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भारत में जन्मे हर व्यक्ति का सपना होता है कि वह एक बार काशी जाए और इससे भी बड़ी बात ये है
जी. किशन रेड्डी। काशी, जहां रोशनी की पहली किरण पड़ी थी। भारत में जन्मे हर व्यक्ति का सपना होता है कि वह एक बार काशी जाए और इससे भी बड़ी बात ये है कि भारत का व्यक्ति अपने जीवन की अंतिम सांस काशी में लेना चाहता है। अतः काशी अध्यात्म का केंद्र है, काशी परम्पराओं और रस्मों का केंद्र है, काशी संस्कृति और सभ्यता का केंद्र है, काशी ऊर्जा का केंद्र है और काशी अनुष्ठानों का केंद्र है।
अविमुक्ति क्षेत्र काशी ना सिर्फ हिंदू धर्म बल्कि बौद्ध और जैन धर्म का भी पवित्र स्थल है। गौतम बुद्ध ने अपना प्रथम प्रवचन यहीं निकट सारनाथ में दिया और जैन तीर्थंकरों में से चार काशी में ही पैदा हुए थे। गोस्वामी तुलसीदास ने हिंदू धर्म का पूज्य ग्रंथ रामचरित्र मानस काशी में ही लिखा। 9वीं शताब्दी ई. में जगद्गुरु शंकराचार्य ने अपने विद्याप्रचार से काशी को भारतीय संस्कृति और धर्म का सर्वाधिक महत्वपूर्ण केंद्र बनाया था। मदन मोहन मालवीय जी द्वारा स्थापित काशी हिंदू विश्वविद्यालय के बारे में कौन नहीं जानता। काशी संत कबीर, वल्लभाचार्य, रविदास, स्वामी रामानंद, त्रेलंग स्वामी, मुंशी प्रेमचंद, आचार्य रामचंद्र शुक्ल जैसे अनेक महान दार्शनिक, संगीतकार और साहित्यकारों की जन्मभूमि और कर्मभूमि रही है। इसलिए काशी धरती पर सबसे प्राचीन स्थल है।
काशी "हरी अनंत हरी कथा अनंता" जैसी है। काशी की कथा भी अनंत है। मानव शरीर में जैसे नाभि का महत्त्व है, वैसे ही पृथ्वी पर काशी का महत्व है। जैसे शरीर के प्रत्येक अंग का संबंध नाभि से होता है, वैसे ही पृथ्वी के समस्त स्थानों का संबंध काशी से है। इतना विराट रूप काशी का रहा है। मगर हम सब जानते हैं कि हिंदुस्तान ने हजारों वर्षों तक आक्रांताओं और गुलामी को झेला है। जिसके कारण मध्यकालीन काशी की स्थिति अति चिंतनीय रही। विदेशी हमलावरों तथा मुग़ल शासकों ने मंदिरों और धर्मस्थलों को अनेक बार तोड़ा। औरंगजेब ने अंतिम बार काशी विश्वनाथ को खंडित किया था, तब से लेकर इतने बड़े धाम का जीर्णोद्धार भी अंतिम बार 1777 से1780 के बीच अहिल्याबाई होलकर द्वारा किया गया। उसके बाद 1916 में महात्मा गांधी ने निराश होकर अपनी आत्म कथा में काशी के बारे में कहा था, 'अगर कोई अजनबी इस महान मंदिर के दर्शन करने आए, तो वह हम हिंदुओं के बारे में क्या सोचेगा? वह निस्संदेह हमारी आलोचना करेगा। यह भव्य मंदिर हमारे व्यक्तित्व को दर्शाता है। क्या यह उचित है कि इस मंदिर की ओर जानेवाली सड़कें इतनी गंदी और संकरी हैं?'
जब देश गुलाम था, मगर आज़ादी के इतने वर्षों के के बाद भी इतनी विशेषताओं के परिपूर्ण काशी को पिछली सरकारों में जहां होना चाहिए था, वहां नहीं पहुंचाया, कारण सिर्फ ये रहा कि पूर्व की सरकारों ने जिस "गति और सोच" से काशी के विकास की जरूरत थी, उस और ध्यान नहीं दिया। लेकिन काशी तो अमर है। 2014 के लोकसभा चुनाव में मीडिया को संबोधित करते हुए नरेन्द्र मोदी जी ने कहा था, "ना मैं आया हूं, ना मुझे भेजा गया है, मुझे तो मां गंगा ने बुलाया है।" काशी और नरेंद्र मोदी जी में मां -बेटे का रिश्ता है। आज नरेंद्र मोदी सरकार "काशी और मां गंगा" के प्रति अपना फर्ज पूरा कर रही है। देश जब महात्मा गांधी जी की 150वीं जयंती मना रहा था, तो उनके सपनो की काशी बनाने का संकल्प लेते हुए नरेन्द्र मोदी जी ने "कदव्य काशी-भव्य काशी" नामक योजना प्रारंभ की।
आज उसी योजना के अंतर्गत "काशी विश्वनाथ धाम" बनकर तैयार हो गया है। अब बाबा विश्वनाथ के भक्तों को संकरी और तंग गलियों से होकर नहीं जाना पड़ेगा, अब काशी स्वच्छ और सुंदर होगी, जहां ध्यान और योग हेतु दुनिया भर के लोगों के लिए आधुनिक सुविधाओं वाला हॉल होगा, अब दण्डपाणी मंदिर, बैकुंठ मंदिर, बाबा विश्वनाथ मंदिर, तारकेश्वर मंदिर और भुवनेश्वर मंदिर एक ही प्रांगण में होंगें। काशी विश्वनाथ मंदिर दुनिया का सबसे आधुनिक सुख सुविधाओं से परिपूर्ण मंदिर होगा। हम अपने प्राचीन मंदिरों को नवीनतम और आधुनिक अंदाज़ में दुनिया के सामने रख रहे हैं। निश्चित रूप से यह हमारी 21वीं सदी की बड़ी सांस्कृतिक उपलब्धि है। 100 साल पहले मां अन्नपूर्णा की मूर्ति जिसे अंग्रेजों के द्वारा काशी से चुरा लिया था, आज भगवान विश्वनाथ के आशीर्वाद से और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हम मां अन्नपूर्णा की मूर्ति को भारत वापस लाने और पुनः स्थापित करने में सफल हुए हैं।
गंगा की अविरल धारा जिस प्रकार से काशी में बहती है, उसी प्रकार से विकास की अविरल धारा भी पिछले 7 वर्षों से काशी में बह रही है। काशी जितनी पौराणिक है, उतनी ही आधुनिक रूप में काशी आज दुनिया के सामने है। आज चाहे सड़क मार्ग हो, वायुमार्ग हो या जलमार्ग हो, प्रत्येक मार्ग से काशी को जोड़ने का प्रयास किया गया है। पूर्वांचल एक्सप्रेस वे, बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे और गंगा एक्सप्रेस-वे भी वैश्विक स्तर पर काशी की पहचान में मील का पत्थर साबित होंगें। बीते सात सालों में एक हजार से अधिक योजना और परियोजनाओं का शिलान्यास और उद्घाटन काशी में हुआ है।
13 दिसम्बर 2021 को नरेन्द्र मोदी जी इस "काशी विश्वनाथ धाम" का उद्घाटन किया। "दिव्य काशी-भव्य काशी" कार्यक्रम ना सिर्फ बाबा विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग में ही हुआ, बल्कि देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में भी भव्य कार्यक्रमों का आयोजन हुआ। अनेक उतार-चढ़ाव काशी ने देखे हैं, मगर काशी ने अपनी अहमियत और पवित्रता को कायम रखा है। जैसा की देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने कहा था कि 21वीं सदी भारत की सदी होगी, तो मुझे लगता की "दिव्य काशी-भव्य काशी" से उसका शंखनाद हो रहा है।
(लेखक भारत सरकार के पर्यटन, संस्कृति एवं पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्री हैं।)
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