सम्पादकीय

काबुलः बाइडन जल्दबाजी न करें

Gulabi
25 Jan 2021 11:56 AM GMT
काबुलः बाइडन जल्दबाजी न करें
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अमेरिका का बाइडन प्रशासन डोनाल्ड ट्रंप की अफगान-नीति पर अब पुनर्विचार करने वाला है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। अमेरिका का बाइडन प्रशासन डोनाल्ड ट्रंप की अफगान-नीति पर अब पुनर्विचार करने वाला है। वैसे तो ट्रंप प्रशासन ने पिछले साल फरवरी में तालिबान के साथ जो समझौता किया था, उसकी प्रशंसा सर्वत्र हो रही थी लेकिन उस वक्त भी मेरे जैसे लोगों ने संदेह प्रकट किया था कि इस समझौते का सफल होना कठिन है। लेकिन ट्रंप जैसे उथले आदमी ने यह रट लगा रखी थी कि राष्ट्रपति के चुनाव के पहले ही अमेरिकी फौजियों को अफगानिस्तान से वे वापस बुला लेंगे। उन्होंने इसे अपना चुनावी मुद्दा भी बना लिया था। अमेरिकी मतदाता के लिए यह खुशी की बात थी कि अमेरिकी फौजियों के ताबूत काबुल से न्यूयार्क आना बंद हो जाएं। यह भी सही है कि तालिबान ने पिछले एक साल में बहुत कम अमेरिकी ठिकानों को अपना निशाना बनाया और अमेरिकी फौजी नहीं के बराबर मारे गए लेकिन अफगानिस्तान का कौनसा हिस्सा है, जहां तालिबान ने पिछले एक साल में हिंसा नहीं फैलाई ? काबुल, कंधार, हेरात, जलालाबाद, हेलमंद, निमरुज– कौनसा इलाका उन्होंने छोड़ा है।


अब तक वे लगभग एक हजार लोगों को मौत के घाट उतार चुके हैं। उनमें अफगान फौजी और पुलिस तो हैं ही, छात्र, किसान, व्यापारी, नेतागण और सरकारी अफसर भी हैं। अफगानिस्तान के 80 प्रतिशत से ज्यादा इलाकों पर उनका कब्जा है। वे सरकार की तरह लोगों से टैक्स वसूलते हैं, राज करते हैं और काबुल की गनी-सरकार को वे अमेरिका की कठपुतली कहते हैं। गनी सरकार भी मजबूर है। उसे दोहा में हुए समझौते को स्वीकार करना पड़ा। उसे पता है कि अमेरिकी और नाटो फौजी की वापसी के बाद उनकी सरकार का जिंदा रहना मुश्किल है। अफगान फौज में पठानों का वर्चस्व है और तालिबान शुद्ध पठान संगठन है। तालिबान सत्तारुढ़ होने पर इस्लामी राज कायम करना चाहते हैं लेकिन आज उनके कई गुट सक्रिय हैं। इन गुटों में आपसी प्रतिस्पर्धा जोरों पर है। हर गुट दूसरे गुट को नकारता चलता है।

इसीलिए काबुल और वाशिंगटन के बीच कोई समझौता हो जाए, उसे लागू करना कठिन है। इस समय मुझे तो एक ही विकल्प दिखता है। वह यह कि सभी अफगान कबीलों की एक वृहद संसद (लोया जिरगा) बुलाई जाए और वह कोई कामचलाऊ सरकार बना दे और फिर लोकतांत्रिक चुनावों के जरिए काबुल में एक लोकतांत्रिक सरकार बने। इस बीच बाइडन-प्रशासन थोड़ा धैर्य रखे और काबुल से पिंड छुड़ाने की जल्दबाजी न करे। ट्रंप की तरह वह आनन-फानन घोषणाओं से बचे, यह उसके लिए भी हितकर है, अफगानिस्तान और पूरे दक्षिण एशिया के लिए भी।


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