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- न्याय में विलंब
Written by जनसत्ता: 'विलंबित न्याय' में उल्लेख है कि न्यायालय और न्यायाधीश भी न्याय में विलंब से परेशान और चिंतित हैं, किंतु मजबूरी यह है कि मुकदमों के बढ़ते अंबार की अपेक्षा न्यायालय और जज दोनों की कमी है और प्रक्रिया भी लचर है। आवश्यकता है कि महत्त्वपूर्ण मामले ही न्यायालय तक आने चाहिए तथा प्रक्रिया में सुधार हो और जजों के रिक्त पदों पर भर्ती जरूरी है।
और समय लगा कर बने नोएडा के कुतुब मीनार से भी ऊंचे 'ट्विन टावर' के लिए भ्रष्टाचार में लिप्त इनके निर्माता और इन्हें निरंतर देखने वाले मूकदर्शक दोनों बराबर दोषी हैं। इन्हें गिराने में कितना समय और पैसा लगा और अभी और लगेगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। असल में यहां तो आग लगने के बाद ही कुआं खोदने की बात प्राय: सोची जाती है, मगर खोदा फिर भी नहीं जाता।
यह घटना कोई नई नहीं है। ऐसी कई घटनाएं पहले भी हो चुकी हैं, जिनसे न जाने देश की कितनी हानि हुई है। इसलिए आगे से ऐसा न हो, इसकी ठोस, पारदर्शी व्यवस्था बहुत जरूरी है, जो प्रशासन का दायित्व है। दुर्भाग्य से आज बड़ी जनसंख्या के बाद भी उलटे कर्मचारियों के अभाव में प्रशासन सिकुड़ता ही जा रहा है।
कभी जार्डन का भूभाग हुआ करता था पश्चिमी तट। 1967 के एक संक्षिप्त युद्ध में इसे इजराइल ने अपने कब्जे में कर लिया। इजराइल यहूदी देश है। बीसवीं सदी में, इस धरती पर सबसे ज्यादा ज्यादती झेलने वाली कौम यहूदी है। मगर द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद इजराइलियों ने भी कम कहर नहीं ढाए हैं। फिलस्तीनियों को तबसे लेकर आज तक, अपमानित कर रहे हैं।
उनकी जगह-जमीन पर जोर-जबर्दस्ती घुस कर अपना हक जताना कोई इजराइलियों से सीखे। अब कल ही की बात है, पश्चिमी तट के कब्जे वाले मासाफर याट्टा क्षेत्र में लगभग बारह सौ फिलस्तीनियों को जबरन सामूहिक रूप से बेदखल करने का काम शुरू कर दिया गया है। इजराइल उस स्थान पर अपना सैन्य प्रशिक्षण केंद्र स्थापति कर रहा है।
संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ, सिर्फ दिखावे के लिए घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं। कह रहे हैं कि ऐसा करना न सिर्फ युद्ध अपराध, बल्कि यह चौथे जिनेवा समझौते का गंभीर उल्लंघन है। इस तरह के हजारों उल्लंघन इजराइल करता आया है, कर रहा है और करता रहेगा। दुनिया सिर्फ मौन होकर तमाशा देखती रहेगी। हां, यह दुनिया इस्लामिक चरमपंथ के विरोध में लंबी-लंबी तकरीरें जरूर देती है। मगर चरमपंथ के कारण का वह कभी विरोध नहीं करती है। यह कैसा विरोधभास है ?