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घर-घर राशन योजना पर रोक लगाए जाने के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
कैलाश बिश्नोई। घर-घर राशन योजना पर रोक लगाए जाने के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर अनुरोध किया है कि केंद्र सरकार दिल्ली में इस योजना को लागू होने दे। दिल्ली के मुख्यमंत्री ने अपने पत्र में कहा है कि केंद्र सरकार इस राशन योजना में जो बदलाव करवाना चाहती है, वह दिल्ली सरकार करने को तैयार है।
गौरतलब है कि पिछले दिनों घर-घर राशन योजना को खारिज करते हुए दिल्ली के उपराज्यपाल ने दो कारण बताए हैं कि पहला कारण इस डोर स्टेप डिलीवरी योजना को केंद्र सरकार द्वारा अनुमोदित नहीं किया गया है और दूसरा यह कि योजना के खिलाफ न्यायालय में एक मामला चल रहा है। यहां गौर करने वाली बात यह है कि दिल्ली की राशन वितरण योजना पर सर्वप्रथम विवाद मार्च में सामने आया था। उस समय केंद्र सरकार ने तर्क दिया था कि एनएफएसए यानी राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा एक्ट के तहत राशन का वितरण किया जाता है। लिहाजा कोई राज्य इसमें किसी तरह का परिवर्तन नहीं कर सकता। इस आपत्ति के बाद गत 25 मार्च को यह योजना रोक दी गई थी।
हालांकि मार्च में केंद्र सरकार की आपत्ति के बाद दिल्ली सरकार ने इस योजना से मुख्यमंत्री शब्द हटाकर घर घर राशन योजना करने का फैसला किया। उपराज्यपाल द्वारा दोबारा रोक लगाए जाने के बाद दिल्ली सरकार तर्क दे रही है कि जब पिज्जा-बर्गर की होम डिलीवरी हो सकती है तो फिर राशन की होम डिलीवरी क्यों नहीं हो सकती। वहीं केंद्र सरकार कह रही है कि घर-घर राशन पहुंचाने से इस योजना में भ्रष्टाचार की प्रबल आशंका है, इस तरीके में यह पता नहीं लग पाएगा कि राशन किसके पास पहुंच रहा है। लिहाजा इस तरह से राशन पहुंचाने को सही नहीं कहा जा सकता। ऐसे में सवाल उठता है कि केवल भ्रष्टाचार की आशंका से किसी योजना को रोकना कितना सही है?
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आम आदमी तक राशन पहुंचाने को लेकर राजनीति चल रही है। पिछली तमाम योजनाओं तथा कार्यक्रमों में भी यही देखा गया, जब आम जनता से जुड़े मुद्दों पर दिल्ली में काम कम और राजनीति ज्यादा हुई है। जाहिर है दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के मध्य इस मुद्दे पर तनातनी केवल योजना का श्रेय लेने की होड़ कहा जा सकता है। इस योजना पर उठे विवाद के बीच आम लोगों की राय यही बन रही है कि यह विवाद राशन योजना का श्रेय लेने के लिए हो रहा है। यहां गौर करने वाली बात यह है कि दिल्ली सरकार ने भी श्रेय लेने के लिए शुरुआत में घर-घर राशन योजना को मुख्यमंत्री घर-घर राशन योजना के रूप में प्रस्तुत किया था। दूसरी तरफ केंद्र का पक्ष है कि अगर इस योजना में 90 प्रतिशत से ज्यादा पैसा केंद्र सरकार खर्च करती है तो राज्य सरकार को इसका श्रेय क्यों लेना चाहिए। इन सबके बीच एक चीज साफ है कि राजनीतिक नफा-नुकसान का गणित तथा श्रेय लेने की होड़ में असली नुकसान जनता का ही होता है।
जन सुविधाओं से जुड़ी योजनाओं को लेकर डोर स्टेप डिलीवरी का एक ऐसा ही मामला कुछ साल पहले भी सामने आया था, तब भी डोर स्टेप डिलीवरी पर जमकर राजनीतिक खींचतान देखने को मिली थी। दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार ने कुछ साल पहले कई सरकारी सुविधाओं की डोर स्टेप डिलीवरी की योजना बनाई थी। इस योजना को जब दिल्ली के उपराज्यपाल के पास भेजा गया तो वहां फाइल को मंजूरी नहीं मिली। उपराज्यपाल ने उस समय डोर स्टेप डिलीवरी को लेकर कई आपत्तियां जताईं और इसे मंजूर करने से इन्कार कर दिया।
हालांकि बाद में केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच लंबी खींचतान के बाद 40 से ज्यादा सेवाओं की डोर स्टेप डिलीवरी की योजना को हरी झंडी मिल गई, जिसका इस्तेमाल आज दिल्ली के लाखों लोग कर रहे हैं। इससे लोगों को सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने के अलावा बिचौलियों से भी छुटकारा मिला है। अब घर-घर राशन योजना में भी दिल्ली सरकार चाहती है कि राशन का वितरण भी डोर स्टेप डिलीवरी के माध्यम से किया जाए। इस योजना का विश्लेषण करें तो इस योजना में ऐसी व्यवस्था की गई है कि हर राशन लाभार्थी को चार किलो गेहूं का आटा, एक किलो चावल और चीनी घर पर मिल जाएगी, जबकि वर्तमान राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत अब तक गेहूं दिए जाने का प्रविधान है। उम्मीद की जा रही है कि राशन की डोर स्टेप डिलीवरी व्यवस्था शुरू होने के बाद दिल्ली में राशन की कालाबाजारी और राशन माफियाओं पर रोक लगाई जा सकेगी
राशन वितरण में कालाबाजारी : राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम से जुड़े आंकड़ों का गहन विश्लेषण करें तो राशन वितरण में कालाबाजारी की समस्या केवल दिल्ली की ही नहीं है, बल्कि देश के कई राज्य इस विकराल समस्या से जूझ रहे हैं। राशन वितरण प्रणाली यानी सार्वजनिक वितरण प्रणाली में रिसाव (लीकेज) की समस्या काफी गंभीर है जिसका मुख्य कारण सरकारी तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार है। असल में देश में राशन वितरण तंत्र वर्तमान में कई समस्याओं से त्रस्त है। मसलन काम के समय अक्सर राशन की दुकानों का बंद पाया जाना, खाद्यान्न की खराब गुणवत्ता, राशन डीलरों द्वारा कम राशन देना, राशन की कालाबाजारी करना आदि प्रमुख समस्याएं हैं।
देश में खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए केंद्र सरकार ने खाद्य सुरक्षा कानून लागू करने की घोषणा तो कर दी, पर इसका समुचित लाभ गरीबों तक नहीं पहुंच रहा है। कई बार यह देखने में आता है कि एफसीआइ से निर्धारित कोटे के पूरे अनाज का उठाव राज्य में हो जाता है, पर यह अनाज गरीबों तक नहीं पहुंच पाता। जाहिर है कि गरीबों के अनाज की कालाबाजारी हो रही है। यह भी शिकायत अक्सर आती है कि जिन लोगों को अनाज मिलता भी है, उनसे निर्धारित कीमत से अधिक पैसे ले लिए जाते हैं
क्या हो आगे की राह : इसमें कोई दो राय नहीं कि तकनीक केंद्रित उपायों की वजह से गरीबी में कमी लाने के संदर्भ में सार्वजनिक वितरण प्रणाली ने काफी अहम भूमिका निभाई है, परंतु इस प्रणाली की कई मुद्दों पर आलोचना भी हो रही है। ऐसे में यह जरूरी है कि इसकी कार्यप्रणाली को और प्रभावी बनाने के लिए लंबित सुधारों को गति दी जाए। सरकार को पीडीएस की वस्तुओं के अधिग्रहण के प्राथमिक स्तर (अर्थात एफसीआइ) से लेकर एफपीएस यानी फोकस प्रोडक्ट स्कीम तक की समस्त प्रक्रिया का डिजिटलीकरण करने की दिशा में आगे बढ़ने की जरूरत है। यहां इस बात का भी जिक्र करना जरूरी है कि पीडीएस में छत्तीसगढ़ का माडल काफी सराहनीय है। यहां एफपीएस के संचालन में सामाजिक क्षेत्र (यथा- एनजीओ, एसएचजी आदि) का सहयोग, डोरस्टेप डिलीवरी आदि नवीन प्रयोग सफल रहे हैं। इसी कारण एनएसएसओ के उपभोग के 68वें चक्र के अनुसार छत्तीसगढ़ में पीडीएस में रिसाव को रोकने में काफी काफी हद तक सफलता मिली है.
नकद हस्तांतरण : सार्वजनिक वितरण प्रणाली की कार्यप्रणाली को अधिक प्रभावी बनाने के लिए इसमें सुधार से संबंधित शांता कुमार समिति की सिफारिश को लागू करने पर विचार किया जा सकता है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) में सुधार पर बनी शांता कुमार समिति ने यह सिफारिश की है कि भारत में पीडीएस में रिसाव के उच्च स्तर को देखते हुए खाद्यान्नों के भौतिक वितरण की जाय लाभाíथयों के बैंक खातों में नगद हस्तांतरण यानी कैश ट्रांसफर किया जाना चाहिए। अब इस सुझाव पर गंभीरता से विचार करने का वक्त आ गया है। लाभाíथयों के खाते में कैश ट्रांसफर से कई फायदे होंगे। पीडीएस में व्याप्त भ्रष्टाचार में कमी आएगी और लीकेज कम होगा। अनाज वितरण करने की प्रक्रिया में होने वाले खर्च में कमी आएगी तथा समय भी कम लगेगा। एक अनुमान के मुताबिक इससे सरकार को हर वर्ष लगभग 30 हजार करोड़ रुपये की बचत होगी। दूसरा लाभ यह होगा कि लोग अपनी पसंद के खाद्य खुले बाजार से खरीद सकेंगे।
दिल्ली सरकार की घर-घर राशन योजना पर उठे विवाद के बाद सार्वजनिक वितरण प्रणाली फिर से सुर्खियों में है। वर्तमान में सार्वजनिक वितरण प्रणाली कई प्रकार की समस्याओं एवं कमजोरियों से ग्रस्त है। पीडीएस की सबसे बड़ी कमजोरी है कि इसके द्वारा अभी तक अपेक्षित मात्र में निरपेक्ष गरीबी को कम नहीं किया जा सका है, अर्थात पीडीएस से गरीब जनता को सीमित मात्र में ही लाभ मिल पाता है। एक अनुमान के मुताबिक, निर्धन लोग अपनी आवश्यकताओं का लगभग 25 फीसद भाग ही पीडीएस से पूरा कर पाते हैं। यह चिंताजनक बात है कि पीडीएस में अभी अपेक्षित मात्र में लोगों का समावेश नहीं हो पाया है। इस समावेशन के न हो पाने की कई वजहें हैं जो अब संस्थागत रूप भी ले चुकी हैं, जैसे भ्रष्टाचार आदि। इस समावेशन त्रुटि के कारण उच्च आय वाले लोग सार्वजनिक वितरण प्रणाली का अधिक लाभ उठा लेते हैं।
पीडीएस के जरिए वितरित की जाने वाली सामग्री विशेष रूप से खाद्यान्न की गुणवत्ता सही नहीं होती है जिस कारण लोगों की रूचि कम हो जाती है और उन्हें कई प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है। पीडीएस के अनाज में गुणवत्ता कम होने की कई वजहें हैं, लेकिन उनमें दो प्रमुख वजहों को देखा जा सकता है- अनाज खरीदते समय गुणवत्ता के मानकों को ताक पर रखना और स्टोरेज यानी भंडारण की समस्या।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत बांटे जाने वाले अनाज के भंडारण में फूड कारपोरेशन ऑफ इंडिया एवं अन्य हितधारकों द्वारा पर्याप्त सावधानी नहीं बरती जाती है। एक अनुमान के मुताबिक सरकार द्वारा खरीदे गए कुल खाद्यान्न का हर साल करीब दस प्रतिशत हिस्सा खराब हो जाता है। खाद्यान्न बर्बादी का प्रमुख कारण उचित भंडारण का न होना है। सालाना लगभग 18 लाख टन अनाज की बर्बादी उचित भंडारण के न होने से होती है। इसके अतिरिक्त उपभोक्ता मामलों के मंत्रलय की रिपोर्ट के मुताबिक लगभग 60 हजार टन अनाज की क्षमता के गोदाम वर्ष 2013 से 2018 के बीच क्षतिग्रस्त हो गए हैं। कुछ इसी तरह का आंकड़ा खाद्य एवं कृषि संगठन भी देता है। इन तमाम आंकड़ों से यह जाहिर है कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली हमारे देश में कई तरह की समस्याओं से जूझ रही है जिसका उचित समाधान तलाशना ही होगा।
[शोध अध्येता, दिल्ली विश्वविद्यालय]
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