सम्पादकीय

काशी विश्वनाथ : शिव-शंकर-शम्भू

Subhi
29 May 2022 3:16 AM GMT
काशी विश्वनाथ : शिव-शंकर-शम्भू
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काशी के विश्वनाथ धाम या मथुरा के श्रीकृष्ण जन्म स्थान का मसला कोई हिन्दू-मुसलमान का मसला नहीं है बल्कि यह भारत की ‘देशज’ संस्कृति पर विदेशी बर्बरता का मसला है।

आदित्य चोपड़ा: काशी के विश्वनाथ धाम या मथुरा के श्रीकृष्ण जन्म स्थान का मसला कोई हिन्दू-मुसलमान का मसला नहीं है बल्कि यह भारत की 'देशज' संस्कृति पर विदेशी बर्बरता का मसला है। यदि हम यह मान लेते हैं कि भारत के मुसलमानों का औरंगजेब से कोई लेना-देना नहीं है तो फिर उसके द्वारा भारत के लोगों की आदिकाल से चली आ रही देवपूजा की परंपरा को नष्ट करने पर मुसलमानों की स्वाभाविक सहानुभूति देवपूजा परंपरा मानने वाले लोगों के साथ होनी चाहिए परन्तु भारत में 1857 के बाद जिस तरह का मुस्लिम नेतृत्व अंग्रेजों के संरक्षण में उभरा उसने मुसलमानों में भारतीय संस्कृति के तिरस्कार भाव को जागृत किया जिसका प्रमाण सर सैयद अहमद खां से लेकर चौधरी रहमत अली के विभिन्न आख्यान है। सर सैयद ने 1858 में 'असबाबे बगावते हिन्द' नाम की छोटी सी पुस्तक लिख कर अंग्रेजों को हिन्दू-मुसलमानों के बीच फूट डाल कर राज करने की ताकीद की और रहमत अली ने मुसलमानों को सांस्कृतिक रूप से हिन्दुओं से पूरी तरह अलग सिद्ध किया और उनके खान-पान से लेकर पहनावे और मजहब की अलग-अलग मान्यताओं की बुनियाद पर सबसे पहले 'पाकिस्तान' शब्द को उछालते हुए अलग देश की मांग की जिसे बाद में मुहम्मद अली जिन्ना ने पकड़ कर पाकिस्तान का निर्माण कराया और उसका साथ उस समय मुसलमानों के कट्टरपंथी मुल्ला-मौलवी वर्ग और अशराफिया व शिक्षित समाज ने किया जबकि इसके विरुद्ध मुसलमानों के 'पसमान्दा' और 'कामगार' कहे जाने वाले समाज के लोगों ने भारत विभाजन का विरोध किया। यह पुख्ता इतिहास है इसे कोई नहीं बदल सकता। मगर दुखद यह रहा कि आजाद भारत में भी मुस्लिम समाज को भारत की जड़ों से जुड़ने में कट्टरपंथी मुल्ला-मौलवियों वर्ग ने इस तरह रोका कि इनमें भारतीय संस्कृति के प्रति और इस देश की मिट्टी की मान्यताओं के प्रति सम्मान भाव जागृत न हो सके। इस तर्क से कथित उदारवादी या धर्म निरपेक्षतावादी उबल सकते हैं मगर अपने सीने पर हाथ रख कर उन्हें पूछना चाहिए कि क्या वजह है कि भारत के मुसलमान औरंगजेब को आज भी 'रहमतुल्ला' जैसे सम्मानित शब्द से नवाजने की हिमाकत करते हैं। इस्लाम यदि 'हक' की बात करता है तो हिन्दुओं को उनका वह वाजिब हक क्यों नहीं मिलना चाहिए जिसके सबूत काशी और मथुरा के हिन्दू धर्म स्थलों की दीवारों पर ही बोल रहे हैं? मगर क्या कयामत है कि काशी विश्वनाथ धाम परिसर पर 1669 में मुगल बादशाह औरंगजेब की फौजों द्वारा किये हमले के नतीजे में इसके प्रमुख देवस्थल ज्ञानवापी क्षेत्र में स्थित भगवान शंकर के स्वयंभू आदिश्वेश्वर लिंग परिक्षेत्र को जिस तरह मस्जिद में बदल कर देवाधिदेव महादेव के गर्भ गृह क्षेत्र को 'वजूखाने' में बदला गया उससे यही नतीजा निकाला जा सकता है कि औरंगजेब के दिल में हिन्दोस्तान और इसके लोगों के प्रति कितनी घृणा थी। मुसलमान यह भलीभांति जानते हैं कि उनमें से 98 प्रतिशत के लगभग पूर्वज हिन्दू ही थे अतः इन्हें 'हिन्दू-मुसलमान' कहना पूरी तरह उचित है। उनकी मूल संस्कृति भी वही है जो भारत की संस्कृति है क्योंकि मजहब बदल लेने से यदि संस्कृति बदलती होती तो आज इंडोनेशिया व मलेशिया के मुसलमानों में अपनी तहजीबी जड़ों से जुड़े रहने का जज्बा न होता। ईरान के लोग भी सैसेनी आदिलशेर की यशोगाथा न गाते और इस संस्कृति के अवशेषों को संभाल कर न रखते परन्तु नफरत की इंतेहा देखिये कि ज्ञानवापी में मिले शिवलिंग को मुस्लिम उलेमा 'फव्वारा' बता रहे हैं और अपने झूठ को सच बनाने के लिए शिवलिंग को क्षति ग्रस्त करके उसमें 63 से.मी. लम्बा छेद करके उसके ऊपर चकरी लगाने का प्रयास कर रहे हैं। यह सब इसलिए किया गया कि जैसे-तैसे शिवलिंग को अदालत में 'फव्वारा' सिद्ध किया जा सके। मुस्लिम उलेमाओं को ध्यान रखना चाहिए कि हिन्दू या भारतीय संस्कृति में काशी की वही हैसियत और मान्यता है जो इस्लाम में मक्का की है जहां काबा स्थित है। जो लोग गंगा-जमुनी तहजीब के अलम्बरदार बने फिरते हैं उन्हें ही सबसे पहले आगे आकर यह घोषणा करनी चाहिए कि यदि शिवलिंग को क्षतिग्रस्त करने की रत्तीभर भी कोशिश की गई है तो यह भारतीयता पर करारी चोट है और मुसलमानों को स्वतः ही काशी व मथुरा को हिन्दुओं को सौंप देना चाहिए। कितने नादान हैं ज्ञानवापी की कथित मस्जिद के इंतजामिया कमेटी के लोग कि यदि शिवलिंग को क्षतिग्रस्त करने के सबूत अदालत में साबित हो गये तो कमेटी का हर मैम्बर फौजदारी कानून की गिरफ्त में आ जायेगा। क्योंकि ऐसा करके मस्जिद की इंतजामिया कमेटी ने भारत के हर साकार ब्रह्म की उपासना में विश्वास रखने वाले हिन्दू का रूहानी खून करने का प्रयास किया है।संपादकीय :कुत्तों का राज योगआर्यन को क्लीन चिटमहंगाई रोकने के सरकारी उपायबड़े साहब की 'डॉग वॉक'यासीन के गुनाहों का हिसाबगुदड़ी के 'लाल' मोदी काशी के ज्ञानवापी क्षेत्र की कल्पना कपोल कल्पित नहीं है वह शास्त्र सम्मत है। स्कन्द पुराण में इसका विस्तृत वर्णन मिलता है। जो लोग तर्क दे रहे हैं कि भारत आस्था से नहीं बल्कि संविधान से चलेगा तो उन्हें मालूम होना चाहिए कि भारत का संविधान भारतीय मूल्यों की आस्था पर ही टिका हुआ है जिसका प्रमाण मूल संविधान की पथिलिपी पर रामायण व महाभारत के उद्देश्य परक दृश्यों का चित्रांकन है। यदि संविधान पर इतना ही भरोसा है तो मुसलमानों को अपना 'पर्सनल लाॅ' विशेषाधिकार तुरन्त त्याग देना चाहिए और घोषणा करनी चाहिए कि उनकी शरीयत पर कोई आस्था नहीं है परन्तु ऐसा भी नहीं है कि भारत का समस्त मुस्लिम समाज रूढ़ीवादी है इसी समाज में से अब ऐसी वैज्ञानिक सोच की आवाजे उठने लगी हैं जो मजहब को केवल निजी मामला मानती है और भारत का संविधान भी यही अधिकार प्रत्येक नागरिक को देता है। मगर देखिये क्या सितम हो रहा है कि उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में एक मुसलमान परिवार को भाजपा को वोट देने के लिए प्रताड़ित किया जा रहा है और मुल्ला-मौलवी उससे मस्जिद में नमाज पढ़ने का हक भी छीन रहे हैं। वक्त कहता है कि आगे बढ़ों और जो कुछ भी इतिहास में अन्याय हुआ है उसे समाप्त करके सबसे पहले इंसान बनों।

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