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इतिहास का निर्माण करने वाले ही इतिहास पुरुष होते हैं, जो सदियों में जन्म लेते हैं
योगी आदित्यनाथ। इतिहास का निर्माण करने वाले ही इतिहास पुरुष होते हैं, जो सदियों में जन्म लेते हैं। काशी इन दिनों इतिहास के ऐसे ही एक अभूतपूर्व सृजन की साक्षी है। जो एक हजार साल के इतिहास में नहीं हो पाया था, उसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कर दिखाया। उन्होंने चार सौ साल से मुक्ति की प्रतीक्षा में टकटकी लगाए हुए हिंदू स्वाभिमान की पुनर्स्थापना की है। काशी विश्वनाथ धाम दृढ़ संकल्प शक्ति की मिसाल है। मुगल शासकों की क्रूरता और विध्वंस के शिकार बाबा विश्वनाथ का वैभव काशी विश्वनाथ धाम के रूप में लौटा है। शताब्दियां नतमस्तक हैं। धार्मिक आस्था प्रफुल्लित है। इतिहास का चक्र सौभाग्य की स्वर्णिम महादशा में है। शिव की जटाओं में उलझी मणिकर्णिका की गंगा को अपने आराध्य का गलियारा मिल गया है।
महारानी अहिल्याबाई होल्कर की आंखों के स्वप्न को एक कर्मयोगी के वचन का आश्रय मिल गया है। काशी विश्वनाथ धाम के बहाने काशी में इतिहास की एक ऐसी स्वर्ण मंजूषा निर्मित हुई है जो सहस्नब्दियों तक अपनी ऊर्जा से धर्म-संस्कृति के इस धाम को रोशन करती रहेगी। इस मंदिर ने विदेशी आक्रांताओं की क्रूरता और विध्वंस का दंश सहा है। आज उस अन्याय का प्रतिकार हुआ है। चार सौ साल पहले जो मंदिर औरंगजेब की क्रूरता से छिन्न-भिन्न हो गया था, ढाई सौ साल पहले इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने जिस मंदिर के पुनरुद्धार के महान संकल्प की नींव रखी उसे लेकर किसने सोचा था कि प्रधानमंत्री मोदी उसी नींव पर करोड़ों शिव भक्तों की आस्था का स्वर्ण महल खड़ा कर देंगे।
आज जिस दिव्य एवं भव्य काशी विश्वनाथ धाम की सृष्टि हुई है, वइ प्रधानमंत्री मोदी के मस्तिष्क में पनपा ऐसा विचार था जिसने इतिहास का कायापलट कर दिया। द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक काशी विश्वनाथ मंदिर का पुरातन वैभव इस आधुनिक नवनिर्माण के आलोक में और भी प्रकाशमान व गौरवशाली हो उठा है। महात्मा गांधी के जन्म के 150 साल के अवसर पर उनके सपनों को साकार करने के लिए प्रधानमंत्री जी ने काशी विश्वनाथ धाम योजना का स्वप्न देखा। मंदिर के आसपास के शिवालयों और मंदिरों का जीर्णोद्धार, बाबा विश्वनाथ को गंगा से जोड़ने और दुनिया के इस प्राचीन शहर के आनंद कानन स्वरूप को पुनर्स्थापित करने का संकल्प लिया। यही संकल्प आज पूरी दिव्यता और भव्यता के साथ पूरा हो रहा है।
काशी विश्वनाथ धाम के जरिये इस महान तीर्थ को उसकी ऐतिहासिक, धार्मिक व सांस्कृतिक आभा के साथ मोक्षदायिनी गंगा से जोड़ने वाले प्रधानमंत्री मोदी ही हैं। यह मोदी जी की ही दृष्टि है कि काशी विश्वनाथ मंदिर का जो परिसर पहले 5 हजार वर्गफीट में भी नहीं था, उस परिसर का दायरा अब बढ़कर 5 लाख 27 हजार 730 वर्ग फीट तक हो गया है।
इस अद्भुत नवनिर्माण में उन मंदिरों की मणिमाला की जगमग भी शामिल है जो निजी भवनों के भीतर से निकले हैं। इनकी न सिर्फ पुनर्स्थापना की गई है, बल्कि इनके इतिहास और महत्व को भक्तों तक पहुंचाने के लिए एक विशेष साफ्टवेयर भी तैयार किया गया है। इस अभियान में हमारे सामने चुनौतियों का पहाड़ था। मंदिर का परिवेश दमघोंटू था। उसे विस्तार देना था। इसी प्रक्रिया में परिसर के आसपास की परिसंपत्तियों के असली मालिकों की पहचान कर उन्हें इस महायज्ञ में सहभागी बनने में तैयार करना था। उनसे जुड़े दुकानदारों, धर्मशालाओं, मठों और विद्यालयों का पुनर्वास और उन्हें आजीविका का वैकल्पिक साधन उपलब्ध कराना था। क्षेत्रीय विरोध, धरना-प्रदर्शन, आंदोलन, अनधिकृत कब्जेदारों से लेकर जनमानस की स्थानीय समस्याएं सामने थीं। उनका तय समयसीमा में निपटारे के साथ धाम का निर्माण एक बड़ी चुनौती थी। इसे बाबा विश्वनाथ ही पूरा करा सकते थे।
इस धाम के निर्माण के लिए वास्तुकारों ने जो सर्वे किया उसमें वांछित भूभाग के लिए तीन सौ से अधिक संपत्तियों की आवश्यकता थी। हमने उन्हें चिन्हित कर 320 मकान बाजार भाव से अधिक मूल्य पर खरीदे, क्योंकि धाम के उद्देश्य को साकार रूप देना था। इसी दृष्टि से पौराणिक, धार्मिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक एवं स्थापत्य संबंधी सौंदर्य बोध विकसित कर योजना के दायरे में आने वाले प्राचीन मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया गया। धाम में मकराना, चुनार के लाल बलुआ पत्थर सहित सात विशेष पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है। परिसर के प्रमुख आकर्षणों में 2100 वर्गफीट में स्थित मुख्य मंदिर परिसर, 29,000 वर्गफीट का विस्तारीकरण एवं उसके साथ-साथ भोगशाला, यात्री सुविधा केंद्र, आध्यात्मिक पुस्तकालय, मुमुक्षु भवन, वैदिक केंद्र, मल्टीपरपज हाल, सिटी म्यूजियम और वाराणसी गैलरी आदि भी पूरी भव्यता के साथ उपस्थित हैं।
मार्च 2018 में धाम पुनर्निर्माण आरंभ होकर आज यह पवित्र यात्र लक्ष्य तक पहुंच गई है। मंदिर के अब तक के इतिहास में उसका जीर्णोद्धार तो कई बार हुआ, परंतु संपूर्ण विश्वनाथ धाम का निर्माण यशस्वी प्रधानमंत्री मोदी ने ही संभव बनाया है जो अभूतपूर्व है। प्रधानमंत्री के इस ड्रीम प्रोजेक्ट के पीछे की सोच विलक्षण है। यहां आने वाले श्रद्धालुओं को काशी विश्वनाथ के साथ-साथ महादेव की नगरी वाराणसी का समग्र इतिहास भी जानने को मिलेगा। इसके लिए धाम की दीवारों पर उपनिषद, वेद-पुराण में वर्णित जानकारियां, चित्र, श्लोक आदि का हिंदी में अनुवाद कर दीवारों पर अंकित कराने का महाअभियान चलाया जा रहा है। इस प्राचीनतम नगरी के इतिहास को जानना ज्ञान के अमृतपान सरीखा है। यह परिकल्पना भी पीएम की दृष्टि से अछूती नही रही।
काशी में ही वेद व्यास ने चारों वेदों का सर्वप्रथम उपदेश दिया था। यहां 56 विनायक हैं। यहीं मोक्ष प्रदान करने वाली सातों नगरी हैं। द्वादश आदित्य हैं। पांचों तीर्थ हैं। इनका विवरण यहां सुलभ होगा। इसके अलावा मणिकर्णिका तीर्थ की स्थापना, ढुंढिराज गणोश की प्रथम शिव स्तुति, अष्ट भैरव की स्थापना, भगवान शंकर का 64 योगिनियों को काशी में भेजना, बाबा विश्वनाथ के त्रिशूल पर टिकी काशी, भोलेनाथ के अष्ट मातृकाओं की स्थापना, महाकवि कालिदास की शिव स्तुति आदि का वर्णन भी धाम की पट्टिकाओं पर होगा। काशी विश्वनाथ धाम के पीछे प्रधानमंत्री मोदी के संकल्प का एक बीज है, जो अब आस्था के वटवृक्ष में परिवर्तित हो चुका है। शिव भक्तों की आने वाली पीढ़ियों को सदियों तक इस वटवृक्ष की छाया मिलती रहेगी।
(लेखक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं)
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