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- तहज़ीब की एक अलग किताब...
रवीश कुमार जो भी टीवी देखता है, जो भी टीवी का दर्शक है वह जानता है कि कमाल खान कौन हैं. अपनी पत्रकारिता में वे किस तरह की शख्सियत रहे हैं .उन सभी करोड़ों दर्शकों के लिए, उनके सहयोगियों के लिए, परिवार के लिए तो बहुत दुखद खबर है ही . यकीन करना भी मुश्किल हो रहा है कि कमाल हमारे बीच में नहीं हैं. कमाल के बारे में बहुत सारी बातें की जा सकती हैं लेकिन इस वक्त ऐसा सदमा लगा है इस खबर से कि न तो कुछ याद आ रहा है, न कुछ समझ में आ रहा है कि उनके बारे में क्या कहा जाए. हर किसी के पास एक अलग-अलग कमाल खान हैं उनकी रिपोर्टिंग की अपनी यादें हैं. उन्होंने इस पेशे में जो अब बेहद खराब हो गया है और शर्मनाक पेशा हो गया है. आज टेलीविजन इससे बुरा तो कभी दुनिया में नहीं हुआ होगा जितना खराब इस देश में हो गया है. इसमें कुछ लोग हैं जो दिए की तरह टिमटिमा रहे थे, दिखाई दे रहे थे कि हां, यहां से भाषा, शराफत, शऊर को हासिल किया जा सकता है, यहां से ये चीजें बची हई नजर आती हैं.