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- कश्मीर बनाम हिमाचल-1
मां के द्वार में आस्था की झोली जिस तरह भरती है, उसका एक नमूना अक्षय तृतीया के दिन ज्वालामुखी मंदिर में देखने को मिला। तकरीबन दो किलो स्वर्ण आभूषणों का चढ़ावा केवल भक्तिरस ही नहीं, बल्कि धार्मिक पर्यटन की ऐसी क्षमता है जिसे फिलहाल सरकारी व्यवस्था केवल एक आंख से देखती है या इसे महज आंकड़ों में तौलती है, जबकि यह पर्यटन का गुणात्मक फल है और जिसे हासिल करके हिमाचल अपने आर्थिक दायरे को बड़ा कर सकता है। पर्यटन की मंजिलें गिनने वाले दूसरी तरफ खड़ा होकर मनाली में घटते पर्यटकों की संख्या पर कश्मीर में आई बहारों को कोस सकते हैं, लेकिन यह अंगीकार नहीं करते कि हिमाचल को किस तरह पेश करें। क्या वास्तव में हिमाचल को एक पर्यटन राज्य के रूप में पेश करने की कोई गंभीरता पिछले वर्षों में हुई, जहां प्रवेश से डेस्टिनेशन तक एकरूपता आई हो। पर्यटन की एकरूपता का सवाल शिमला, मनाली या मकलोडगंज पहुंच कर पूरा नहीं होगा, बल्कि यह प्रदेश के तमाम प्रवेश द्वारों से शरू होकर हर तरह के मनोरंजन, जानकारियों, आस्था तथा विविधता से जुड़ेगा तो पूर्णता प्रदान करेगा। हैरानी यह कि जिस धार्मिक पर्यटन के तहत अस्सी फीसदी सैलानी हिमाचल आते हैं, उसकी क्षमता विस्तार के बजाय मंदिर आय की अनुपयोगी आधार पर फिजूलखर्ची हो जाती है। इसी तरह पौंग, गोविंदसागर, कौल बांध के अलावा प्राकृतिक झीलों को अगर पर्यटन की पेशकश में संवारा जाए, तो इनका भी एक सीजन होगा।
क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचली