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- महंगाई पर नजर
Written by जनसत्ता; आरबीआइ के गवर्नर ने कहा है कि बैंक की नजर महंगाई पर लगातार बनी हुई है और जल्दी ही इस पर काबू पा लिया जाएगा। इस बात को उन्होंने उपलब्धि के रूप में रेखांकित किया कि समय रहते ब्याज दरों को संतुलित कर महंगाई की तीव्रता को रोक लिया गया, नहीं तो स्थिति और बुरी हो सकती थी। हालांकि रिजर्व बैंक का मकसद है कि महंगाई को अगर छह फीसद के स्तर पर रोक दिया जाए, तो वह सहन करने लायक हो सकती है। मगर पिछली तीन तिमाहियों यानी नौ महीने से महंगाई पर अंकुश लगा पाना रिजर्व बैंक के लिए मुश्किल बना हुआ है।
इस संबंध में वह सरकार को रिपोर्ट भी सौंपेगा कि क्यों वह महंगाई को नहीं रोक पाया। नियम के मुताबिक उसे ऐसा करना जरूरी है। इससे यह कयास पुख्ता हुआ है कि रिजर्व बैंक एक बार फिर ब्याज दरों में बढ़ोतरी का फैसला कर सकता है। इसके पहले थोड़े-थोड़े समय बाद रेपो दरों में बढ़ोतरी के सकारात्मक नतीजे भी सामने आए हैं, जिससे स्वाभाविक ही एक बार फिर रेपो दरों में बढ़ोतरी का दबाव बना हुआ था।
हालांकि महंगाई को चार फीसद पर रोकना अर्थव्यवस्था के लिए बेहतर माना जाता है, मगर कोरोना महामारी और फिर कच्चे तेल की कीमतों में लगातार उतार-चढ़ाव और वैश्विक आर्थिक उथल-पुथल के बीच इसे साधना कठिन होता गया। अब उसका अनुमान है कि अगले वित्तवर्ष तक महंगाई का रुख नीचे की तरफ हो जाएगा। मगर महंगाई पर काबू पाने के लिए केवल रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति कारगर औजार साबित नहीं होती। इस वक्त अर्थव्यवस्था के मामले में सभी मोर्चों पर चुनौतियां बनी हुई हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत अनिश्चित रुख बनाए हुई है।
व्यापारिक गतिविधियां काफी कमजोर स्थिति में हैं। निर्यात की दर चिंताजनक स्तर पर नीचे पहुंच गई है, जबकि आयात लगातार बढ़ रहा है। ऐसे में विदेशी मुद्रा भंडार छीज रहा है। घरेलू बाजार में रौनक इसलिए नहीं लौट पा रही कि लोगों की क्रयशक्ति काफी कमजोर हो चुकी है। इसका बड़ा कारण बहुत सारे लोगों का काम-धंधा बंद हो जाना, नौकरियां खो देना, छोटे, मंझोले और लघु उद्योगों का बंद हो जाना है। हालांकि सरकार ने नए सिरे से कारोबार शुरू करने के लिए आसान शर्तों पर कर्ज उपलब्ध कराने की घोषणा की, पर उससे लोग उत्साहित नजर नहीं आए। इस तरह रोजगार के मामले में अनिश्चितता बनी हुई है।
रिजर्व बैंक ने रेपो दर में बढ़ोतरी कर बचत को आकर्षित करने में तो कुछ कामयाबी हासिल की, मगर जिन लोगों ने कर्ज लेकर काम-धंधे शुरू किए थे, उन पर ब्याज का बोझ बढ़ गया। फिर तेल की कीमतें कम न होने की वजह से उत्पादन पर असर पड़ रहा है, वस्तुओं की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं। सबसे चिंता की बात यह कि थोक महंगाई पर काबू नहीं पाया जा पा रहा है। साफ है कि बड़े उद्योगों में उत्पादन और उनके उत्पाद की मांग घटी है। इस तरह अर्थव्यवस्था में इस क्षेत्र का योगदान तीन फीसद के आसपास पहुंच गया है। रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति से बाजार में पूंजी के प्रवाह को संतुलित करने का प्रयास तो कर सकता है, मगर केवल इतने से महंगाई पर काबू पाने का दावा करना मुश्किल है।