सम्पादकीय

कश्मीर बनाम हिमाचल-1

Rani Sahu
13 May 2022 7:12 PM GMT
कश्मीर बनाम हिमाचल-1
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मां के द्वार में आस्था की झोली जिस तरह भरती है,

मां के द्वार में आस्था की झोली जिस तरह भरती है, उसका एक नमूना अक्षय तृतीया के दिन ज्वालामुखी मंदिर में देखने को मिला। तकरीबन दो किलो स्वर्ण आभूषणों का चढ़ावा केवल भक्तिरस ही नहीं, बल्कि धार्मिक पर्यटन की ऐसी क्षमता है जिसे फिलहाल सरकारी व्यवस्था केवल एक आंख से देखती है या इसे महज आंकड़ों में तौलती है, जबकि यह पर्यटन का गुणात्मक फल है और जिसे हासिल करके हिमाचल अपने आर्थिक दायरे को बड़ा कर सकता है। पर्यटन की मंजिलें गिनने वाले दूसरी तरफ खड़ा होकर मनाली में घटते पर्यटकों की संख्या पर कश्मीर में आई बहारों को कोस सकते हैं, लेकिन यह अंगीकार नहीं करते कि हिमाचल को किस तरह पेश करें। क्या वास्तव में हिमाचल को एक पर्यटन राज्य के रूप में पेश करने की कोई गंभीरता पिछले वर्षों में हुई, जहां प्रवेश से डेस्टिनेशन तक एकरूपता आई हो। पर्यटन की एकरूपता का सवाल शिमला, मनाली या मकलोडगंज पहुंच कर पूरा नहीं होगा, बल्कि यह प्रदेश के तमाम प्रवेश द्वारों से शरू होकर हर तरह के मनोरंजन, जानकारियों, आस्था तथा विविधता से जुड़ेगा तो पूर्णता प्रदान करेगा। हैरानी यह कि जिस धार्मिक पर्यटन के तहत अस्सी फीसदी सैलानी हिमाचल आते हैं, उसकी क्षमता विस्तार के बजाय मंदिर आय की अनुपयोगी आधार पर फिजूलखर्ची हो जाती है। इसी तरह पौंग, गोविंदसागर, कौल बांध के अलावा प्राकृतिक झीलों को अगर पर्यटन की पेशकश में संवारा जाए, तो इनका भी एक सीजन होगा।

प्रवासी पक्षियों के कलरव को शायद हमारी योजनाएं अंगीकार ही नहीं करतीं। आश्चर्य यह कि हमारा पर्यटन तब चलता है, जब कश्मीर अपने विपरीत हालात की कैद में फंसा होता है। क्या हमने यह सोचा कि कश्मीर हमसे बेहतर क्यों हो जाता है और यह सरकारी तौर पर नहीं, बल्कि होटल इंडस्ट्री को भी सोचना होगा कि किस तरह इस छवि को बदल कर राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय पर्यटन की प्राथमिकता बनें। आश्चर्य यह भी कि हिमाचल में पर्यटन को दो धु्रवों के बीच बांट दिया गया है। निजी क्षेत्र केवल होटल खड़े करते-करते यह भूल गया कि घाटियां, नजारे और जलसंसाधनों को बचाना कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण है। उधर पर्यटन का सार्वजनिक पक्ष राजनीति की गुल्लक में बंद हो गया। राजनीतिक आधार पर हुआ सार्वजनिक निवेश या तो खंडहर बन गया या इसकी अप्रासंगिक स्वरूप किसी न किसी बहाने बिक गया। पर्यटन के नाम पर योजनाएं-परियोजनाएं या तो सियासी चाटुकारिता में अपना उद्देश्य भूल गईं या पर्यटकों को सकून देने की जरूरतें ही नजरअंदाज हो गईं। हिमाचल के पर्यटन को एक सशक्त गवर्निंग बाडी चाहिए जो प्रदेश की छवि को नए ढंग से प्रस्तुत करते हुए, ऐसी परिकल्पना व संरचना प्रदान करे, जिसके तहत प्रदेश एक पैकेज की तरह संपूर्ण हो। पर्यटन के कश्मीरी संबंध उनके प्रदर्शन, मौलिक प्राकृतिक आकर्षण, मनोरंजन और कनेक्टिविटी के आधार पर पुष्ट हुए हैं। हिमाचल में इस दृष्टि से न तो सड़कें तैयार हुईं और न ही रेल विस्तार हुआ। हवाई अड्डों के नाम पर एक अलग तरह का क्षेत्रवाद पैदा हो गया। उदाहरण के लिए प्रदेश में कुल नौ हवाई सेवाओं में से अगर आठ कांगड़ा एयरपोर्ट पर उतर रही है, तो विस्तार की अधिकतम संभावना वाले इस हवाईअड्डे को क्यों पिंजरे में बंद कर रखा है।
हमारा शुरू से मानना है कि कनेक्टिविटी के हिसाब से हिमाचल का सड़क नेटवर्क हमीरपुर के केंद्र में, रेल मार्ग विस्तार ऊना के माध्यम से और हवाई सेवाओं को कांगड़ा एयरपोर्ट विस्तार से ही बढ़ाया जा सकता है, लेकिन राजनीति को यह मंजूर नहीं। ऐसे में हम या तो कश्मीर के हालात पर निर्भर हो कर अच्छे सीजन की वापसी का इंतजार करें या पर्यटन की संभावनाओं को जाया कर दें। एक पर्र्र्यटन राज्य के रूप में हिमाचल का विकास तभी संभव है यदि सारे विभाग आपसी समन्वय से माहौल व संस्कृति विकसित करें। हिमाचल के स्थानीय निकायों को अपनी योजनाओं के खाके में पर्यटन को अंगीकार करना होगा, जबकि आम जनता को भी इसके लिए तैयार होना होगा। पर्यटक सीजन में अगर होटल व अन्य व्यवसाय चमकना चाहते हैं, तो इन्हें यह भी गौर करना होगा कि इस दौरान आम नागरिकों पर भी मुसीबतों का पहाड़ खड़ा होता है और इसलिए सारे पर्यटन उद्योग को भी सामाजिक तौर पर सहयोग करना होगा। -(क्रमश:)

क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचली


Rani Sahu

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