- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- कड़कनाथ मुर्गा
जब से कड़कनाथ मुर्गे को पता चला है कि देश के किसी हाईकोर्ट ने गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने की सलाह दी है, वह किसी भी समय बांग देने में गौरव महसूस कर रहा है। उसे गर्व यह है कि यह देश कितना राष्ट्रीय और कितना पशु हितैषी होने जा रहा है। उसे लगता है कि एक दिन वह भी राष्ट्रीय घोषित हो जाएगा, लेकिन इससे पहले उसे आवारा होकर घूमना पड़ेगा। वह अंडे से निकलते ही बंद मुर्गीखाने में रसीद हो गया। उसका भी एक मालिक है, जो खुदा नहीं। उसके सारे रिश्तेदार उसी के साथ पलते रहे, एक ही छत के नीचे। मुर्गे अगर सपने देखें, तो डर जाएंगे, इसलिए उसके बड़े-बुजुर्ग बांग देते हुए कुनबे को जगाते रहते हैं। सपने देखना इनसानों का काम है, उसका मालिक भी देखता है। एक दिन कड़कनाथ मुर्गे पर निगाहें डालते हुए मालिक ने दिन में ही सपना देख लिया था कि वह अगर दो किलो का हो गया, तो दो हजार में बिक जाएगा। कड़कनाथ अब अपने वजन से डरता है, इसलिए कम खुराक लेता है। उसके चाचा-ताया इसलिए बिक गए क्योंकि वे खा-खा कर मोटे हुए थे। कड़कनाथ मुर्गा अपनी बिरादरी का तमगा लिए, गाय से कहीं अधिक पुचकारा जाता था।