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- 'काशी का विश्वनाथ
आदित्य चोपड़ा: भारतीय या हिन्दू संस्कृति की विशालता और उदारता व सहिष्णुता का इससे बड़ा कोई दूसरा नमूना नहीं हो सकता कि काशी विश्वनाथ धाम में 1669 ईस्वीं में तत्कालीन मुगल बादशाह औरंगजेब के फरमान पर मचाये गये विध्वंस के बाद इसके एक हिस्से में देवाधिदेव महादेव के पूजा स्थल पर तामीर की गई कथित मस्जिद के 'जबर' जीते-जागते निशान और सबूत होने के बावजूद हिन्दू समाज के लोग न्यायालय की शरण में हैं और अपना शास्त्र सम्मत जायज हक मुस्लिमों से लेने के लिए कानूनी दांव-पेंचों का सामना करना चाहते हैं। पूरी दुनिया में ऐसी कोई दूसरी मिसाल नहीं मिलती कि जब किसी स्थान विशेष पर अलग-अलग धर्मों के अनुयायियों का विवाद पैदा हो जाने पर इसका निपटारा न्यायालय पर छोड़ दिया जाये। मैं बड़े अदब से पूछना चाहता हूं कि क्या मुस्लिम, इसाई व यहूदी 'यरुशलम' विवाद के मामले को न्यायालय के ऊपर छोड़ने पर सहमत हो सकते हैं? यरुशलम को तीनों ही धर्मों के अनुयायी अपना-अपना पवित्र स्थल मानते हैं। वे पवित्र स्थल इसलिए मानते हैं क्योंकि उनकी धार्मिक पुस्तकें और अकीदा और आस्था बताते हैं कि उनके पैगम्बरों के यरुशलम से गहरे आध्यात्मिक सम्बन्ध रहे हैं। इसी वजह से सदियों से ये तीनों यरुशलम को लेकर आपस में भिड़ते आ रहे हैं मगर इसका फैसला किसी न्यायालय पर नहीं छोड़ना चाहते।मगर देखिये हिन्दुओं की विशाल उदारता कि उनके विभिन्न धर्म शास्त्राें में काशी धाम का वर्णन होने के बावजूद वे पिछले साढ़े तीन सौ साल से औरंगजेब द्वारा किये गये पैशाचिक कृत्य की विभीषिका को अपने सीने पर ढो रहे हैं और मुसलमान भाइयों के साथ अपने सामाजिक रिश्ते पूरी सहृदयता और समरसता के साथ निभाते आ रहे हैं और काशी में अपनी ही छाती पर गाड़े गये शूल की पीड़ा सहते आ रहे हैं और न्यायालय में जाकर न्याय की गुहार लगा रहे हैं। ठीक एेसा ही मामला मथुरा में श्रीकृष्ण जन्म स्थान का भी है जहां लीलाधर श्री कृष्ण के जन्म स्थान को मुस्लिम आक्रान्ता शासकों ने जबर्दस्ती अपवित्र करके उसके एक हिस्से में जबरन मस्जिद तामीर कराई थी। हिन्दुओं की उदार व समावेशी संस्कृति का यह ऐसा बेनजीर नमूना है जो दुनिया की किसी दूसरी सभ्यता में देखने को नहीं मिलता है।काशी व मथुरा में जो मन्दिर तोड़ कर मस्जिद तामीर किये जाने के सबूत खुद ही बोल रहे हैं और बता रहे हैं कि मुस्लिम शासकों ने ऐसा केवल इस देश के हिन्दुओं को अपना ताबेदार दिखाये जाने की गरज से किया और उनके सम्मान को रौंदने की गरज से किया वरना बाबा विश्वनाथ धाम के बराबर में जबरन मस्जिद तामीर करके कौन सा 'सबाब' कमाया जा रहा था लेकिन यह साढ़े तीन सौ साल पहले की इस्लामी सत्ता का अपना रुआब गालिब करने का एक तरीका था और हिन्दू रियाया को यह एहसास करना था कि अब उनके मुल्क के मालिक मुसलमान हैं। मगर दीनदार मुसलमान शासकों को भी यह इल्म था कि इस मुल्क के हिन्दुओं के साथ जमकर बेइंसाफी हुई है क्यों हिन्दोस्तान की सारी दौलत उन्हीं की है। इसी वजह से 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान जब अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को उत्तर भारत के बहुसंख्यक देशी राजे-रजवाड़ों ने ईस्ट इंडिया कम्पनी के खिलाफ बगावत करते हुए उसे हिन्दोस्तान का बादशाह घोषित किया तो उसने हिन्दू रजवाड़ों को अपने विद्वान व देशभक्त वजीर मौलवी हजीमुल्ला के हाथों यह सन्देश भिजवाया कि काशी का पूरा विश्वनाथ धाम हिन्दुओं को सौंप दिया जायेगा। मौलवी हजीमुल्ला की वीर सावरकर ने अपनी पुस्तक '1857 का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम' में जमकर तारीफ की है।संपादकीय :योगी की नसीहतपेट्रोल-डीजल के कम दामपेड़ लगाओ जीवन बचाओ'रतनलाल' तुम 'पत्थर' निकले !बेवजह है भाषा विवादनिकहत का स्वर्णिम संदेशअतः आजकल विश्वनाथ धाम में बनी मस्जिद के पक्ष को लेकर जिस तरह मुस्लिम मुल्ला व उलेमा बांहे चढ़ा-चढ़ा कर विभिन्न टीवी चैनलों पर बहस कर रहे हैं उन्हें सबसे पहले ज्ञानवापी क्षेत्र की कैफियत के बारे में जानकारी होनी चाहिए। उनका ही यह फर्ज बनता है कि हिन्दोस्तानी मुसलमान होने की वजह से वे ज्ञानवापी क्षेत्र की हिन्दू शास्त्रों में गाई गई महिमा को देखते हुए इसे ससम्मान हिन्दुओं को लौटा दें और औरंगजेब को इस्लाम को दुश्मन घोषित करें क्योंकि औरंगजेब साढ़े तीन सौ साल पहले का आज की 'आईएसआईएस का सरगना' के अलावा और कुछ नहीं था। भारतीय मुसलमानों को पता होना चाहिए कि काशी का हिन्दू संस्कृति में वही स्थान है जो मुस्लिम संस्कृति या विश्वासों में 'पवित्र मक्का' का है। भाजपा नेता उमा भारती ने इस बारे में बहुत स्पष्ट रूप से कह दिया है कि काशी की पवित्रता से अब किसी भी प्रकार से समझौता नहीं किया जायेगा । काशी का प्रश्न सियासत का नहीं है बल्कि 'शराफत' का है और शराफत कहती है कि मजहब की बुनियाद पर 75 साल पहले भारत के दो टुकड़े कराने वालों को भारत को भीतर से टुकड़े-टुकड़े करने का कोई हक नहीं है क्योंकि भारत के संविधान ने सभी हिन्दू-मुसलमानों को एक समान अधिकार दिये हैं बल्कि हकीकतन मुस्लिम नागरिकों को फिर उन्हें धार्मिक अधिकारों का 'बोनस' देकर ज्यादा ही कृपा की है |