सम्पादकीय

चलो, कुछ तीखा हो जाए

Rani Sahu
26 July 2022 6:46 PM GMT
चलो, कुछ तीखा हो जाए
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हालांकि अब वे सेवानिवृत्त हो गए हैं खाने कमाने वाले पद से, पर अभी भी वे अपनी तथाकथित धार्मिक गैंग को पूरी तरह समर्पित हैं

हालांकि अब वे सेवानिवृत्त हो गए हैं खाने कमाने वाले पद से, पर अभी भी वे अपनी तथाकथित धार्मिक गैंग को पूरी तरह समर्पित हैं। कल इन्हीं बंधु का फोन आया। जुबान फूली हुई। असल में इन दिनों उनके परम पूज्नीय गुरुदेव कारावास से लाइव चल रहे थे, 'धर्म की जय हो। स्वस्थ समाज का नाश हो। आज का अखबार पढ़ा क्या हे स्वहित चिंतक जी?' 'हां तो गुरु के गुरु महागुरु! आज भी अखबार में नया क्या है? वही बासी तेजाब से सने भाषण, वही बासी जनता को झूठे आश्वासन! वही रोती बिलखती अर्थव्यवस्था, वही शक्ति के मद में चूर व्यवस्था। खबर है कि चोर पुलिस का पकडऩे के लिए उसके पीछे उन्हीं की गाड़ी लिए भाग रही है, जनता सो सो कर रोज की तरह आज सुबह भी जाग रही है। इधर आदमी टूट रहा है तो उधर उसकी जेब का रुपया। पर खेद! रुपया टूटता है तो आरबीआई आगे आ जाता है, उसे डॉलर का सहारा दे रोते रोते उठाता है। पर जब मेरे जैसा टूटता है तो उसके अपने भी उससे दूर हो जाते हैं। देखा आदमी और रुपए का अंतर!' 'जब देखो, माया मोह की बातें करते रहते हो। इसीलिए तो कहता हूं हमारा धार्मिक गु्रप ज्वाइन कर लो। मन को परम शांति मिलेगी। अपनी गुरु बीवी से पता चला है अखबार में आज खबर छपी है कि जो जेल से बाहर आए हैं, वे असली नहीं, हमारे नकली गुरु हैं।' 'तो क्या हो गया! चराचर जगत् में असली है ही क्या? बस, असली का भ्रम मात्र असली है। शेष यहां सब नकली है। यहां साबुन नकली है, दातुन नकली है। तेल नकली है, दिलों का मेल नकली है। घी नकली है, जी नकली है। डिग्री नकली है, जिगरी नकली है। अंडा नकली है, मुर्गी नकली है। शान नकली है, पहचान नकली है। करंसी नकली है, हंसी नकली है। नेता नकली है, ठेका नकली है। जनसेवा का काउंटर नकली है, अपराधी का एनकाउंटर नकली है। दूध नकली है, पूत नकली है।

गुरु नकली है, चेला नकली है। आटा नकली है, दाता नकली है। आदमी के दांत नकली है, खाया पचाने वाली आंत नकली है। दवा नकली है, दुआ नकली है। साहब नकली है, रुआब नकली है। नक्कालों से भरे इस समाज में जो तुम्हारे गुरु भी नकली हैं तो अचरज काहे का? सब यहां अपने अपने धर्म के माल से लेकर सत्कर्म तक का नकली माल एक दूसरे को नक्कालों से सावधान करते मजे से बेच रहे हैं। पर तुम्हें कैसे पता चला कि तुम्हारे जो गुरुदेव जेल में आराम फरमा बाहर आए हैं, वे नकली हैं?' 'बंधु! इस बात का तब पता चला जब वे अंगड़ाई लेते कारागार से बाहर आए तो उनके खुफिया भक्तों ने देखा कि उनके हाथ बढ़े हुए हैं। हाथ पांव के नाखून पहले से अधिक एक दूसरे के सिर पर चढ़े हुए हैं।' 'तो इसमें अचरज क्या है भाई साहब? अब परेशान मत होइए! इंज्वाय कीजिए! आम आदमी जब बिन जुर्म किए जुर्म की सजा काट जेल से बाहर आता है तो उसके शर्म से हाथ कटे और कद बौना हुआ होता है। जब कोई खास जेल से अपने जुर्मों की सजा भुगत तफरीह करने बाहर आता है तो गर्व से उसके हाथ पहले से अधिक लंबे और कद पहले से ऊंचा हुआ होता है। यही आम और खास आदमी में अंतर होता है। इसलिए बंधु! परेशान होने के बदले जश्न मनाओ जश्न! बधाई ! अब उनके हाथ और लंबे हो गए। कद और ऊंचा हो गया। बस, अब इस खुशी में कुछ तीखा हो जाए…'। 'तीखा बोले तो…?' जिसकी जिसमें अंधास्था हो उसे सब कुछ समझाया जा सकता है, पर उसके गुरुदेव के बारे में साफ-साफ सच नहीं बताया जा सकता। यही सोच आगे मैं चुप हो गया। अंधास्थियों से मगज़ मार आज तक किसी का मगज़ खुश हुआ है क्या?
अशोक गौतम

By: divyahimachal

Rani Sahu

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