सम्पादकीय

कश्मीर की 'फिजां' की फरियाद

Subhi
20 Oct 2021 2:50 AM GMT
कश्मीर की फिजां की फरियाद
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कश्मीर की फिजां को बिगाड़ने की जो साजिश रची जा रही है उसकी हकीकत यह है कि घाटी में पाकिस्तान परस्त दहशतगर्द तंजीमें झुंझलाहट और खिसियाहट में भारत के ही लोगों को अपना निशाना बना कर दुनिया को यह दिखाना चाहती हैं

आदित्य चोपड़ा: कश्मीर की फिजां को बिगाड़ने की जो साजिश रची जा रही है उसकी हकीकत यह है कि घाटी में पाकिस्तान परस्त दहशतगर्द तंजीमें झुंझलाहट और खिसियाहट में भारत के ही लोगों को अपना निशाना बना कर दुनिया को यह दिखाना चाहती हैं कि धारा 370 हटने के बावजूद जम्मू-कश्मीर का भारत में अन्तरंग विलय नहीं हो पा रहा है। मगर यह पाकिस्तान की फौज और इसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई की नादानी है कि वे कश्मीर में मानवीय अधिकारों का हनन करने वाली कार्रवाइयों को अंजाम देकर आम कश्मीरी शहरी से किसी तरह की हमदर्दी पा सकते हैं। क्योंकि कश्मीरी जनता पाकिस्तान के बनने से ही इसके निर्माण के खिलाफ रही है। कश्मीरी शुरू से ही अपनी सरजमीं पर अन्य भारतीयों का दिल खोल कर स्वागत करते रहे हैं। इसकी वजह कश्मीर की वह उदार व मानवतावादी संस्कृति है जिसमें मजहब को पूरी तरह निजी मामला समझा जाता है। अतः पाकिस्तान की यह कोशिश कश्मीर में कभी भी सफल नहीं हो सकती कि मजहब की बुनियाद पर वह अवाम की हमदर्दी हासिल कर सके। दरअसल पाकिस्तान के इशारे पर घाटी में कत्लो-गारत का जो नया बाजार खुला है उसकी असली वजह यही है कि पीरों और ऋषियों की इस धरती को जेहादी शक्ल में बदलने के उसके सभी इरादे नेस्तनाबूद हो चुके हैं इसलिए उसने अब गैर कश्मीरियों को निशाना बनाने की नई तरकीब निकाली है। यह सबूत रहना चाहिए कि कश्मीर की तरफ से जब भी पाकिस्तान ने भारत पर हमला किया है तो उसकी भारत की फौजों को उसकी पहली सूचना कश्मीरी लोगों खास कर बकरवालों ने दी है। अतः सबसे पहले यह साफ होना चाहिए कि कश्मीरी सच्चे भारतीय व देशभक्त हैं। दूसरे यह विचार योग्य विषय भी है कि धारा 370 हटने के बाद कश्मीरियों के अधिकारों में इजाफा हुआ है कोई कमी नहीं आयी है। बेशक क्षेत्रीय राजनीतिक दल इसका विरोध करते रहते हैं मगर उन्हें भी अशलियत मालूम है कि अब किसी भी तौर पर धारा 370 बहाल नहीं हो सकती और भारत का कोई भी राष्ट्रीय राजनीतिक दल ऐसा दावा करने का जोखिम मोल नहीं ले सकता क्योंकि बुनियादी तौर पर धारा 370 को भारतीय संविधान का हिस्सा 'अस्थायी' तौर पर ही बनाया गया था। मगर जहां तक इस राज्य को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का सवाल है तो इसे कश्मीरी अवाम की तरफ से जायज मांग माना जा सकता है जिसका संज्ञान केन्द्र की मोदी सरकार पहले ही ले चुकी है। मगर जिस तरह घाटी में पिछले दिनों सिख व हिन्दू नागरिकों के साथ दूसरे राज्यों से आये मजदूरों और कर्मचारियों को मारा गया उससे यही नतीजा निकलता है कि पाकिस्तान कश्मीर के मुद्दे को हर सूरत में सुलगाये रखना चाहता है और अपने इस इरादे को पूरा करने के लिए वह मानवता के मूल सिद्धान्तों का कत्ल भी करने से पीछे नहीं हटेगा। कश्मीर में बिहार व उत्तर प्रदेश समेत अन्य राज्यों से मजदूर काम की तलाश में पिछले कई दशकों से जाते रहे हैं। इससे यह तो पता चलता है कि कश्मीर की तरक्की हो रही है और इस राज्य की अर्थव्यवस्था में इतना दम है कि वह बाहर से आये लोगों को रोजी-रोटी भी दे सकती है। वरना एक जमाना वह भी था कि साठ के दशक तक सर्दियां शुरू होने पर ही कश्मीरी नागरिक मैदानी इलाकों के अन्य राज्यों में उतर कर अपनी रोजी तलाशा करते थे। इनमें सबसे आसान काम लकड़ी फाड़ने या चीरने का होता था। मगर पिछले कई दशकों से उल्टे मैदानी इलाकों से मजदूर कश्मीर जाकर रोजी-रोटी का जुगाड़ करते हैं। मगर 1990 से पाकिस्तान ने घाटी में जिस मजहबी तास्सुब को अपना हथियार बनाया उसका असर आम कश्मीरी पर नहीं पड़ा और वह हिन्दोस्तान के संविधान के अनुसार खुद को हिन्दोस्तानी मानता रहा अब धारा 370 हटने के बाद भी स्थिति यही है। जिसे पाकिस्तान परस्त आतंकवादी सहन नहीं कर पा रहे हैं और वे झुंझलाहट में ऐसे कदम उठा रहे हैं जिससे कश्मीरी ही बदनाम हो। और उन पर कुछ ताकतें अलगाववाद का आरोप लगा सकें। मगर भारत के लोग और सरकार यह भलीभांति जानते हैं कि कश्मीर केवल जमीन का कोई टुकड़ा नहीं है बल्कि यहां रहने वाले बावुलन्द किरदार के लोगों की मादरे वतन है जिनका पूरे भारत पर उतना ही अधिकार है जितना कि अन्य राज्यों के रहने वाले लोगों का। यही वजह है कि पाकिस्तान से कश्मीर का भारत में अन्तरंग विलय सहन नहीं हो पा रहा है और वह दहशतगर्द कार्रवाइयों को अंजाम देकर भारत के लोगों के बीच ही गलतफहमी पैदा करना चाहता है। कुछ लोगों अभी भी इस जिद पर अड़े हुए हैं कि कश्मीर एक राजनीतिक समस्या है। यह फलसफा खाम-आ-खयाली है क्योंकि खुद कश्मीर की जनता ने जब अपना संविधान लिखा था तो उसकी पहली लाइन यही थी कि जम्मू-कश्मीर भारत का अंग है। संपादकीय :इंतजार की घड़ियां समाप्त होने वाली हैं पर .. ध्यान से'बाबा' को सजाजाते मानसून का कहरभारत-पाक महासंघ का विचारघाटी में टारगेट किलिंगकांग्रेस : चुनौतियों का अम्बारअतः आज जो कश्मीर में दूसरे राज्यों के लोगों को भगाने की कवायद डर और दहशत फैला कर की जा रही है उसमें यही खौफ छिपा हुआ है कि कश्मीर कहीं इस कदर तरक्की न कर जाये कि पूरे भारत के लोग इसे फिर से अपने पर्यटन का खूबसूरत स्थान मानने लगें। पिछले तीन महीने से कश्मीर में हर सैलानियों की आवक में इजाफा हो रहा था और हर माह लगभग दस लाख सैलानी आ रहे थे।

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