सम्पादकीय

Karnataka Hijab Controversy : समानता के लिए ड्रेस कोर्ड जरूरी है, मगर ये सभी पर समान रूप से लागू हो

Gulabi
12 Feb 2022 2:01 PM GMT
Karnataka Hijab Controversy : समानता के लिए ड्रेस कोर्ड जरूरी है, मगर ये सभी पर समान रूप से लागू हो
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सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कर्नाटक हिजाब विवाद में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया
मेधा दत्ता यादव।
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कर्नाटक हिजाब विवाद (Karnataka Hijab Controversy) में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया. एक छात्र ने कर्नाटक उच्च न्यायालय (Karnataka High Court) के उस निर्देश को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें छात्रों से कहा गया था कि जब तक कि मामला हल नहीं हो जाता तब तक वो शैक्षणिक संस्थानों के परिसरों में कोई ऐसा कपड़ा पहनने पर जोर न दें जो लोगों को उकसा सकता है. मौजूदा विवाद के बीच, कर्नाटक के शिक्षा मंत्री बीसी नागेश (B. C. Nagesh) ने राज्य सरकार के रुख को दोहराते हुए कहा कि सरकार द्वारा शुरू की गई यूनिफॉर्म पॉलिसी बहुत स्पष्ट है.
सरकारी आदेश के मुताबिक, छात्रों को शिक्षा विभाग के तहत आने वाली कॉलेज विकास समितियों द्वारा चुनी गई पोशाक ही पहननी होगी. आदेश में उन कपड़ों पर और प्रतिबंध लगाया गया है जो समानता, अखंडता और सार्वजनिक कानून व्यवस्था को बिगाड़ते हैं. इन दिनों हम शिक्षा के अधिकार और लड़कियों की धार्मिक स्वतंत्रता पर बहस कर रहे हैं लेकिन इस सबके बीच बड़ा मुद्दा यह है कि आखिर छात्रों का यूनिफॉर्म तय करने की जरूरत क्या है? हाल ही में, नेताजी सुभाष चंद्र बोस के पोते, चंद्र कुमार बोस ने एक ट्वीट किया था जिसमें उन्होंने लिखा था कि दिशानिर्देश तो सभी के लिए होने चाहिए. यदि हिजाब पर प्रतिबंध है, तो सिंदूर, शंख-पोला, पगड़ी, कड़ा, सभी प्रकार के धागे, ताबीज आदि पर भी बैन लगा देना चाहिए.
कर्नाटक के शिक्षा मंत्री इस बात पर सही हैं कि समानता लाने के लिए एक ड्रेस कोड तय करना जरूरी है. चूंकि हर संस्थान में हर स्तर के छात्र होते हैं, ऐसे में यूनिफॉर्म तय करने के पीछे भी यही सोच होती है कि शिक्षा प्राप्त करने के लिए वहां सभी एक समान दिखें और महसूस करें. स्कूल में जहां कुछ छात्र अपनी लंबी-लंबी गाड़ियों में ड्राइवर के साथ आते हैं तो कुछ पैदल या फिर सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करके पहुंचते हैं. लेकिन ये स्कूल या कॉलेज के परिसर के बाहर की बात है. जैसे ही कोई स्कूल/कॉलेज परिसर में प्रवेश करता है, सभी को समान समझा जाता है. इस समानता को दिखाने का सबसे आसान तरीका है यूनिफॉर्म पॉलिसी का पालन करना. एक जैसा ड्रेस होने से – कई संस्थानों में यूनिफॉर्म बेचने के आउटलेट भी होते हैं – किसी तरह का भेदभाव की गुंजाइश नहीं रह जाती.
यूनिफॉर्म से जुड़े सवाल
जहां तक यूनिफॉर्म की बात है तो ये एक निश्चित रंग, सामग्री और कट की होनी चाहिए. वहीं एक्सेसरीज जैसे कि बेल्ट, टाई, मोजे, स्कार्फ और जूते भी एक तरीके के ही होने चाहिए. अगर स्कूल कहता है कि जुराबें पिंडली की लंबाई तक की हों तो इसका भी पालन होना चाहिए. ऐसे में टखने या घुटने तक की लंबाई के मोजे भी स्वीकार्य नहीं होने चाहिए.
अगर निर्देश में कहा गया है कि यूनिफॉर्म कॉटन से बना होना चाहिए तो इसका भी पालन होना चाहिए. किसी भी तरीके से सिल्क पहनने की इजाजत नहीं होनी चाहिए. जूते भी या तो सफेद कैनवास हों या फिर काले रंग के बाटा वाले हों. सिर्फ इस वजह से किसी को प्यूमा और नाइकी के जूते (फिर चाहे वो कलर कोड से मैच ही क्यों न करते हों) पहनने की इजाजत नहीं मिलनी चाहिए कि ये चलन में हैं या कोई इनको खरीदने की हैसियत रखता है. वर्दी यह सुनिश्चित करती है कि हर कोई अपनी आर्थिक पृष्ठभूमि से इतर संस्थान में एक ही तरह की पोशाक में नजर आए.
इस नजरिए से कर्नाटक के शिक्षा मंत्री अपनी जगह बिल्कुल सही हैं. मगर हिजाब पहनने वाली लड़कियों को भी गलत नहीं कहा जा सकता है. अधिकांश संस्थाओं में सिख समुदाय को पगड़ी पहनने की अनुमति दी गई है. लेकिन ये भी नियम रखा जाता है कि पगड़ी का रंग यूनिफॉर्म के रंग के मेल खाता होना चाहिए. इसी तरह ड्रेस कोड से मेल खाते हिजाब की अनुमति भी संस्थान देते हैं. जनेऊ, तुलसी माला, ईसाई क्रॉस के साथ भी ऐसा ही है. इनमें से किसी भी धार्मिक प्रतीक को समानता, अखंडता और सार्वजनिक कानून व्यवस्था को बिगाड़ने वाला नहीं माना जाता है.
धार्मिक प्रतीक
प्रत्येक शैक्षणिक संस्थान अपना एक यूनिफॉर्म निर्धारित करता है, मगर साथ ही छात्र या छात्रा को उसकी धार्मिक पहचान को बनाए रखने की अनुमति भी देता है. कान में बड़े झुमकों, डायमंड ब्रेसलेट और यहां तक कि मोनोग्राम वाली शर्ट को भी ड्रेस कोड यानी यूनिफॉर्म का उल्लंघन माना जाता है. ऐसे स्टूडेंट को शिक्षक यही कहकर समझाते हैं कि स्कूल में यूनिफॉर्म को फॉलो करना होगा और वही पहनना होगा जो बाकी सभी भी पहनकर आते हैं.
जब तक धार्मिक प्रतीक संस्था द्वारा निर्धारित व्यापक यूनिफॉर्म कोड के अनुरूप रहते हैं, तब तक कोई भी इनका पालन कर सकता है. जैसे कि यूनिफॉर्म के अनुसार निर्धारित रंग की पगड़ी पहनना ठीक है लेकिन इस पर सोने का पिन या बैज लगाने की इजाजत नहीं होगी. इसी तरह ड्रेस कोड का पालन करने पर हिजाब भी सही है. लेकिन नए ट्रेंड का फैशनेबल हेडस्कार्फ निश्चित रूप से मानदंडों का उल्लंघन करने वाला माना जाएगा. किसी भी संस्थान में, चाहे वह स्कूल या कॉलेज हो या फिर प्रोफेशनल क्षेत्र – वर्दी एकरूपता लाने के लिए रखी जाती है. इससे अपनेपन का भाव भी जागृत होता है.
अगर आज अधिकारी हिजाब पर प्रतिबंध लगाने का फैसला लेते हैं तो उनको पगड़ी भी बैन कर देनी चाहिए. जैसा कि चंद्र कुमार बोस ने कहा है कि स्कूलों में हर तरह के धार्मिक प्रतीकों और सामान पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए. वैसे यह भी विडंबना ही है कि बिना धार्मिक प्रतीकवाद के समान संहिता के पालन की बात करने वाले कर्नाटक के शिक्षा मंत्री बीसी नागेश सार्वजनिक कार्यालय में अपने माथे पर टीका लगाकर ही जाते हैं.
(डिस्क्लेमर: लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार हैं. आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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