक टकराव पैदा हुआ है, बल्कि भारतीय छात्रों और अनिवासी भारतीयों पर खतरे मंडराने लगे हैं। कनाडा ने हमारे एक वरिष्ठ राजनयिक को देश छोडऩे का आदेश दिया है, तो हमारे विदेश मंत्रालय ने भी कनाडाई राजनयिक को ‘देशनिकाला’ दे दिया है। यह लोकतांत्रिक और सहयोगी देशों के लिए सुखद स्थितियां नहीं हैं। भारत सरकार को अपने नागरिकों के लिए सतर्कता का परामर्श जारी करना पड़ा है। कनाडा भारतीयों, खासकर पंजाबियों के लिए, दूसरा घर रहा है, लेकिन अब खालिस्तानियों की निश्चित पनाहगाह भी बन गया है। कनाडा नाटो और यूरोपीय संघ का सदस्य-देश है, तो जी-20 समूह में भारत के साथ भी शामिल है। शिखर सम्मेलन के दौरान दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने द्विपक्षीय संवाद किया था, जिसके दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने भारतीय दूतावासों और मंदिरों पर खालिस्तानी उग्रवादियों के हमलों का मुद्दा उठाया था। कनाडाई प्रधानमंत्री को सचेत किया गया था कि भारत इन हरकतों को बर्दाश्त नहीं करेगा। उसके बावजूद प्रधानमंत्री ट्रूडो ने अपनी संसद में संगीन आरोप लगाए कि कनाडा के नागरिक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या भारतीय एजेंसियों ने कराई थी। उन्हें यह भी कहना पड़ा कि कनाडा भारत को उकसाना नहीं चाहता, लेकिन वह गंभीरता से इस पर सोचे। यदि प्रधानमंत्री ट्रूडो की सोच खालिस्तान समर्थक नहीं थी, तो उन्होंने यह आरोप किन साक्ष्यों के आधार पर चस्पा किया? उन्होंने भारतीय राजनयिक को ‘देशनिकाला’ क्यों दिया? उनके देश में खालिस्तान समर्थक उग्रवादी सरेआम सक्रिय क्यों हैं? क्या कनाडा ही खालिस्तान बन गया है?
भारतीय हिंदू छात्रों और अनिवासी भारतीयों को कनाडा छोड़ कर चले जाने की धमकियां क्यों दी जा रही हैं? क्या खालिस्तानी गुरपतवंत पन्नू अब तय करेगा कि कनाडा में कौन बसेगा और किसे देश छोड़ देना चाहिए? ट्रूडो बताएं कि ऐसा क्यों है? क्या 2.30 लाख छात्रों और करीब 7 लाख अनिवासी भारतीयों के प्रति कनाडाई प्रधानमंत्री की कोई जवाबदेही और जिम्मेदारी नहीं है? यदि प्रधानमंत्री ट्रूडो के आरोपों में जरा-सा भी तथ्य होता, तो अमरीका समेत यूरोपीय देश उनके आरोप का समर्थन करते और भारत पर दबाव बनाते। हालांकि पश्चिमी देश छोटे-मोटे मुद्दों पर ही भारत का पांव दबाने लगते हैं, लेकिन कारोबार, बाजार और रणनीतिक साझेदारी के मद्देनजर भारत के ही मुखापेक्षी रहे हैं। बहरहाल कनाडा के वरिष्ठ पत्रकार और भारतवंशी लोग लगातार आग्रह कर रहे हैं कि प्रधानमंत्री ट्रूडो को साक्ष्यों के आधार पर बात करनी चाहिए। अमरीका समेत कुछ देश भी तथ्यों के आधार पर जांच की मुखर मांग करने लगे हैं। यदि ट्रूडो खालिस्तान के इतने वैचारिक, सामाजिक, राजनीतिक हमदर्द हैं, तो कनाडा में ही ‘खालिस्तान’ बसा सकते हैं। कनाडा में व्यापक भूभाग हैं, जहां खालिस्तान बसाया जा सकता है। कनाडा में सिख, हिंदू और मिश्रित भारतीयों की आबादी खूब है।
कनाडा की अर्थव्यवस्था के आधार ही भारतीय हैं। भारत के साथ हजारों करोड़ रुपए का कनाडा व्यापार करता है, लेकिन ट्रूडो ध्यान रखें कि खालिस्तान की पैरोकारी ‘आत्मघाती’ साबित हो सकती है, क्योंकि यह उग्रवाद और अलगाववाद, अंतत:, आतंकवाद ही है और कनाडाई प्रधानमंत्री ने वैश्विक संगठनों के घोषणा पत्रों पर हस्ताक्षर भी किए हैं, जिनमें आतंकवाद का मुद्दा भी शामिल रहा है। सवाल यह भी है कि क्या प्रधानमंत्री ट्रूडो को अपनी ‘अल्पमत सत्ता’ बचाने को खालिस्तानियों की पैरोकारी करनी पड़ रही है? दरअसल उन्हें खालिस्तान समर्थक राजनीतिक दल के 24 सांसदों का समर्थन हासिल है, जिसके आधार पर उनकी सरकार का बहुमत बनता है और वह कनाडा के प्रधानमंत्री बने हुए हैं। यह भी गौरतलब है कि भारत ने कभी भी, किसी भी देश की, संप्रभुता में न तो हस्तक्षेप किया और न ही पहला हमला किया। यदि भारत देशद्रोहियों, दुश्मनों और आतंकियों के खिलाफ सख्ती करता है अथवा उनकी हत्या भी कर देता है, तो ऐसी कार्रवाई में गलत क्या है? क्या अमरीका, चीन, रूस और इजरायल ने अपने देश के दुश्मनों को, अपनी सीमाओं के बाहर जाकर, नहीं मारा? चीन ने कनाडा में ही अपने आलोचकों की हत्या की है, तब ट्रूडो की जुबान क्यों चिपक कर रह गई? ध्यान रहे कि भारत किसी भी देश में अपने खिलाफ हिंसक हरकतों को कभी बर्दाश्त नहीं करेगा।
Rani Sahu
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