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- बाटला हाऊस मुठभेड़ में...
दिल्ली के बाटला हाऊस मुठभेड़ में दिल्ली की साकेत कोर्ट ने इंडियन मुजाहिदीन के आतंकी आरिज खान को मौत की सजा सुनाई है। यह मुठभेड़ काफी विवादित रही है। न्यायालय के फैसले से एक बार देश के लोगों का न्यायपालिका पर विश्वास पुख्ता हुआ कि न्याय की देवी इंसाफ ही करती है। यह सवाल अब भी सामने है कि क्या मुठभेड़ विवाद वोट बैंक की राजनीति, टीवी चैनलों में टीआरपी की लड़ाई और षड्यंत्र के सिद्धांत गढ़ने वालों का नतीजा था। 19 सितम्बर, 2008 में हुई इस मुठभेड़ और उससे जुड़े मामलों पर दिल्ली पुलिस के संयुक्त पुलिस आयुक्त रहे करनैल सिंह ने पुस्तक भी लिखी थी।
चुनावों के दौरान भी बाटला हाऊस मुठभेड़ की गूंज सुनाई देती रही। यह हमारे लोकतंत्र की विडम्बना ही है कि हमारे यहां अफजल गुरु की फांसी को लेकर भी सवाल उठते रहे हैं। रात के समय भी अदालतों के द्वार सुनवाई के लिए खुलते रहे हैं।
दूसरी तरफ हमारे लोकतांत्रिक शासन व्यस्था की खासियत देखिये, हमने पाकिस्तान से आकर भारत की धरती पर आतंक का कहर बरपाने वाले अजमल कसाब को फांसी दिए जाने से पहले उसे पूरी न्याय प्रणाली के समक्ष अपना पक्ष रखने का मौका दिया। न्यायपालिका ने यह सिद्ध कर दिया था कि आरोपी भारत की दंड प्रक्रिया के तहत किसी भी तरह की रियायत प्राप्त कर सकता है। यही वजह थी कि हमारे देश के राष्ट्रपति के पास उसे दया याचिका भेजने तक का अधिकार भी दिया गया।