सम्पादकीय

कश्मीर बनाम हिमाचल-2

Rani Sahu
15 May 2022 7:08 PM GMT
कश्मीर बनाम हिमाचल-2
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हिमाचल के पर्यटन को कितना प्रचार और कितना विस्तार चाहिए

हिमाचल के पर्यटन को कितना प्रचार और कितना विस्तार चाहिए। दोनों में अंतर समझना होगा। किसी श्रद्धालु को यह तो नहीं कहा जाता है कि वह हिमाचल के मंदिरों के दर्शन करे, लेकिन वे आ रहे हैं-सदियों से। बावजूद इसके क्या हम पर्यटक को देवभूमि में बुलाते हैं या देवभूमि के बैनर के नीचे पर्यटन के मुताबिक हो पाए। मसला बुलाने से कहीं अधिक यह समझाने का जरूर है कि अधिकांश सैलानी आएं कैसे। एक बड़ी योजना के तहत पर्यटन विभाग सारे देश के 'टूरिज्म टे्रड फेयर' में हिस्सा ले कर हिमाचल को प्रस्तुत करना चाहता है। ऐसी भागीदारी से निश्चित रूप से लाभ होगा और कुछ नए ट्रैवल एजेंट व टूरिस्ट आकर्षित होंगे, लेकिन इससे पहले यह विश्लेषण भी होना चाहिए कि हिमाचल आकर कितने प्रतिशत संतुष्ट होकर लौटते हैं। इनकी संतुष्टि के लिए हमारे पास क्या है और क्या हो सकता है, तो इनके असंतोष की वजह को जानने व हटाने के लिए हमें क्या काम करना होगा।

हमारे पर्यटन के विषय इतने सीमित हैं कि आज तक प्रदेश का व्यापक खाका नहीं बन सका। होना तो यह चाहिए जो पर्यटक ऊना के रास्ते मकलोडगंज जा रहा है, उसे इससे पहले यानी ऊना के दायरे में ही इतना मनोरंजन उपलब्ध हो जाए कि वहीं छुट्टियां बिता दे। हर पर्यटक सीजन को फलते-फूलते देखने वाले यह न भूलें कि इसके भीतर की चांदी सैलानी को कितना लूट रही होती है। आश्चर्य यह कि पर्यटक स्थलों के भ्रमण की मुनादी में 'टैक्सी' सबसे महंगी हो रही है, लेकिन सिटी आधारित पैकेज मसलन 'दैनिक दर्शन' का कोई कार्यक्रम पर्यटन विभाग या एचआरटीसी नहीं चलाता। मनाली आकर पर्यटक को अगर दो दिन में कुछ स्थलों का भ्रमण करना है, तो उसे टैक्सियों के ऊंचे दाम में अपना मनोरंजन फीका करना पड़ता है। यानी मनाली, मकलोडगंज, शिमला या अन्य स्थलों से, अपने एक दिन के मात्र पचास किलोमीटर दायरे के लिए भी कम से कम पच्चीस सौ या इससे अधिक खर्च करने पड़ते हैं। कभी धर्मशाला से कांगड़ा एयरपोर्ट तक पर्यटन निगम की बस चलती थी, लेकिन अब हर यात्री को अपनी उड़ान पकड़ने से पहले हजार-पंद्रह सौ रुपए तक की आहुति देनी पड़ती है।
पर्यटन के मायने अगर टैक्सी व्यवसाय की अवांछित दरों में गुम हो जाएं या लोकल साइट्स दिखाने के लिए प्रशासनिक तौर पर दरों के तहत सार्वजनिक परिवहन न चले, तो हर आगंतुक असहाय हो जाएगा। इसी तरह पर्यटक सीजन में विभागीय मशीनरी आवश्यक वस्तुओं के तय मूल्य सुनिश्चित कर पाने में असफल रहती है। औसतन एक पर्र्यटक जितने पैसे हिमाचल में खर्च करता है, उससे कम में सिंगापुर बगैरा घूम आता है। क्या हमने कभी सोचा कि हिमाचल घूमने आने वाले को औसतन कितना खर्च करना पड़ता है। क्या यह जायज है। शिमला, मनाली या धर्मशाला तक के टूअर में अगर औसतन एक पर्यटक एक लाख का बजट खर्च करे, तो इसके बदले में राज्य को क्या करना चाहिए कि वह बार-बार लौट आए। मनाली से कांगड़ा तक आने के हिचकोले अगर दूर नहीं होंगे, तो पर्यटक क्यों अपने मनोरंजन को इस तरह तबाह होने को मजबूर करेगा। विडंबना यह भी है कि आनलाइन से होटल बुक करने वालों को वादे मुताबिक कमरा या सुबह का नाश्ता नहीं मिल पाए, तो इसकी तफ्तीश कौन करेगा। पहले होटल इंस्पेक्टर नाम का प्राणी होटल-रेस्तरां की सुविधाओं का मूल्यांकन करके इनकी दरें मुकर्रर करने की अनुमति देता था, लेकिन अब पूरा धंधा झूठे सब्जबाग का बनता जा रहा है। हिमाचल में पर्यटन के अनुशासित तौर -तरीके सुनिश्चित हों तथा यहां आने वाला पर्यटक संतुष्ट होकर लौटे, इस परीक्षा में अव्वल नहीं आए, तो प्रदेश सैलानियों की पहली पसंद नहीं बन पाएगा।

क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचली


Rani Sahu

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