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- न्यायमूर्ति चन्द्रचूड...
आदित्य चोपड़ा| सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति श्री डी.वाई. चन्द्रचूड ने बहुत शालीनता और स्पष्टता के साथ भारत की संघीय व्यवस्था में न्यायपालिका की निष्पक्ष भूमिका की व्याख्या करते हुए संविधान प्रदत्त नागरिकों की मूल अधिकारों की सुरक्षा की समीक्षा की है और जाहिर किया है कि कोई भी फौजदारी कानून इन मूल अधिकारों की अवहेलना नहीं कर सकता है चाहे वह आतंकवाद विरोधी कानून ही क्यों न हो। उन्होंने यह कह कर भारत के संविधान की उस आत्मा के दर्शन कराने का प्रयास किया है जो भारतीय न्यायिक व्यवस्था का मूलाधार है, क्योंकि भारतीय लोकतन्त्र जिन पायों पर टिका हुआ है उसमें 'असहमति' समूचे तन्त्र को अधिकाधिक लोकोन्मुख और प्रतिनिधि मूलक बनाती है। अतः न्यायमूर्ति चन्द्रचूड का यह मत कि किसी भी फौजदारी कानून का असहमति को दबाने या लोगों को सताने में प्रयोग नहीं किया जा सकता, पूरी तरह संवैधानिक व्यवस्थाओं का तार्किक मजमून है। भारत का संविधान अनुच्छेद के तहत प्रत्येक नागरिक को जीवन जीने का अधिकार देता है और अनुच्छेद 14 बराबरी का हक देता है। इसके साथ ही लोकतान्त्रिक व्यवस्था प्रत्येक नागरिक को सरकार के नीतिगत फैसलों के बारे में अपनी राय व्यक्त करने या आलोचना अथवा विश्लेषण करने का अधिकार देता है जिसमें असहमति वैचारिक स्वतन्त्रता के मूल भूत अधिकार का अभिन्न अंग होती है अतः किसी भी फौजदारी कानून का दायरा इतना बड़ा नहीं हो सकता कि वह नागरिकों के मूल अधिकारों को ही निगल जाये।