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नीरज पाण्डेय। देश के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने कल जब न्याय व्यवस्था में इंग्लिश के इस्तेमाल को लेकर आम आदमी के प्रति फिक्र जताई तो मुझे पांच साल पुरानी एक घटना याद आ गई. मैं एक मुकदमे की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट गया था. कोर्ट नंबर 10 में मैं अपनी बारी से 20 मिनट पहले ही पहुंच गया. अंदर दो जजों की बेंच पहले से लिस्टेड मामलों की सुनवाई कर रही थी. एक मुकदमे के दौरान वकील ने इंग्लिश में बोलना शुरू किया. जज साहब ने भी इंग्लिश में ही टोका और कहा कि 'सेंड इट बैक टू हाई कोर्ट' यानी केस वापस हाई कोर्ट के पास भेजा जाए. मुश्किल से दो-ढाई मिनट चली सुनवाई के बाद केस से जुड़ा पक्षकार हतप्रभ होकर खड़ा रहा. (मुझे बाद में पता चला कि वो यूपी के हरदोई का एक किसान था) चेहरे पर प्रश्नवाचक चिह्न समेटकर जब वो बाहर की ओर मुड़ने लगा तो जज साहब ने टोका- 'आपको पिछली बार भी कहा था न्याय मित्र कर लीजिए'. वकील ने जज की तरफ देखा तो वकील ने इशारा किया, बाहर चलिए सब बताता हूं. कहने का मतलब ये कि वादी की भाषा हिंदी थी, वकील की भाषा हिंदी थी, दो में से कम से कम एक न्यायाधीश (जो अब रिटायर हो चुके हैं) की भाषा भी हिंदी थी. लेकिन हरदोई के उस किसान के सामने सारी कार्यवाही इंग्लिश में हुई जिसे वो नहीं समझ पाया.