सम्पादकीय

हिंदी में न्याय

Triveni
19 Dec 2022 10:16 AM GMT
हिंदी में न्याय
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फाइल फोटो 

आजादी के बाद हर भारतीय का सपना था कि सरकार के सभी अंगों में मातृभाषा के जरिये संवाद हो।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | आजादी के बाद हर भारतीय का सपना था कि सरकार के सभी अंगों में मातृभाषा के जरिये संवाद हो। सरकारी रीतियां-नीतियां उसकी भाषा में समझ में आने वाली हों। आकांक्षा रही कि आम जनता को न्याय उसकी भाषा में मिले। सवाल पूछा जाना चाहिए कि आम आदमी के हिस्से में आये व्यवस्था के इस अंधेरे के लिये कौन जिम्मेदार है? हमें न्याय और चिकित्सा व दवाइयां हमारी भाषा में क्यों नहीं मिल पातीं? बहरहाल, आजादी के अमृतकाल में यह खबर सुकून देने वाली है कि हरियाणा में न्यायालयों के आदेश अब हिंदी भाषा में मिल सकेंगे। निस्संदेह, अब फैसले समझने के लिये आम आदमी को माथापच्ची नहीं करनी पड़ेगी। न्याय समझ आना भी न्याय की अपरिहार्य शर्त भी है। हरियाणा सरकार की इस पहल के बाद कम पढ़े-लिखे लोग भी न्यायिक फैसलों को आसानी से समझ सकेंगे। दरअसल, ब्रिटिश व्यवस्था का अनुसरण करती हमारी न्यायिक शब्दावली की अपनी जटिलताएं हैं। जिसे भाषायी बाधा और जटिल बना देती है। आम आदमी को न्यायिक आदेशों को समझने के लिये किसी अनुवादक की जरूरत होती रही है, जिससे उसके न्याय पाने की जद्दोजहद खासी महंगी भी पड़ती है। दरअसल, हरियाणा सरकार ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के अधीनस्थ न्यायालयों तथा अधिकरणों में हिंदी भाषा के उपयोग के संबंध में हरियाणा राजभाषा (संशोधन) अधिनियम, 2020 की धाराओं के अधीन प्रयोजनों के उपयोग के लिये अधिसूचना जारी की थी। जिसे राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय ने अनुमोदित कर दिया है। अब ये नियम एक अप्रैल, 2023 से प्रभावी होंगे। जिससे अब न्यायालय के आदेश हिंदी में मिल सकेंगे। निस्संदेह, हरियाणा सरकार की यह पहल आम आदमी की सुविधा के हिसाब से महत्वपूर्ण है। जिस भाषा का लोग आम बोल-चाल में प्रयोग करते हैं यदि उसमें ही उन्हें न्याय मिलने लगे, तो इससे न्याय की सार्थकता सिद्ध होती है। साथ ही न्यायिक प्रक्रिया में वादी-प्रतिवादी सक्रिय रूप से प्रत्यक्षदर्शी बन सकेंग

निस्संदेह, यह हिंदी के लिये महत्वपूर्ण समय है जब सरकारें केंद्र व राज्य स्तर पर इसके प्रचार-प्रसार के लिये प्रयत्नशील हैं। वाकई हिंदी समय की जरूरत भी है। भले ही हिंदी पूरे देश में नहीं बोली जाती है, लेकिन समझी तो जाती है और यही समझ देश को एकता के सूत्र में पिरोने का कार्य कर सकती है। यह स्पष्ट है कि हिंदी का आधार व्यापक है, उसके सरोकारों का दायरा बड़ा है और साथ ही उसकी पहुंच अधिक है। जरूरत हिंदी भाषियों की जागरूकता व सक्रियता की है ताकि हिंदी को व्यावहारिक जगत में प्रतिष्ठा मिल सके। हिंदी ज्ञान, शिक्षा और रोजगार की भाषा बन सके। कुल मिलाकर हिंदी को लेकर कृत्रिम रूप से पैदा किया गया हीनताबोध खत्म होना चाहिए। जिससे कालांतर देश में हिंदी व भारतीय भाषाओं की प्रतिष्ठा स्थापित हो सके। तब कहा जा सकेगा कि हिंदी महज निर्धनों, वंचितों व पिछड़ों की ही भाषा नहीं है। तब नहीं कहा जा सकेगा कि सरकारी स्कूलों में कमजोर वर्गों के बच्चे ही पढ़ते हैं। हम कह सकेंगे कि हिंदी महज बाजार, मनोरंजन, विज्ञापन तथा वोट मांगने की ही भाषा नहीं है। इसी दिशा में राजग सरकार द्वारा इंजीनियरिंग व मेडिकल की पढ़ाई हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं में कराने की संस्थागत पहल प्रशंसनीय कदम है। आगे कानून व अन्य शाखाओं में भी इस तरह के प्रयासों की जरूरत होगी। जिसको सफल बनाने में हिंदी भाषी लोगों को अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए। उच्च शिक्षा व तकनीकी शिक्षा के साथ ही राष्ट्रीय शिक्षा नीति में मातृभाषाओं को सींचने की कोशिश भी स्वागतयोग्य है। निस्संदेह, मातृभाषा में सोचने, लिखने व पढ़ने से छात्रों की मौलिक प्रतिभा का विकास हो सकेगा। उनके प्रगति मार्ग में भाषायी स्पीड ब्रेकर गति न रोक पायेंगे। हिंदी और अन्य भाषाओं की प्रतिष्ठा तभी स्थापित होगी, जब इसको बोलने वाले लोग रचनात्मक भूमिका निभाएंगे। आंकड़े बता रहे हैं कि इंटरनेट पर हिंदी पढ़ने वालों की संख्या प्रतिवर्ष 96 फीसदी की दर से बढ़ रही है। उम्मीद है कि अगले साल तक चौबीस करोड़ लोग इंटरनेट पर हिंदी का उपयोग करेंगे। कह सकते हैं कि राजाश्रय में हिंदी स्वर्णिम युग की तरफ बढ़ रही है।


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