सम्पादकीय

Karnataka Hijab Controversy : हिजाब के बाद अब 'अमृतधारी' सिख छात्रा की पगड़ी पर विवाद भारतीयता को कहां ले जाएगी?

Rani Sahu
1 March 2022 11:48 AM GMT
Karnataka Hijab Controversy : हिजाब के बाद अब अमृतधारी सिख छात्रा की पगड़ी पर विवाद भारतीयता को कहां ले जाएगी?
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हिजाब के बाद अब ‘अमृतधारी’ सिख छात्रा की पगड़ी पर विवाद भारतीयता को कहां ले जाएगी?

संजय वोहरा

कर्नाटक (Karnataka) में स्कूल की मुस्लिम छात्राओं को हिजाब पहनने से रोकने को लेकर मचे बवाल का हल निकालने और उसके बाद आहत कर देने वाली तरह-तरह की खबरें लगातार सामने आईं. इन घटनाओं को बढ़ने से रोकने को लेकर कुछ ठोस काम हो पाता उससे पहले ही कर्नाटक में एक सिख छात्रा की वेशभूषा को लेकर विवाद खड़ा कर दिया गया. हिजाब (Hijab) से जुड़े विवाद को जल्द और सलीके से निपटाने की कोशिश के तहत जब एक तरफ कर्नाटक हाई कोर्ट की तीन जजों की बेंच मैराथन सुनवाई में मसरूफ थी, तब इस नए मामले को तूल दिया जा रहा था. इसमें मुद्दा बनाया गया एक सिख परिवार की लड़की की केसगी (दस्तार या पगड़ी) को जो वो बरसों से धारण करके स्कूल आ रही थी.
कर्नाटक की राजधानी बंगलुरु के माउंट कार्मेल प्री यूनिवर्सिटी कॉलेज ने 17 वर्षीय इस अमृतधारी छात्रा को कहा कि वे क्लास में केसगी के साथ नहीं आ सकती. ये 16 फरवरी की बात है लेकिन छात्रा ने केसगी हटाने से इनकार कर दिया. छात्रा यहां की स्टूडेंट एसोसिएशन की अध्यक्ष भी है. स्कूल प्रबंधन ने इस बाबत अदालत के 5 फरवरी 2022 वाले आदेश का हवाला देते हुए छात्रा के पिता को मेल के ज़रिए भी सूचित किया है. इसके बाद छात्रा के पिता से बात भी हुई और उनको समझाने की कोशिश की गई कि प्रबंधन के हाथ अदालत के उस आदेश से बंधे हुए हैं जो शिक्षण संस्थान में धार्मिक चिन्ह या लिबास आदि के इस्तेमाल की इजाज़त नहीं देता.
सिख समुदाय की चुनिंदा महिलाएं ही पगड़ी बांधती हैं
लेकिन छात्रा के पिता की दलील है कि वे खालसा पंथ के धार्मिक नियम से बंधे हुए हैं और अपने मज़हबी नियमों का पालन करना उनका अधिकार है. छात्रा के पिता जीतेन्दर सिंह ने कॉलेज को भेजे अपने जवाब में कहा है कि अदालती आदेश में कहीं भी पगड़ी का ज़िक्र नहीं है. साथ ही उन्होंने इस बारे में श्री गुरु सिंह सभा (उल्सूर) को भी अवगत कराते हुए मेल लिखा है. इसमें उन्होंने कहा है कि किसी भी सिख के सिर से उसकी पगड़ी हटवाना उसकी ही बेइज्जती नहीं पूरे सिख समुदाय का अपमान है. यही नहीं जीतेन्दर सिंह ने ये भी लिखा है कि हम उन मुस्लिम लड़कियों और महिलाओं के साथ खड़े हैं जो स्कार्फ़ (हिज़ाब) या दुपट्टे से अपना सिर ढकने को धार्मिक आस्था का हिस्सा मानती हैं.
इस विवाद के बीच ये समझना भी ज़रूरी है कि आखिर सिख महिलाओं के सिर पर पगड़ी क्यों होती है ? और सभी सिख महिलाएं इसे धारण क्यों नहीं करतीं ? क्यों सिख समुदाय की चुनिंदा महिलाएं ही पगड़ी बांधती हैं? असल में इस केसगी की शुरुआत सिखों के दसवें और आखिरी मानव रूप गुरु गोबिंद सिंह की पांच ककों की अवधारणा से हुई जो 13 अप्रैल 1699 को खालसा पंथ की स्थापना से जुड़ी है. ये वो दौर था जब औरंगज़ेब का शासन था और जबरन धर्मान्तरण कराया जा रहा था. इसे रोकने की कोशिश में कश्मीरी पंडितों की गुहार पर दिल्ली आए सिखों के नौवें गुरु और गुरु गोबिंद सिंह के पिता गुरु तेग बहादुर ने चांदनी चौक में उसी जगह शहादत दी थी जहां अभी गुरुद्वारा सीसगंज साहिब है.
यहां गुरु तेग बहादुर का सिर धड़ से अलग कर दिया गया था और उनके शिष्यों को सरे आम यातनाएं देकर मारा गया था. इस ज़ालिमाना और हृदय विदारक घटना के बाद गुरु गोबिंद सिंह ने श्री आनंदपुर साहिब में खालसा पंथ की स्थापना की ताकि औरंगज़ेब से मुकाबला करके उसके ज़ुल्म और ज़ोर ज़बरदस्ती से गरीबों, मजलूमों और अपने धर्म-आस्था का पालन करने वालों को बचाया जा सके. उन्होंने इसके लिए एक ऐसी सेना बनाई जिसमें समाज के सभी वर्गों और जातियों के लोगों को बराबरी का दर्जा देते हुए भर्ती किया गया. सबके नाम के आगे लिखा उनका उपनाम हटाकर उसके स्थान पर 'सिंह' लिखने का नियम बनाया ताकि समाज में ऊंच नीच और भेदभाव खत्म हो. किसी भी तरह का नशा और तम्बाकू आदि के सेवन पर पाबंदी जैसे कुछ नियमों का उनको पालन करना होता था.
बालों को धूल मिटटी आदि से बचाने के लिए पगड़ी बंधी जाती थी
संकल्प के दौरान उस शख्स को 'अमृत छकना' (अमृत पीना) होता है. ऐसे शख्स को खालिस यानि शुद्ध माना गया और इस तरह इस समूह को 'खालसा' नाम दिया गया. खानपान और रहन सहन से सम्बन्धित कुछ और नियम भी 'खालसा' के लिए बनाए गए. गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा की पहचान के लिए पांच 'क' के सिद्धांत को पालन करने का आदेश दिया. इसका मतलब कि उन्हें 'क' अक्षर से शुरू होने वाली पांच वस्तुओं को धारण करना होगा. ये हैं कच्छ (कच्छेरा/कच्छा), कड़ा (कलाई में पहनने के लिए), कृपाण (तलवार), कंघा और केस (बाल).
गुरु गोबिंद सिंह के स्थापित खालसा पंथ में शामिल होने वालों की इस वेशभूषा के पीछे कुछ ख़ास तर्क हैं. पहला तो यही कि इसके ज़रिए खालसा समाज में अपनी अलग पहचान बनाएं. दूसरा, ये दरअसल उनके उन शिष्यों की सैन्य वेशभूषा भी थी जिनके लिए कई-कई दिन तक जंगलों और वीरानों में रहना मजबूरी हुआ करती थी. ऐसे में ये पांच 'क' के नियम का पालन करना उनको व्यवहारिक तौर पर मदद करता था.
बालों को संवारने और साफ़ सुथरा रखने के लिए कंघे का उपयोग किया जाता था. बालों को धूल मिटटी आदि से बचाने के लिए पगड़ी बंधी जाती थी, जो युद्ध के समय सिर पर दुश्मन के प्रहार से होने वाले नुक्सान से बचाव करती थी. कलाई में पहना कड़ा भी लड़ाई के दौरान सेफ्टी गियर का काम करता लेकिन साथ ही ये अच्छे काम करने का वैसा संकल्प भी याद कराता है जैसा सनातनी संस्कृति में पूजन हवन जैसे पवित्र कार्य के समय कलावा बांधकर संकल्प लिया जाता है. कृपाण धारण करना तो सैनिक के लिए ज़रूरी होता ही था.
अमृतधारी सिख को सब नियम पालन करने होते हैं
सिख समाज में 'खालसा' या 'अमृतधारी' का खास स्थान होता है. उसे तमाम तरह के व्यसनों से दूर रहना होता है और अपनी आमदनी के दसवें हिस्से को जरूरतमंदों की मदद या दान आदि में खर्च करना होता है. गृहस्थ जीवन में रह कर भी अमृतधारी सिख को सब नियम पालन करने होते हैं. वो चाहे पुरुष हों या महिला बाल काटने पर पाबंदी होती है. उसे मेकअप से भी परहेज़ करना होता है. अमृतधारी बहुत सी महिलाएं बाल खुले लेकिन ढके हुए रखती हैं मतलब पगड़ी नहीं बांधती, क्योंकि कइयों को ऐसा करना पुरुष होने जैसी फीलिंग देता है या यूं कहें कि वे स्त्रीत्व में कमी सी होती महसूस करती हैं. कुछ लोग खालसा की वेशभूषा को लेकर भ्रमित होते हैं. सिख पंथ असल में तो एक महान विचारधारा थी जिसकी शुरुआत पहले गुरु नानक देव ने की थी. बाद में इसमें से 'खालसा' ने जन्म लिया और जिसे कालान्तर में धर्म का रूप दे दिया गया.
दिलचस्प वाकया है कि हिज़ाब विवाद के दौरान पंजाब में शिरोमणि अकाली दल (मान) के प्रमुख सिमरनजीत सिंह मान ने पंजाब में विधानसभा चुनाव में पार्टी उम्मीदवार के प्रचार के दौरान मुस्लिम आबादी वाले इलाकों का दौरा भी किया था. इसी दौरान उन्होंने हिज़ाब धारण की हुई लड़कियों और महिलाओं के साथ खिंचवाए अपने फोटो भी ट्वीटर पर शेयर किए. इनके ज़रिए वो पंजाब में हरेक मज़हब को मानने वालों की आजादी का संदेश देना चाहते थे. दो बार सांसद चुने गए 76 वर्षीय सिमरनजीत सिंह मान पूर्व वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी हैं. 1989 में पहली बार सांसद चुने जाने पर उन्हें संसद में जाने से रोक दिया गया था क्योंकि वे तीन फुट की कृपाण (तलवार) के साथ लोकसभा में जाना चाहते थे. इस पर उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया था.
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