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‘घोड़े पर हौदा, हाथी पर जीन/चुपके से भागा वारेन हेस्टिंग।’ यह कहावत आज भी बनारस (जिसे काशी या ॥िर वाराणसी के नाम से जानते हैं) की गलियों में पुराने लोगों के बीच लोकप्रिय है
'घोड़े पर हौदा, हाथी पर जीन/चुपके से भागा वारेन हेस्टिंग।' यह कहावत आज भी बनारस (जिसे काशी या ॥िर वाराणसी के नाम से जानते हैं) की गलियों में पुराने लोगों के बीच लोकप्रिय है, जिसके पीछे की एक कहानी है। कहते हैं कि आज से लगभग दो सौ इकतालिस साल पहले काशी राज्य की तुलना देश की बड़ी रियासतों में की जाती थी। भौगोलिक दृष्टिकोण से काशी राज्य भारत का ह्रदय प्रदेश था, जिसे देखते हुए उन दिनों ब्रिटिश संसद में यह बात उठाई गई थी कि यदि काशी राज्य ब्रिटिश हुकूमत के हाथ आ जाए तो उनकी अर्थ व्यवस्था तथा व्यापार का काफी विकास होगा। इस विचार-विमर्श के बाद तत्कालीन गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग को भारत पर अधिकार करने के लिए भेजा गया। काशी राज्य पर हुकूमत करने के लिए अंग्रेजों ने तत्कालीन काशी नरेश राजा चेतसिंह से ढाई सेर चींटी के सिर का तेल या फिर इसके बदले एक मोटी रकम की मांग रखी। अंग्रेजों द्वारा भारत को गुलाम बनाने की मंशा को काशी नरेश राजा चेतसिंह ने पहले ही भांप लिया था। अत: उन्होंने रकम तक देने से साफ मना कर दिया। परंतु उन्हें लगा कि अंग्रेज उनके राज्य पर आक्रमण कर सकते हैं। इसी को मद्देनजर रखते हुए काशी नरेश ने मराठा, पेशवा एवं ग्वालियर जैसी कुछ बड़ी रियासतों से संपर्क कर इस बात की संधि कर ली थी कि यदि जरूरत पड़ी तो इन फिरंगियों को भारत से खदेडऩे का संयुक्त प्रयास करेंगे। 14 अगस्त 1781, दिन शनिवार, जनरल वारेन हेस्टिंग एक बड़े सैनिक जत्थे के साथ गंगा जलमार्ग से काशी पहुंचा।
उसने कबीरचौरा स्थित माधव दास का बाग (जिसे आज स्वामी बाग के नाम से जाना जाता है) को अपना ठिकाना बनाया। कहते हैं कि राजा चेतसिंह के दरबार से निष्कासित औसान सिंह नामक एक कर्मचारी कोलकाता जाकर वारेन हेस्टिंग से मिला और उसका विश्वासपात्र बन बैठा। दिन रविवार, तारीख 15, माह अगस्त सन 1781 की सुबह वारेन हेस्टिंग ने अपने एक अंग्रेज अधिकारी मार्कहम को एक पत्र देकर राजा चेत सिंह के पास भेजा। उस पत्र में हेस्टिंग ने राजा चेत सिंह पर राजसत्ता के दुरुपयोग एवं षड्यंत्र का आरोप लगाया था। दूसरे दिन 16 अगस्त, सावन का अंतिम सोमवार, हर वर्ष की तरह राजा चेतसिंह अपने रामनगर किले की बजाय शंकर भगवान की पूजा अर्चना करने गंगा के इस पार छोटे किले शिवाला पर आए थे। इसी किले में उनकी तहसील का छोटा सा कार्यालय भी था। कहते हैं कि जिस समय काशी नरेश शिव पूजन से निवृत्त होकर अपने दरबार में कार्य देख रहे थे, कि उसी समय गवर्नर वारेन हेस्टिंग की सेना उनके दरबार में प्रवेश करने का प्रयास कर रही थी। परंतु काशी के सैनिकों ने उन्हें सफल नहीं होने दिया। तब एक अंग्रेज रेजीडेंट ने राजा साहब से मिलने की इच्छा जाहिर की और कहलवाया कि वह गवर्नर साहब का एक जरूरी संदेश लेकर आया है।
किंतु राजा साहब के यह संदेश प्रकट करने पर कि वह तो आया है, पर इतनी सेना साथ क्यों लाया है, इसके जवाब में रेजिडेंट ने यह कहकर नई चाल चली कि सेना तो वैसे ही उसके साथ चली आई है, किले में केवल हम दो-तीन अधिकारी ही आएंगे। इस पर राजा साहब की आज्ञा पर उन्हें अंदर किले में भेज दिया गया। बातों ही बातों में दोनों ओर से तलवारें खिंच गई। संघर्ष में अंग्रेज हार गए। अंग्रेज अधिकारी चीखते-चिल्लाते बाहर भागे। बाद में जब वारेन हेस्टिंग को गिरफ्तार करने की योजना बनी, तो राजा चेत सिंह के दीवान बक्शी सदानंद की यह सलाह कि वारेन हेस्टिंग को न गिरफ्तार किया जाए, भारत के लिए दुर्भाग्यपूर्ण रही। उसे विस्तार को मौका मिल गया।
प्रदीप श्रीवास्तव
स्वतंत्र लेखक
By: divyahimachal
Rani Sahu
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